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________________ २६] चरणानुयोग वसति दृष्टान्त सूत्र ३२ जंबुद्दोवे बस देता पाणता, सं महा जम्बूद्वीप में दम क्षेत्र कहे गये हैं । यथा१. भरहे, २. एरवए, ३. हेमवए, ४. एरण्णवए, (१) भरत, (२) ऐरवत, (३) हैमवत, (४) हेरण्यवत ५. हरिवरसे, ३, रम्मगवस्से, ७. देवपुरा, ८. उसर. (५) हरिवर्ष, (६) रम्यकवर्ष, (७) देवकुरु, () उत्तरकुरू, कुरा . पुष्वत्रिहे, ... अवरविदेहे । १९) पूर्व विदेह, (१०) अपर (पश्चिम) विदेह । तेसु सवे भवं पससि । क्या आप उन सब में रहते हैं ? विसुखतराओ नेगमो मणई - भरहे वसामि । विशुद्धतर मैगमनय वाला कहता है-"मैं भरत क्षेत्र में भरहेवाप्से दुषिहे पण, महा भरतक्षेत्र दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-- १. बहिणबदमरहे य, २. उत्तरामरहे य, (१) दक्षिणार्थ भरत, (२) उत्तरार्ध भरत । तेसु सम्वेसु भवं वससि ? | "क्या आप उन सब में रहते हैं ?" विसुखतराओ नेगमो मणइ बाहिणडमरहे वसामि विशुद्धतर नैगमनय वाला कहता है-'मैं दक्षिणाय भरत में रहता हूँ।" दाहिणजहनरहे अगेगाइं गाम-नगर खेड-कम्य-मन- दक्षिणार्ध भरत में अनेक ग्राम, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, होणमुहमा समवेदई तेनु सव्येमु भबं द्रोणमुख, पट्टण, आसंवाह, संनिवेस आदि हैं.-"क्या आप उन वससि ? सब में रहते हैं ?" विसुद्धतराओ नेगमो प्रगइ-पालिपुत्ते वसामि । विशुद्धतर नैगमनय वाला कहता है-"मैं पाटलीपुत्र में रहता हूँ।" पाउलिपुत्ते मणेगाई गिहाई, सेसु सम्मेसु भवं वससि ? पाटलिपुत्र में अनेक पर है-"क्या आप उन सब में रहते हैं ?" विसुङतराओ नेयमो मणइ-देववत्तस्स घरे असामि। विशुद्धतर नैगमनय वाला कहता है- "मैं देवदत्त के घर में रहता हूँ।" देववनस्स घरे अणेया कोटुगा 1 देवदत्त के घर में अनेक कोडियाँ हैंतेसु सम्बेसु भवं वससि । "क्या आप उन सब में रहते है ?" विसुद्धतराओ नेगमो भणइ-म्मघरे यसामि । विशुद्धतर नैगमनम वाला कहता है-''मैं गर्भ (मध्य) गृह में रहता हूँ।" एवं विसुवस्स नेगमस्स बसमागो बसा। इस प्रकार विशुद्धतर नैगमनय बाला बसता है। एवमेव बबहारस्स वि । इसी प्रकार, व्यवहारनय वाला भी है। संगहस्स संघारसमारहो बसह । - मंग्रहनय वाला-अपने विस्तर पर रहता है। उज्यमुयस्स मेसु आगासपएसेसु ओगाढो तेसु वसइ । कजुसूत्रनय वाला—जिन आकाश प्रदेशों में स्थित हैं उतने में रहता है । अर्थात् वर्तमान में वह जितनी जगह में है उतनी में रहता है। तिण्डं सहनयाणं आयभावे असइ । . तीनों शब्द नव वालों का कथन है—'आत्मभाव में रहता है।' से तं वसहिविट्ठन्ते। -अणु सु०७५ -वसति दृष्टान्त समाप्त । पएसदिट्ठन्तं प्रदेश दृष्टान्त५०-से कि तं पएसविट्ठम्रोण? प्र-प्रदेश दृष्टान्त कैसा है ? 10-पएसस्टिम्तेणं-नेगमो भगः-छह पएसो, उ.-प्रदेश दृष्टान्त-गमनय बाला कहता है-छहों के प्रदेश हैं । यथा--
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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