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________________ प्रस्थकदृष्टान्त धर्म-प्रशापना २५ A n s . - - - - - - -- - - - - - -- - - - - विसुद्धसराओ नेगमो भणइ-पत्थय छिवामि । उस समय विशुद्धतर नैगमनय बाला कहता है--एम्थक काट तं च कह सछमाणं पासिता बरेजा- किं भवं तमछसि ? विसुद्धतरागो गो - गि उस पुरुष को काष्ट छीलते हुए देखकर कोई कहे हम म्या छोल रहे हो? जा तग विशुद्धता नैगमन य वाला कहता है -भस्यक छील तंचा विकरमाणं पासिता वबेग्जा-fक भवं उस पुरुप को काष्ठ कोरते हुए देखकर कोई कहे-तुम क्या उक्किरसि? ___ कोर रहे हो? विसुद्धतराओ नेगमो भगव... पत्थयं उक्किरामि। उस समय विशुद्धतर नंगमनय बाला कहता है अस्थाकोर तंच के बिलिहमा पासित्ता बवेजा—कि व उन पुमा को काप्ट की खुदाई करते हुए देखकर कोई विलिहसि ? कहे -तुम यह खुदाई किसकी कर रहे हो? विमुखतराओ नेगमो भण–पत्ययं विलिहामि । उन समय विशुद्धतन नैगमनय बाला कहता है-प्रस्थक की खुदाई कर रहा हूँ। एवं विसुरतरागस नेगमस्स नामाद्वितओ परपओ। इस प्रकार विशुद्धतर नैगमनय वाला प्रस्थक के सम्बन्ध में कहता है। (२) एवमेव ववहारस्स बि। इसी प्रकार न्यबहारनय वाला भी कहता है। (३) संगहस्स नितो मिओ मिजसम्रूतो पत्थओ । संग्रहनय वाला धान्य का संग्रह करके प्रस्थक द्वारा मापना प्रारम्भ करते हुए को प्रस्तक कहता है । () उजुसुयस्स पत्थओ वि पत्य ओ मिज पि से पत्थओ कसुत्रनय वाला प्रस्थक ने धान्य मापते हुए को प्रस्थक वहता है। तिहं सहनयाणं पत्थगाहिगारजाणो पत्थगो । जस्स तीनों शब्द नय प्रस्थक के कार्य को जानकर प्रस्थक कहते हैं । बा बसेणं पत्थगो निष्फज्जद्द । सेतं पत्यादिनेणं। --प्रस्थक दृष्टान्त समाप्त । -मणु. सु. ४७४ बहिदिद्वन्तं वसतिदप्टान्तपर से कि तं वसहिचिट्ठन्तण ? प्र--वसति दृष्टान्त कैसा है ? उ०-वसहिविद्वन्तेणं से जहानामए केह पुरिसे फंचि उ०-वमति दृष्टान्त--जिस प्रकार कोई पुरुष किमी पुरुष पुरिसं वएज्जा–कि भयं वससि ? को कहे.-आप वहाँ रहते हैं ? तस्थ अविसुयो नेगमो भणइ–'लोये यसामि।' उस समय अविशुद्ध नैगमनय वाला कहता है—'मैं लोक में रहता हूँ।" लोगे तिविहे पण्णसे, त जहा–१. उहलोए, २. लोक तीन : कार का है- (1) अवलोक, (२) अधोलोक, अहोलोए, ३. सिरियलोए । तेसु सम्वेस मयं वससि ? (३) निलोक, क्या उन मन में आप रहते हैं ? विसुखसराओ नेगमो रण-'सिरियलोए असामि बिगृद्धतर ननसनर वाला कहता है:-"मैं तियं कालोक में रहता है। सिरियलोए जबुद्दीबावीया सयंभुरमणपज्जवसाणा तिर्यक्लोक में अम्बटोप से लेकर पियाम्भूरमण समुद्र पर्यन्त असंखेज्जी दीव समुद्दा पष्णत्ता। तेसु सम्बेसु भवं असंत्र्येय द्वीप-समुद्र बहे गये है। क्या उन सब में आप रहते है ? वससि? विसुखतरामओ नेगमो भणह--जंबुद्दीचे बसामि । विशुद्धतर मैगमनय वाला कहता है-"मैं जम्बूद्वीप में रहता हूँ
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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