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________________ २४] वरगानुयोग नय प्रमाण सूत्र ३१-३२ १. सामाइय चरित्तगुणप्पमाणे । (१) सामायिक चारित्रगुण प्रमाण, २. छेदोवट्ठावणिय चरितगुणप्पमाणे, (२) छेदोपस्थापनीय चारित्रगुण प्रमाण, ३. परिहारविसुनिय चरित्तगुगप्पमाणे, (२) परिहारविशुद्धिक चारित्रगुण प्रमाण, ४. सुहमसंपराय चरित्तगुणप्पमाणे, (४) सूक्ष्मसम्पराय सरित्रगुण प्रमाण, ५. अहक्खाय चरित्तगुणप्पमाणे । (५) यथास्यात चारित्रगुण प्रमाण । सामाहय धरित्तगुणप्पमाणे वुविहे पण्णते। (१) सामायिक चारित्रगुण प्रमाण दो प्रकार का कहा गया तं जहा है । यथा--- १. इसरिए य, १. आवकहिए । (१) इत्वरिक अल्पकालीन, (२) यावत्कथिक-याव ज्जीवन । छेखोवढायगिय चरित्तगुणपमाणे दुबिहे पण्णत्ते, (२) छेदोपस्थापनीय चारित्रगण प्रमाण दो प्रकार का कहा जहा गया है। यथा-- १. सातियारे य, २. निरतियारे व । (१) सातिवार; (२) लिरतिचार । परिहारविसुद्धिय चरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णते, (३) परिहारविशुद्धिक चारित्रगुण प्रमाण दो प्रकार का तं जहा कहा गया है । यथा--- १. णिविसमाणए य, २. पिब्विटकायिए य। (१) निविषमानक, (२) निविष्टकायिक । सुहमसंपराय परित्तगुणप्पमाणे विहे पण्णत्ते, (४) सूक्ष्मसम्पराय चारित्रगुण प्रमाण दो प्रकार का कहा तं जहा--- गया है । यथा - १. संफिलिस्समाणयं प, २. विसुज्झमाणयं य । (१) संक्लिश्यमानक, (२) विशुद्धयमानक । अहवाय धरित्तगुणप्पमाणे दुबिहे पण्णते तं जहा- (५) यथाख्यात चारिषगुण प्रमाण दो प्रकार का कहा गया है। यथा.... १. पहिवाई य, २. अपडिवाई य। (१) प्रतिपातिक, (२) अप्रतिपातिक । १. छउमत्थे य, २. केवलिए य । (१) छाद्मस्थिक, (२) कवतिक । से तं चरित्तगुण पमाणे, से तं जीवगुणयमाणे, से तं ...चारित्रगुण प्रमाण समाप्त । जीवगुण प्रमाण समाप्त । गुणप्पमाणे। - अणु सु० ४७२ गुण प्रमाण समाप्त । णयप्पमाण नय प्रमाण १२ प.-से कि तं नयप्पमाणे? ३२. प्र० नय प्रमाण कितने प्रकार का है ? उ.-नयप्पमाणे तिबिहे पण्णते, तं जहा उ०—य प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया हैं । यथा१. पस्थगदिट्टन्तेणं, २. वसहिदिद्वन्तेगं, (१) प्रस्थक दृष्टान्त से, (२) वसति दृष्टान्त से, ३. पएसविट्ठन्तेण । -अणु० सु७ ४७३ (३) प्रदेश दृष्टान्त से । पत्थगविदन्तं प्रस्थक दृष्टान्त५०–से कि तं पत्थगविटुन्तेणं? प्र-प्रस्थक (धान्य मापने का एक पात्र) दृष्टान्त क्या है ? उ० .. यस्यगदिटुन्तेणं से जहा नामए केपुरिसे परसु उ. .-प्रस्थक दृष्टान्त-जिस प्रकार कोई पुरुष कुल्हाड़ी गहाय अडविटुत्ते गच्छेज्जा। लेकर अटवी में जाए; उसे देखकर कोई कहे .. तं च केह पासित्ता वदेम्जा-कत्य भवं गच्छसि ? तुम कहाँ जा रहे हो ? (१) अविसुद्धो नेगमो भगइ-पत्थमस्स गच्छामि । उस समय अविशुद्ध नैगम नरवाला कहता है। प्रस्थक के लिए जा रहा हूँ। तंच केइ छिदमाणं पासित्ता यवेज्मा-कि भवं- उस पुरुष को काष्ठ काटते हुए देखकर कोई कहे-तुम क्या छिसि। काट रहे हो?
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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