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________________ सूत्र २६-३१ वर्शनगुणप्रमाण धर्म प्रज्ञापना २३ प०-से कि तं लोगुतरिए ? प्रक-लोकोत्तर आगम का स्वरूप कैसा है? उ०-लोगुतरिए जं इमं अरहते ह भगवतेहि जपण्ण-पाण- उल-नोकोत्तर आगम, यथा-केवलज्ञान, केबलदर्शन से बसणधरेहिं तीय-पश्चपाण-मणाग जागएरोह अतीत-वर्तमान और भविष्य जानने वाले मज सर्वदर्शी अरहन्त तेलोक्क चहिय-महिय-पुइएहि सव्वाणहि सञ्चदरिसोहिं भगवन्तों द्वारा प्ररूपित द्वादशांग गणिपिटक । यथा-- आचारांगपणीयं बुवालसंग गणिपिडगं । तं जहा---आयारो यावत् - दृष्टिवाद । -जाव-विद्विवाओ। से तं लोयुत्तरिए आगमे । ---मोकोसर आगम समाप्त अदा -आगमे तिमिहे पण्णत्ते । तं जहा अयवा-आगम तीन प्रकार के कहे गये हैं । यथा१. सुसागमे य, २. अस्थागमे य, ३. शुभपागमे य। (१) सूत्रागम, (२) अर्थागम, (३) तदुभवागम । अहवा-आगमे तिषिहे पण्यत्ते, तं जहा अयवा-आगम तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा१. असागमे, २. अणंतरागमे, ३. परंपरागमे । (१) आत्मागम, (२) अनन्तरागम, (३) परमरागम । तित्यगररणं अत्यस्स अत्तागमे। तीर्थकरों का अर्थागम उनका आत्माराम है । गणहराणं सुलस्स अताममे, अस्वस्म अणेतरागमे, गणधरों का सूत्रागम उनका आनागम और अर्थागम अनन्त रागम है। गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमे अस्थस्स परंपरा- गणधर शिष्यों के लिए सूत्रागम अनन्तरागम है और अर्थागम गमे। परम्पगगम है। तेणं परं सुत्तस्स वि अस्थस्स वि नो अन्तागमे इराके बाद मूत्रायम भी और अर्थागम भी न आन्मागम है, नो अणंतरागमे परंपरागमे । न अनन्तरागम है, अपितु परम्परा गम है । से तं लोगुत्तरिए । से से आममे । से तं गाणगुणप्पमाणे। . लोकोसर समाप्त । आगम समाप्त । बामगुण प्रमाण -अणु मृ० ४३६-४७० समाप्त । दसणगुणप्पमाणं दर्शनगुण प्रमाण३०.९०-ते कि त बसणगुणप्पमाणे । ३०. प्र..--दर्णनगुण प्रमाण कितने प्रकार का है ? ज० -बसणगुणप्पमाणे बउन्विहे पणते । तं जहा 30.-दर्शनगुण प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है । यथा-- १. चक्षुवंसणगुणप्पमाणे, २. अचक्षुसगगुण- (१) चक्षुदर्शनगुण प्रमाण, (२) अचक्षुदर्शनगुण प्रमाण, प्पमागे, ३. ओहिवंसगगुगष्यमाणे, ४. केवलदसण- (३) अवधिदर्शनगुण प्रमाण, (४) केवलदर्शनगुण प्रमाण । गुणप्पमाणे य। चपखुबसणं-वखुदंसणिस्स घड-पा-का-रहाविएम (१) चक्षुदर्शन–चतुदर्शनी के घट, पट, कट, रथ आदि द्रव्यों बम्वेसु । के देखने में है। अनक्लदसण-अचक्खुसणिस्स मायमा । (२) अत्रक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शनी के अपने आपको देखने में है । ओहिदसणं-ओहिदसणिस्त सम्वविवस्वेहि न पुण (३) अवधिदर्शन-अवधिदर्शनी के सर्व रूपी द्रव्यों के देखने सवपज्जवेहिं । । में है, सर्व पर्यवों के देखने में नहीं । केवलमणं-केवालदसगिस्त मश्वरवेहि सध्यपज्जा (४) केवलदर्थन केवल दर्शनी के सर्वद्रव्य और सर्वपर्यायों बेहि य । से तं दसणगुणप्पमाणे । के देखने में है। -वर्शन गुण प्रमाण समाप्त । अणु मु. ४७१ परित्तगुणप्पमाण चारित्रगुण प्रमाण३५. ५०-से मि तं चरितगुणप्पमाणे? ३१. प्र. चारित्रगुण प्रमाण कितने प्रकार का है? उ.--परित्तगुणष्पमाणे पंचविहे पण्णते, तं जहा- ___ 30-चारित्रगुण प्रमाण पाँच प्रकार का कहा गया है। यथा
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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