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________________ २२] परगानुयोग ज्ञानगुण-आगम प्रमाण सूत्र २८ १०-से कि त सम्बप्ताहम्मे ?, उ.--सम्बसाहम्मे ओयम्भ पास्थि । तहा वि तस्स ओवर्म कीरइ। जहा अरिहते हि अरिहंतसरिस कर्य । एवंपक्कट्टिणा चक्कट्टिसरिसं कयं । बलदेवेण बलदेवसरिसं कयं । वासुदेवेण वासुदेवसरित कर । साढणा साहुसरिसं कयं। से तं सव्वसाहम्मे । से तं साहम्मोवणीए । प...-कहं बेहरूपागदए उ०—वेहम्मोवीए तिविहे पण्णसे, सं जहा १. किचिवेहम्मे, २. पायवेहम्मे, ३. सव्ववेहम्मे । प०-से कि त फिनिवेहम्मे ? -किंचिवहम्मे == जहा सामलेरो न तहा बाहूलेरो, जहा बाहुलेरो मतहा सामलेरो। से तं किंचिवेहम्मे । १०--से कि तं पायवेहम्मे ? उ.--पायवेहम्मे = जहा पायसो न सहा पाथसो । जहा पायसो न तहा बायसो। से तं पायवेहम्मे । १०-से कि त सध्ववेहम्मे ? उ०-सभ्योहम्मे = नयि ओषम्मे । तहावि तेणेव तस्स ओवम्म कोर। जहा-नोएण नीयसरिसं क्रयं । बासेग राससरिसं कयं । काकेण फाकसरिस कयं । साणेप साणसरिसं कयं । पाण पाणसरिस कर्य। से तं, सव्वदेहम्मे । से तं वेहम्मोवणीयं । से तं ओवम्मे। २९. ए.-से कि आगमे? स.-आगमे दुबिहे पणतं । तं जहा १. लोइए य, २. लोगुत्तरिए य । ५०-से कितं लोहए? उ.- लोए जण इम अण्णागिएहि मिच्छादिदिएहि संख्छंद बुद्धि मह विगप्पियं । तं जहाभारहं रामायण-जाद-वस्तारि य या संगोषंगा। से तं लोइए आगमे। प्र--सर्व साधर्म्य का स्वरूप कैसा है ? उ.-सर्व साधम्र्योपमा होती ही नहीं है, फिर भी उपमा की जा रही है.-- अरिहन्तों से अरिहन्तों का साधर्म, इसी प्रकारचक्रवर्ती से चक्रवर्ती का साधर्म्य. बलदेव से बलदेव का साधर्म्य, वासुदेव से वासुदेव का साधर्म्य, साधु से साधु का साधम्यं । --सर्व साघम्यं समाप्त । साधम्योपमीत समाप्त । प्र-वधम्मोगमा कितने प्रकार की है ? उ.-वैधोपमा तीन प्रकार की कही गई है। यथा(१) अल्प वैधम्यं, (२) अर्ध वैधम्य, (३) सर्व वैधम्यं । प्र०-अल्प वैधर्म्य का स्वरूप कसा है ? उ.-अल्प वैधयं = यथा-जैसी श्याम गाय है वैसी श्वत गाय नहीं है, जैसी श्वेत माय है वैसी श्याम गाय नहीं है । " अल्प वैधयं समाप्त । प्र--अर्ध वैधयं का स्वरूप कैसा है? उ.-अर्ध वैधर्म्य = पथा-सा काम (कोमा) है वैसा पायस (क्षीर) नहीं है, जैसा पायस है जैसा वायस (काक) नहीं है। -वार्ध धर्म समाप्त । प्रक- सर्व वैधम्योपमा का स्वरूप कैसा है? उ.-सर्व वैधम्योपमा = होता ही नहीं है, फिर भी उसकी उपमा की जा रही है। यथा----नीच ने नीच जमा किया, दास ने दास जैसा किया, काक ने काक जैसा किया, श्वान ने श्वान जैसा किया, प्राणी ने प्राणी जैसा किया है। -सर्व बघय समाप्त। वंध्यम्योपनीत समाप्त। उपमा समाप्त। २६. प्र.-आगम कितने प्रकार के है ? उ.-मागम दो प्रकार के कहे गये है । यथा(१) लौकिक आगम, (२) लोकोत्तर आगम । प्रा-लौकिक कितने प्रकार के हैं ? उ०-लौकिक आगम यथा-अज्ञानी मियादृष्टिमों की स्वच्छन्द बुद्धि से विरचित । भारत, रामायण यावत मांगोपांग चारों वेद । -लोकिक मागम समाप्त ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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