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सूत्र २७-२८
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संगणी ग्राहा अनस निम्म कसिणा व गिरीसविज्युयामहे । यणियं वाजन्भरमा, संज्ञा रत्ता य विद्धाय ॥ ॥ वारुणं वा माहिद वा अणपरं वा पत्थं उप्पार्थ पासिता ते णं साहिज्जर - जहा सुट्टी भविस्स से तं भणागवकालगणं ।
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एतं जहा१. तीतकालगणं, २. पष्पन्न कालगणं, ३ अणागम
१०- से कि तं तीतका लगहणं ?
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० - तीतकालग्रहणं मित्तणाई बधाई, अणिष्णसरसं च मेग मुक्कादि कुरवाई पाशात जहासी । से तंवरणं ।
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पसे कि तं पयणकाल महणं ?
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उ०- पड़प्पण्णकाल गहणं सा गोवरगावयं अलममाणं पावसासह बहा कालहणं ।
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सेतं
प० - से कि तं अगागयकाल गहणं ?
० अणा राय का लगहणं अग्गेयं वा वायव्यं वा अण्णपरं या अप्पस उप्पार्थ पासिता तेणं साहित्य जहा कुपी विस
विशेससितं
गागं से दिसावं । सेतं अणुमा
२६.० सेकितं ओबम्मे ?
ज्ञानगुणं - उपमा प्रमाण
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१. सम्म
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प०से कि तं साम्योवणीए ?
उ०- साहम्मोवणीए तिविहे पण्णसं, त जहा -
प० - से कि तं पश्साहम्मे
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१. किचिसाम्मे, २. पायसाम्मे ३. सम्य साम्मे य ।
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सेकसम्मे? उ०- किचि साम्मे जहा नंबशे तहा सरिसको, जहा सरिसवोतहा मंदरी । जहा समुद्दो तहा गोष्वयं, जहा गोप्यं तर समुद्दो जहा चंवो तहा मुन्बो, जहा कुछ वहा से से।
साम्मे जहा दो तहा गबधो, जहा गवयो लहा गो से तं पायसाहुम्मे
धर्म प्रज्ञापा
संग्रहणीगचा
स्वच्छ आकाश, कृष्ण वर्ण के बादलों में बिजली की चनक, और सर्जनात रतन संध्या माणादिनों का योग, अन्य प्रशस्त उत्पात इनको देखकर "सुवृष्टि होगी" ऐसा अनुमान करना |
- अनागत काल ग्रहण समाप्त । इनसे विपरीत तीन प्रकार का ग्रहण होता है। यथा(१) अतीतकाल ग्रहण, (२) वर्तमानकाल ग्रहण, (३) अनागतकाल
ग्रहण |
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प्र० - अतीवाल ग्रहण का स्वरूप कैसा है ?
उ०- अतीतकाल ग्रहण यथा- तृणरहित बन, धान्य रहित खेत कुण्ड, गर, नदी, इह देवकर"यहां वर्षा नहीं हुई है" ऐसा अनुमान करें।
तालाब आदि
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- अतीतकाल ग्रहण समाप्त
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प्र० - वर्तमानकाल ग्रहण का स्वरूप कैसा है ?
उ०- गोचरी गया हुआ साधु मात आदि का अलाभ देखकर- "मी दुनिया जाने
- वर्तमानकाल प्रहण समाप्त ।
प्र०—अनागतकाल ग्रहण का स्वरूप कैसा है ?
उ०- अनागतकाल ग्रहण यथा -- अग्नि कोण या वायव्य कोण का वायु अन्य अप्रशस्त उत्पात देखकर "भविष्य में वर्षा नहीं होगी ऐसा सोचना ।
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-अनागतकाल ग्रहण समाप्त विशेषदृष्ट समाप्त दृष्ट साधर्म्य समाप्त अनुमान समाप्त ।
२८. प्र० उपमा कितने प्रकार की है ?
उ०- उपमा दी प्रकार की कही गई है। यथा
(१) मा ) धरा
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प्र० - साधम्योपमा कितने प्रकार की है ? उ०- साधम्योपमा तीन प्रकार की कही गई हैं। यथा-(१) अल्प साधम्यं, (२) अर्ध साधन्य, (३) सर्वसाधम्यं ।
प्र० - अर्थ साधर्म्य का स्वरूप कैसा है ? उ०—अर्ध साधर्म्य – यथा— जैसी जैसा गवय है, वैसी गाय है ।
प्र० -- अल्प साधम्यं का स्वरूप कैसा है ?
उ० – अन्य साधर्म्य – जैसा मन्दर पनंद वैसा सरसों है, जैसा सरसों है, वैसा मन्दर पर्वत है । जैसा समुद्र है वैसा गोपद है, जैसा गोपद है वैसा समुद्र है। जैसा चन्द्र है वैसा कुन्द है, जैसा
है।
-अप साधर्म्य समाप्त ।
गाय है वैसा गवय है, - अर्ध साधम्यं समाप्त ।