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घरणानुयोग
मानगुण-अनुमान प्रमाण
पत्र २७
१०-से कि सं आसएवं?
प्र०--आश्य का स्वरूप कसा है ? -आसएन माग घूमेणं, सलिलं बलागाहि, बुद्ध ज-आश्रय = यथा-अग्नि धूम से, पानी बगुलों से, वर्षा अविकारेणं, कुलपुत्तं सोजसमायारेणं ।
बादल से, कुलपुत्र सदाचार से। संगहणी गाहा--
संग्रहणी गाथार्थइंगियागार गेहि किरियाहि भासिएप ।
अन्तर्मन के भाव अंगचेष्टाओं से, क्रियाओं से, वाणी से, नेत-वक्कविकारेहि गिजमए अंतगं मणं ॥-॥ आँख और मुख के विकारों से जाने जाते हैं। से जानए सस ।
-आश्रय से समाप्त । शेषवत समाप्त । १०-से कितं विटुसाहम्मवं ?
प्र०-दृष्टसाधर्म्य (माम्य) कितने प्रकार का है ? उ०-विटुसाहम्मवं बुविहं पपणतं, तं जहा--
१०-दृष्टसाधर्म दो प्रकार का कहा गया है । यथा-- १. सामाणविटु य, २. बिसेसविट्ठय।
(१) सामान्यदृष्ट, (२) विशेषदृष्ट । ५०-से कि तं सामण्णविटु ?
प्र०-सामान्यदृष्ट का स्वरूप कैसा है ? ३०-सामण्णविदु-जहा–एगा पुरिसो सहा बहवे पुरिसा, उ०-सामान्यदृष्ट= यथा-सा एक पुरुष है वैसे अनेक
पुरुष हैं। जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो।
जैसे अनेक पुरुष है वैसा एक पुरुष है। जहा एगो करिसावमो, तहा बहये करिसावणा, जैसा एक कृषक है वैसे अनेक कृषक हैं। महा बहवे करिसावगा, तहा एगो करिसाषणो। जैसे अनेक कृषक हैं वैसा एक कृषक है। से तं सामण्णदिह्र1
-सामान्यदृष्ट समाप्त । प०-से कि त बिसेसविटु?
प्र-विशेषदृष्ट का स्वरूप कैसा है ? जल-विसेसहिद'-से जहाणामए केइपुरिसे कंचि पुरिस उ०-विशेषदृष्ट = यथा-जिस प्रकार कोई पुरुष किसी
बरयं पुरिसाणं मग पूस्वविट्ठ पञ्चभिजाणेज्जा- पूर्व दृष्ट पुरुष को अनेक पुरुषों के बीच में देखकर यह जाने की 'भयं से पुरिसे।
यह यह पुरुष है। बरणं वा करिसाषणाणं माझे पुश्वविद करिसावणं पूर्व दृष्ट कृषक को अनेक कृषकों के मध्य में देखकर बह जाने पच्चभिजाणेज्जा । 'अयं से करिसावणे'।
कि-'यह वह कृषक है।' सस्स समासओ तिविहं गहणं भवति, तं जहा- उसका तीन प्रकार से ग्रहण होता है । यथा१. सीतकालगहणं, २. पप्परकालगहणं, ३. अणा- (१) अतीतकाल ग्रहण, (२) वर्तमानकाल ग्रहण, गयकालगहणं।
(३) अनागतकाल ग्रहण । प.-से कि तं सीसकालगण?
प्र-अतीतकाल ग्रहण का स्वरूप कैसा है ? उ०-तीतकालमहर्ण= उत्तिपणाणि यणाणि, मिष्फणसम्स उ०-अतीत काल ग्रहण = यथा - घास बाले वन, पके हुए
मा मेरिणि, पुण्गाणि य कुण्ड-सर णवि-बीहिया-सला- धान्य वाले खेत, भरे हुए कुण्ड, सर--नदी, बापड़ी, तालाब पाईपासित्ता, तेणं साहित्य महा सुट्ठी आसि। आदि देखकर यह निर्णय करे कि यहाँ अच्छी वर्षा हुई है। से तं तीतकालगहणं ।
--अतीतकात ग्रहण समाप्त । प०-से कि तं पडुप्पणकासमहणं?
प्र०-वर्तमानकाल ग्रहण का स्वरूप कैसा है? 1०-पडप्पण्णकालगहण साहु गोपरगगयं विच्छड्डिययज- उ०-वर्तमानकाल ग्रहण=यथा --गोचरी गया हुआ साधु
रमस-याचं पासित्ता । तेणं साहिग्जद जहा सुभिरखे प्रचुर भात-पानी देखकर यह जाने कि यहाँ सुभिक्ष है। बट्टा । से सं पडुपण्णकालगणं ।
-वर्तमानकाल ग्रह्ण समाप्त। प०-से कि तं अणाययकालगणं?
प्रक-अनागतकाल ग्रहण का स्वरूप कैसा है ? २०---अणायकालगहणं ।
६०-अनागतकाल ग्रहण-यथा