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पत्र २७
जामगुण प्रमाण-अनुमान प्रमाण
धर्म प्रज्ञापमा
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५०-से किं तं पुण्यवं?
प्र०-पूर्ववत् कितने प्रकार का है। ज०-पुण्यवं पंचविहं पण्णसे, तं जहा
ज-पूर्ववत् पाँच प्रकार का कहा गया है । यया -- १. खतेग या, २. वणेण वा. ३. मसेण बा, ४. संछ- (१) क्षत से, (२) वर्ग से, (३) मसे से, (४) लांछन से, पेण वा ५. तिलएण वा।
(५) तिल से। संगहणी गाहा .
संग्रहणी गाथामाता पुत्तं जहा गट्ठ, जुवाणं पुणगय ।
किसी माता का पुत्र बाल्यकाल में भाग गया, जबान होने काई पच्चमिजागेज्जा, पुलिगेण केगद ।।-॥ पर घर आया तो माता ने किसी पूर्व चिन्ह से उसे पहनाना । से तं पुवई ।
-पूर्ववत (प्रमाण) समाप्त। प०-से कि तं सेसवं?
प्र-शेषवत् कितने प्रकार का है? २०-सेसवं पंचविहं पण्णतं, तं जहा--
उ.-शेषवत् पाँच प्रकार का कहा गया है । यथा१. कज्जेण, २. कारणेणं, ३. गुणेणं, ४. अवययेणं, (१) कार्य से, (२) कारण से, (३) गुग ले, (४) अवयव से, ५. आसएणं।
(५) आश्रय से। ९०-से कि तं कोण?
प्र०--कार्य का स्वरूप कैसा है ? उ०-कम्जेणं- संखं सहेग, भेरि तालिएणं, वसभं किएणं, उ.-कार्य-यथा--शंख शब्द से, भेरी बजाने से,
मोर केकाइएणं, हयं हिसिएणं, गयं गुलगुलाइएणं, वृषभ घडुकने से, मयूर केकारव से, अव हिनहिनाट ने, गज रहं धणधणाइएक, से ते कज्जेणं ।
गुलगुलाट से।
-कार्य से समारत। ५०-से कि तं कारणेणं?
प्र० -कारण का स्वरूप कैसा है ? उ०-कारणेणं =तंतवो पडस कारणं, न पडो संतुकारणं, उ०—कारण = यथा तन्तु पट के कारण हैं, पट तन्तुओं
का कारण नहीं है । पोरणा कास्स कारणं, न करो वीरणकारणं,
कलाकायें चटाई के कारण हैं, चटाई मालाकाओ का कारण
नहीं है। मिपिडो घडस्स कारणं, न घडो मिप्पिडकारणं । मृत्पिश्ट घट का कारण है, घट मृत् पिण्ड का कारण से तं कारणेणं ।
नहीं है।
-कारण से समाप्त ५०-से कि तं गुणणं?
प्र०—गुण का स्वरूप कैसा है ? ३०--गुणेणं-सुवणं निकसेगं, पुष्कं गयेणं, लवणं रसेणं, 30-गुण = यथा -सुदणं कसौटी से, पुष्प गन्ध से, लवणी
मदिरं आसायिएणं, वत्थ कामेणं, से तं गुणेणं। रस से, मदिरा आस्वाद से, वस्त्र स्पर्ण से। -गुण से समाप्त प०-से कि तं अवयवेणं?
प्र-अवयव का स्वरूप कैसा है ? उ०-अवयवेणं महिसं सिंगेणं, कुक्कुडं सीहाए, हथि उ..--अवयव=यपा-भंसा सोंग से, मुर्गा शिखा से, हाथ
विसाणे वराहं दाढाए, मोरं पिछेणं, आसं खुरेणं, दान्त से, बराह दाढा से, मोर पिच्छ से, अश्व चुर से, व्याघ्र बग्धं नहेग, चमरं वालपडेणं, दुपयं मणुसमाइ, चन- नखों से, चामर गाय केशों के गुच्छ से, द्विपद-मनुष्यादि, चतुष्पद पर्य गवमाइ, बहुपयं गोम्हियाइ, सोहं केसरेणं, यसहं गाय आदि, बहुपद रोह आदि, सिंह केस जटा से, वृषभ ककुध से, ककुहेणं, महिलं बलयबाहाए ।
महिला चूड़ा से। संगहाणी याहा
संग्रहणी गापार्षपरियर कंधेण मां, जाणिज्ज महिलियं णिवसेणेणं ।
योधा कमर बन्ध से, महिला वेषभूषा से, सिस्थेण चोणपागं, कवि च एक्काए गाहाए ।।।
द्रोणपाक कण से, कवि एक गाथा से । से तं अश्यवेणं ।
-अवयव से समाप्त
१ दन्तभृग-हाथीदांत