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________________ सूत्र ५८-८६१ नौ प्रकार की शुबमिक्षा पारित्राचार : एषणा समिति [५३६ उम्गमुप्पयाणं पढमे, बोए सोहेम्ज एसणं । वतार शिशुपाने सनथम उनम और उत्पादन परिमार्थमि पउपक, विसोहेज जय जई॥ दोनों के १६-१६ दोषों का शोधन करे । दूसरे में एषणा के १० दोषों का शोधन करे। फिर परिभोगेषणा के दोष-चतुष्क (संयोजना, अप्रमाण, -उत्त. अ. २४, गा. ११-१२ अंगारधूम और कारण) का शोधन कर आहार करे । नवविहा सुद्धभिक्खा नौ प्रकार की शद्ध भिक्षा५६. समगेणं भगवता महावीरेणं समणरणं निरगंयाणं णवकोकि- ८५६. श्रमण भगवान महाबीर ने श्रमण निग्रन्थों के लिए नौ परिसुळे भिक्खे पण्णते, तं जहा कोटि परिशुद्ध भिक्षा का निरूपण किया है। जैसे-- १. न हद (१) हिंसा नहीं करता है, २. न हणावड, (२) हिंसा नहीं करवाता है, ३, हणतं नाणुजागह। (३) हिंसा करने वाले का अनुमोदन नहीं करता है। ४. ने पयह (४) पकाता नहीं है, ५. न पयापेइ, (५) पकवाता नहीं है। ६. पयंत नागुजाणइ। (६) पकाने वाले का अनुमोदन नहीं करता है। ७. न किगड, (७) खरीदता नहीं है, ८. न किणावेह, (८) खरीदवाता नहीं है, ६. किणतं नाणुमागइ।। (६) स्वरीदने वाले का अनुमोदन नहीं करता है। --ठाणं, अ. ६, सु.६८१ आहारपायणिसेहो माहार-पाचन का निषेध८६.. तहेव भत्त-पाणसु, पयर्ग पयावर्गसु य । ८६०. भक्त-पान के पकाने और पकवाने में हिंसा होती है, अतः पाण-भूयदयटाए, न प्ये न पयायए ॥ प्राण, भूत, जीव और सत्व की दया के लिए भिक्षु न पकाए और न पकवाए। जल-धमनिस्सया मौवा, पुढयो-कट्ठनिस्सिया। भक्त और पान के पकाने और पकवाने में जल और धान्य हम्मन्ति प्रत्तपाणेसु, तम्हा मिक्खू न पयावए । के आश्रित तथा पृथ्वी और काष्ठ के आश्रित जीवों का हनन -उस. अ. ३५, गा. १०-११ होता है, इसलिए भिक्षु न पकाए न पकवाए । छश्विहा गोयरिया-- छह प्रकार की गोचरी - २६१. छबिहा गोवरचरिया पग्णता, तं जहा ८६१. छह प्रकार की गोचरचर्या कही गई है, यथा१. पेडा, (१) पेटा-चोकोर पेटिका के आकार से घूमते हुए दिशाओं में भिक्षाचर्या करना। २. अबपेडा, (२) अर्धपेटा--अर्द्ध पेटिका के आकार के दो दिशाओं में भिक्षाचर्या करना। ३. गोमुत्तिया, (३) गोमूत्रिका-बैल के मुत्रोत्सर्ग के समान एक इस पंक्ति के घर में और एक सामने वाली पंक्ति के घर में इस क्रम से भिक्षाचर्या करना। ४. पतंगविहिया, (४) पतंगवीयिका-पतंगिये के फुदकने के समान बिना किसी क्रम के भिक्षापर्या करना । ५. संयुक्कसट्टा, (५) शंबुकावर्ता--- शंख के आवतों की तरह घूमते हये भिशाचर्या करना। १ आ. सु. १,अ. २,, ५, सु.८६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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