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परगानुयोग
अवगृहीत आहार के प्रकार
सूत्र ६५४-८५८
१. फलिओयहरे,
(१) फलितोपहृत-अनेक प्रकार के व्यंजनों से या खाद्य
पदार्थो से मिथित आहार। २. सुखोवहरे,
(२) शुद्धोपहृत - व्यंजन रहित शुद्ध आहार अथवा कांजी
या पानी के अल्पलेप से लिप्त आहार । ३. संसट्ठोषहां।'
(३) संसृष्टोपहत-गृहस्थ में खाने की इच्छा से आहार --ठाणं. अ. ३, उ, ३. सु. १७८ हाथ में लिया है किन्तु मुंह में नहीं रखा है-ऐसा आहार । ओग्गहियआहारप्पयारा
अवगृहीत आहार के प्रकार८५५. तिविहे ओग्गहिए पण्णते, तं जहा
८५५. अवगृहीत (परोसने के लिए रसोईघर या कोठार से
निकाला हुआ) आहार तीन प्रकार का कहा गया है, यथा१.जंच ओगिण्हा,
(१) परोसने के लिए ग्रहण किया हुआ । २. नंच साहाह.
(२) परोसने के लिए ले जाता हुआ। ३. जंच आससि पक्खिवइ ।' एमे एपमाहंसु ।
(३) वर्तन के मुख में डाला जाता हुआ। कुछ आचार्य ऐसा
कहते हैं। एगे पुण एवमाहंसु ।
परन्तु कुछ आचार्य ऐसा भी कहते हैं - बुविहे ओग्गहिए पण्णते, तं जहा
अवगृहीत आहार दो प्रकार का है, यथा१. जंच ओरिहा
(१) परोसने के लिए ग्रहण किया जाता हुआ। २. जंच आसंगसि पक्खिवइ ।
(२) पुनः बर्तन के मुख में डाला जाता हुआ ।
-बब, उ. ६. मु. ४६ णबविगईओ---
विगय विकृति के नौ प्रकार८५६. णव विगतीतो पन्नताओ, त जहा
८५६. नौ विकृतियाँ कही गई है.--- १. खोरं, २. दधि, ३. गवणीतं, ४, सप्पि, ५. तेल्ल, (१) दूध, (२) दही, (३) नवनीत (मम्खन), (४) वी, ६. गुसो, ७. महुं, ८. मज्जं, ६. मंसं ।
(५) तेल, (६) गुड़, (७) मधु, (८) मध, (६) माँस ।
-ठाणं. अ., सु. ६७४ अपणायविगईणप्पगारा
विगय के अन्य प्रकार८५७. पत्तारि गोरलविगतीओ पन्नताओ, सं जहा
८५७, गोरसमय विकृतियाँ चार हैखीर, वहि, सप्पि, गवणीतं ।
(१) दुध, (२) दही, (३) घेत, (४) नवनीत । चप्तारि सिविगतीओ पन्नत्ताओ,तं जहा
स्नेह (चिकनाई) मय विकृतियाँ चार हैंतेल्लं, घ, वसा, णवणोतं ।
(१) तैल, (२) घृत (३) बसा, (४) नवनीत । चत्तारि महाविगतीओ पनत्ताओ, तं जहा---
महाबिकुतियां चार हैमई, मसं, मज, गवणीतं ।
(१) मधु, (२) मांस, (३) मद्य, (४) नवनीत । -ठाणं, अ., ज.१, सु. २७४
तिविहा एसणा८५८, गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणा व जा।
आहारोहि सेज्जाए, एए तिति विसोहर ।।
तीन प्रकार की एषणा८५६. आहार, उपधि और शय्या के विषय में गवेषणा, ग्रहणेषणा और परिभोगेषणा इन तीनों का विशोधन करे ।
१
व.उ.६, सु. ४५
२
ठाणं. अ. ३, उ.३, सु. १८८