________________
सूत्र ८५२८५४
चार प्रकार के आहार
चारित्राचार : एषणा समिति
५३७
-
-
-
-
.
२. परिबक्ता माममा पो गतिता, .
(२) परिवजिता, न निपतिता--कोई पक्षी अपने घोंसले से
उड़ सकता है, किन्तु (भीरु होने से) नीचे नहीं उतर सकता । ३. एगे णितिसा वि परिषइत्साधि,
(३) निपतिता भी, परिव्रमिता भी - कोई समर्थ पक्षी अपने घोंसले से नीचे भी उड़ सकता है और ऊपर भी उड़
मकता है। ४. एगे णो णिपतित्ता गो परिवइस्ता,
(४) न निपतिता, न परिवनिता- कोई पक्षी (अतीव बाल्यावस्था होने के कारण) अपने घोंसले से न नीचे उतर
सकता है और न ऊपर ही उड़ सकता है। एवामेय चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा -
इसी प्रकार भिक्षु भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे - १. णिवतित्ता णाममेगे णो परिवाइसा,
(१) निपतिता, न परिवजिता-कोई भिक्षु भिक्षा के लिए निकलता है, किन्तु रुग्ण आदि होने के कारण अधिक धूम नहीं
सकता। २. परिवइत्ता णाममेगे जो णिवतित्ता,
(२) परिवजिता, न निपतिता–कोई भिक्षु भिक्षा के लिए घूम सकता है, किन्तु स्वाध्यायादि में संलग्न रहने से भिक्षा के
लिए नि ल नहीं सकता। ३. एगे णिवतिता वि परिवत्ता वि,
(३) निपतिता मी, परिजिता भी कोई समर्थ भिक्षक
भिक्षा के लिए निकलता भी है और घूमता भी है। ४. एगे जो णिवतित्ता णो परिवइत्ता।
(४) न निपतिता, न परिवजिता - कोई नवदीक्षित अल्प-ठाणं.. ४.उ. ४, सु. ३५२ वयस्क भिक्षुक न भिक्षा के लिए निकलता है और न घमता
चउविहो आहारो५३. मणुस्साणं चउबिहे आहारे पलते, तं जहा१. असणे,
२. पाणे, ३. खाहमे, ४. साइमे ।' चविहे आहारे पन्नते, जहा१. उबक्खरसंपन्ने,
चार प्रकार के आहार-- ८५३. मनुष्यों का आहार चार प्रकार का होता है
(१) अशन-अन्न आदि, (२) पान-पानी, (३) खादिम-फल, मेवा आदि, (४) स्वादिम-ताम्बूल, लवंग इलायची आदि। आहार चार प्रकार का कहा गया है, जैसे
(१) उपस्कार-सम्मन्न -अधार से युक्त मसाले डालकर छोंका हुआ,
(२) उपस्कृत-सम्पन्न-पकाया हुआ भात आदि, (३) स्वभाव-सम्पन्न -स्वभाव से पका हुआ फल आदि, (४) पर्युषित-सम्पन्न-रातवासी रखने से जो तैयार हो ।
२ उबक्खडसंपन्ने, ३. सभावसंपन्ने ४. परिजुसितसंपन्ने।
-ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. २९५ तिविहो आहारो८५४ तिविहे उवहजे पण्णते, तं जहा
तीन प्रकार का आहार८५४. उपहृत (खाने के लिए लाया गया) आहार तीन प्रकार का माना गया है, यथा
१
ठाणं. अ. ४, उ.४, सु. ३४०,