SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 568
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३६ ] चरणानुयोग १. तयक्वायसमाणे, २.. २. मार्ग, ४. सारक्वायसमार्ण । १. तयवसायमाणस्स में भिवखागस्स सारवला यसमागे तवे पण्णत्ते । २. सारखायमाणस्स णं भिक्खागस्स तयवसायसमाणे तवे पण ते । ३. तवे पण ते । समास णं भिक्वागस्स स्क्वासमा ४. कटुक्खायमाणस्स णं निश्वागस्व छल्लित्वायसमाणे तवे पण्णत्ते । - ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २४३ भिखावित्तिणाभिमण्डोमा ८५१. चत्तारि मच्छा पण्णत्ता, तं जहा१. अनुसोयचारी, २. पोवारी ३. अतवारी, ४. मारी। एवमेव चारि भिक्खागा पण्णत्सर, तं १. अनुसोयचारी, २. पडिसोपचारी भिक्षावृत्ति के निमित्त से भिक्षु को मस्य को उपमा २.तवारी, ४. मज्झचारी । जहा जहा - १. वित्तानामयेगे जो परिवदसा, भक्तावित्तिणाभिरसविगोषमा ८५२. सारी पक्खी पण्णत्ता, तं (१) त्वक्-खाइ - समान नीरस, रूक्ष, अन्त प्रान्त आहार भोजी साधु । (२) छल्ली - बाद- समान = अलग. आहार भांजी साधु । (२) समान दूध दही मृतादि से रोहत (विगगरहित) आहार भोजी सर सूत्र ८५०-८५१ (८) सार-खाद- समान = दूध, दही, घृतादि से परिपूर्ण आहार मोजी साधु | (१) स्व-खाद समान भिक्षुक का तप सारखादघुण के समान कहा गया है । (२) सार-स्वाद समान भिक्षुक का तप त्वक् खाद-धुण के समान कहा गया है। (३) छल्ली खाद - समान भिक्षुक का तप काष्ठ- खाद घृण के समान कहा गया है। (४) काष्ठ-वाद समान भिक्षुक का तप मल्ली-साद घुण के समान कहा गया है। 412 भिक्षावृत्ति के निमित्त से भिक्षु को मत्स्य की उपमा८५१. मत्स्य चार प्रकार के कहे गये है। जैसे(१) अनुत्रतवारी प्रवाह के अनुकूल मत्स्य (२) प्रतिवारी जलवाह के प्रति चलने वाला मत्स्व । (३) अन्तचारी जल प्रवाह के किनारे किनारे चलते वाला मत्स्य | (४) मध्यचारी - जलप्रवाह के मध्य में चलने वाला मत्स्य । ठा. अ. ४, उ. ४, सु. ३५० भिक्षा लेने वाला | इसी प्रकार भिक्षु भी चार प्रकार के कहे गये हैं जैसेअनुवोतचारी उपाश्रय से लगाकर सीधी गली में स्थित बरों से भिक्षा लेने वाला । (२) प्रतिस्रोतारी - गली के अन्त से लगाकर उपाश्रय तक स्थित घरों से भिक्षा लेने वाला । (३) अन्तचारी नगर ग्रामादि के अन्त भाग में स्थित घरों से भिक्षा लेने वाला । (४) मध्यचारी - नगर यामादि के मध्य में स्थित घरों से भिक्षावृत्ति के निमित्त से भिक्षु को पक्षो की उपमा८५२. पक्षी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे— (१) निपतिता न परिवर्तिताको पक्षी अपने पोसने से नीचे उतर सकता है, किन्तु (बच्चा होने से ) उड़ नहीं सकता।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy