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________________ सूत्र ८४२-८४३ एषणा समिति चारित्राचार : एषणा समिति [५३३ एषणा समिति-१ एसणा समिह एषणा समिति - ८४२. पिसेरजं च वायं च, चउत्थं पायमेव य। ८४२. माधु या साध्वी अकल्पनीय पिण्ट (आहार) शय्या (वसति अम्पियं न इच्छेना, पडिम्गाहेज कम्पियं ।। उपाश्रय या धर्मस्थानक) वस्त्र (इम सीन) और चौथे पात्र को --दम. अ. ६, मा. ४७ ग्रहण करने की इच्छा न करे, ये कल्पनीय हो तो ग्रहण करे । पिडषणा-स्वरूप एवं प्रकार-२ सव्वदोसविप्पमुक्कआहारसरूवं सरोगमुक्त हार का - ८४३. ५०-अहले ! सस्थातीतस्स सस्यपरिणानितस्स एसियस ८४३. प्र. भगवन् ! शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, वेनियस्स सामुदाजियस्स पाणमोषणस्स के अ? पण्णते ? वेपित नया मामुदानिक भिक्षारूप पान-भोजन का क्या अर्थ कहा गया है? उ.-गोयमा ! जे गं जिग्गथे वा णिगंथी वा निक्षित उ०-गौतम ! जो निग्रन्थ या निन्दी शस्त्र और मुमलादि सत्यमुसले वनगतमाला वण्णगविलेवणे घवगत-चुय-चइय- का त्याग किये हुए हैं, पुष्पमाला, वर्णक और विलेपन के त्यागी चत्तदेहं जीवविप्पजद अकयमकारियमसंकप्पियमणाहूत- हैं, देय वस्तु आगंतृक जीवों से रहित है. स्वतः परतः च्यवन मकीतकारमादिटुनवकोडोपरिसुद्ध' वसवोसविप्पमुक्क उग्ग- और देह त्यागने से जीव रहित है, अर्थात् अचित्त है तथा जो मउपायणेसणासु परिमुख' बीतिगालं बोतधूमं संजोयणादोस- माधु के लिए न बनाये हुए. न बनवाये हुए, अमंकल्पित. अनिविष्पमुक्कं असुरसुरं अचवचवं अतमविलंबित अपरिसाडि मंत्रित. साध के लिए न ख़रीदे हुए, न बनाये हुए, नव कोटि अक्खोवंजण-वणाणुलेबणभूतं संयमजातामायावत्तिय संजममार- विशुद्ध, दस प्रकार के दोषों से रहित उद्गम उत्पादन एवं एपणा वहणयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अपागंणं आहारमाहारेति। सम्बन्धी दोषों से सर्वथा रहित, अंगार, धूम, संयोजना दोष रहित, सुड-मुड़ न करते हुए, चपचप न करते हुए, न जल्दीजल्दी, न बहुत धीरे-धीर, इधर-उधर न बिखेरते हुए गाड़ी की धरी ने अंजन अथवा घाव पर लेपन करने के समान, केवल संयम यात्रा के निर्वाह के लिए मर्यादा युक्त संयम के भार को वहन करने के लिए, जैसे सांप सीधा बिन में प्रवेश करता है उमी प्रकार सीधा गले के भीवर उतारते हुए आहार करता है। एस गोयमा] सस्थातीतस्स सस्थपरिणामितस्स-जाव- मौतम ! यही शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित-यावत्-पान पाण-मोयणस्स अट्ठपण्णते। भोजन का अर्थ कहा गया है। –वि. म. ७, उ. १, मु.२० १ ठाणं अ... सु.६८१ २ १. संकिय, २. मरिचय, ३ निखित्त, ४. पिहय, ५. साहरिय, ६-७. दायगुम्मीमे, ८. अपरिणय, १. लित्त, १०.छड्डिय, एसण दोमा दस हवंति ।। -पिण्डनियुक्ति० गा० ५२० ३ तिविद्दा विसोही पण्णत्वा तं जहा–१. उगमबिसोही, २. उप्णायणविसोही, ३. एसणाविसोही।-ठाणं. अ. ३. उ. ४, सु. १६८ ४ वि. स. ७. उ. १. मु. १८ ५ (क) अकयमका रियमणा हूयमदिळं अकोयकर्ड गवहि य कोडिहिं सुपरिसुदं। दसहि य दोसेहि-विप्पमुक्क, उग्गम-उपायणेसणासुद्धं, यवगयच्यचाविश्चतदेहं च फासुर्य । -प. मु. २, अ. १, सु.५ प्र. अह केरिसयं पुणाद कप्पइ ? (शेष टिप्पण अगले पृष्ठ पर)
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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