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________________ ५२२] चरणानुयोग क्रय-विक्रय के सम्बन्ध में भाषा-विवेक सूत्र ८२८.४१ अहवाहडा अगाहा. बहुसलिप्पिलोदया। (योजनबश कहना हो तो) (नदियाँ) जन से प्रायः भरी यहवित्योदगा पावि, एवं भासेज पनव। हुई हैं, प्रायः अगाध है, बहु-सलिला हैं. दुसरी नदियों के द्वारा -दस. १७, मा. ३०-३६ जन का वेग चढ़ रहा है। बहुत विस्तीर्ण जल वाली है-प्रशा वान भिक्षु इस प्रकार कहे। कयविक्कए भासा विवेगो क्रय-विक्रय के सम्बन्ध में भाषा विवेक८३६. सध्युक्कसं परम्धं वा, अउलं नस्थि एरिसं । ३६. (क्य-विक्रय के प्रसंग में) ग्रह वस्तु गर्योत्कृष्ट है, यह अचपिकयमवत्तव्वयं, अवितं चैव नो थए । बहमूल्य है यह तुलनारहित है, इसके ममान दुसरी कोई वस्तु नहीं है. इसका मोल' करना शपय नहीं है इसकी विशेषता नहीं कही जा सकती है, वह अचिन्त्य है- इस प्रकार न कहें ।। सस्वमेयं वहस्सामि, सम्वमेयं ति नो वए। (कोई सन्देश कहलाए तब ) 'मैं यह सब कह दूंगा', (किसी अणवीइ मनं सन्चत्व, एवं भासेञ्ज पन्नवं ।। का मन्देश देता हुआ (यह पूर्ण है) अविकल या ज्यों का त्यों है), इस प्रकार न कहे। मब प्रमंगों में पूर्वोक मब बनन-विधियों का अनुचिन्तन कर प्रज्ञावान मुनि बसे बाले (जमे कर्मबन्ध सुक्कीयं वा सुविक्कीयं. अकेज्ज केज्जमेव वा । विक्रया की हुई वस्तु के बारे में (यह माल) अच्छा इम गैह इमं मुंच, पणियं नो वियागरे । खरीदा (बहुन सम्ता आया) (यह माल), अच्छा बेचा (बहुत नफा हुआ), यह बेचने योग्य नहीं है, यह बेचने योग्य है, इस माल को ले (यह मंहगा होने वाला है). इस माल को बेन डाल (यह ना होने वाला है)-इस प्रकार न कहे। अप्पर वा महग्घे वा, कए वा विश्कए विवा। अपमुल्य या बहुमूल्य माल के नेने या बेचने के प्रसंग में पणिय? समुप्पन्ने, अणवजं वियागरे । मुनि अगवद्य वचन बोले-ऋय-विक्रय से विरत मुनियों का इस --दम. अ. ७, गा, ४३-४६ विषय में कोई अधिकारी नहीं है, दम प्रकार कहें । भाषा समिति के प्रायश्चित्त-४ अप्पफरुसवयगरस पायच्छित्तसुतं८४०. जे भिक्खू लहसगं फरस बयइ, वयंत वा साइजा। तं सेवमाणे आवन्जन मासियं परिहारदाणं अणग्याइयं । -नि. ३. २, सु. १८ आगाढाइवयणस्त पायच्छित्तसुलं८४१. जे भिक्खू भिक्खू भागावं वयह बयंतं वा साइज्मइ । अल्प कठोर वचन कहने का प्रायश्चित्त सूत्र८४०. जोभिक्षु अल्प कठार वचन कहता है, कहलवाता है, या कहने वाले का अनुमोदन करता है। उसे मामिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चिन) आता है। आगाहादि वचनों के प्रायश्चित्त मूत्र८४१. जो भिक्षु भिक्षु को अपशब्द कहना है, कहलवाता है. कहने के लिए अनुमोदन करता है। जो भिल भिक्षु को कठोर शब्द कहता है, कहलवाता है, कहने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु भिक्षु को अपशब्द और कठोर शब्द कहता है, बाहलवाता है, कहने वाले का अनुमोदन करता है। उसे चातुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। जे भिक्खू मिक्खू फरुसं वयह अयंत मा साइज्जइ । जे भिक्खू मिक्खू नागाह-फहसं वय वयंत या साइन्जद। तं सेवमाने बावजह चाउम्मासियं परिहारदाचं उग्याइय। -नि. उ, १५, सु. १-३
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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