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________________ सूत्र ८२७-८२० गाय आदि के सम्बन्ध में सावध भाया का निषेध परिवृढकार्यं मेहाए णो एवं बवेज्जा "स्ले ति वा, पमेतिले ति वा बट्ट ति वा बज्मे ति वा पादिमे ति या" एतप्पारं भागं सामंतोप्रातियं अभिकं प्यो भासेज्जा | - आ. सु. २, अ. ४, उ. २, सु. ५३९ गो आइसु सावज्ज भासा णिसेहो८२८. से भिक्लू वा भिक्खुणी या विश्वरुवाओ गाओ पहाए को एवं बवेज्जा तं जहा 'गाओ दोसा ति वा दम्मा ति वा. गोरगा ति वा वाहिमा ति या रहजोग्गा तिवा एतत्यारा सा जानवघातियं अभिनं णो भासेजमा । 1 -आ. सु. २, अ. ४, उ. २, सु. ५४१ उज्जाणाइ सावज मासा पिसेहो२९. सेवा क्लूमी या सहेब पुराना पचपाई वनाणि वा रूला महल्ला पेहाए णो एवं बवेज्जा तं जहा "बासायजोन्गा तिवा तोरणजग्गा लिया. हि जोतिबा जिग्यता जोगति वा, गावाजगाति बा उदगदोषिलोग्गर ति था, पीठ- चंगेवरजंगल- कुलिय-जंतलट्ठी-गाभि-गंडी आसणजोग्या तिचा, सयण जाण उवस्यजग्गा तिवा " एसम्पगार मासं सावज्जं जाबभूतोधातियं अभियोज - आ. सु. २, भ. ४ . २. सु. ५४३ बनफले सावज्ज भासा जिसेहो १३४ ८३०. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा बहुसंभूता वणफला पेहाए तहा वि ते णो एवं वेज्जा, तं जहा- 'पक्काई या पायखज्जाई वा. बेलोलियाई वा टालाई वा बेहियाई था ।' 'एतप्पगार मासावर जाव-भूतधातिय अभि को मारा। -आ. सु. २, अ. ४, उ. २, सु. ५४५ चारित्राचार देखकर ऐसा न कहें कि यह स्थूल (मोटा) है. इसके शरीर में बहुत चर्बी मेद है, यह गोलमटोल है. यह व या वहन करने योनोने योग्य है. यह दाने योगा है। इस प्रकार की ) साद्य यावत् — जीवोपघातक भाषा जानकर प्रयोग न करे गाय आदि के सम्बन्ध में सावध भाषा का निषेध - ८२८ साधु या साध्वी नाना प्रकार की गायों तथा गौजाति के पशुओं को देखकर ऐसा न कहे कि ये गायें दुहने योग्य हैं. अथवा इनको दुहने का समय हो रहा है, तथा यह बैल दमन करने योग्य है, यह बुम छोटा है, या यह बहुत करने योग्य है. वृषभ वह रथ में जोतने योग्य है, इस प्रकार की सावध यावत्-जीवोपघातक भाषा जानकर प्रयोग न करे । [२२६ उद्यान आदि के सम्बन्ध में सावध भाषा का निषेध - ८२६. साधु या साध्वी feet प्रयोजनवन किन्हीं में किसी बगीचों पर्वतों पर या वनों में जाकर वहाँ बड़े-बड़े वृक्षों को देखकर ऐसे कहे कि वह वृक्ष (काटकर) कान आदि में लगाने " योग्य है, यह तोरण-नगर का मुख्य द्वार बनाने योग्य है. यह घर बनाने योग्य है यह फलका (तख्त) बनाने योग्य है, इसकी अर्गला बन सकती है, या नाव बन सकती है, पानी की बड़ी कुंडी अथवा छोटी नौका वन सकती है, अथवा यह वृक्ष-नौकी (पीठ) काप्ट मयी पात्री, हल, कुलिक, यंत्रयष्टी (कोल्हू ) नाभि कोष्ठमव अहन. काष्ठ का आसन बनाने के योग्य है अथवा काष्ठमय्या ( पलंग ) रथ आदि मान उपाश्रय आदि के निर्माण के योग्य है । इस प्रकार की सावद्य - यावत् - जीवोपवातिनी भाषा जानकर साधु न बोलें। वन- फलों के सम्बन्ध में सावद्य भाषा का निषेध १ तब मग पक्वानि. सरी िभूले बने पाइयेति म तो बए । २ तब गाओ दुज्झाओ दम्मा गोरहग लिय । वाहिमा रहजोग ति नैवं भासेज्ज पष्णवं ।। माधुया साली प्रचुर मात्रा में लगे हुए बन फलों को देखकर इस प्रकार न कहे जैसे कि - "ये फल पक गये हैं, या पराल आदि में पकाकर खाने योग्य हैं. ये पक जाने से ग्रह कालोचित फल हैं, अभी ये फल बहुत कोमल हैं, क्योंकि इनमें अभी गुठली नहीं पड़ी है. ये फल तोड़ने योग्य है या दो टुकड़े करने योग्य है ।" इस प्रकार की सावध यावत् - जीवोपघातिनी भाषा जानकर न बोले । ३ तहेव गंतुमुज्जाणं पव्क्याणि वर्णााणि य रूक्खा महल पेहाए. नेवं भासेज्ज पण्णवं ॥ अलं पानायसंभाणं तोरणरण मिहाण य। फलिहऽग्गल नावाणं असं उदगदोषिणं ॥ पीढए चंगबेरे नंगले मइयं सिया । जंतलट्टी व नाभी ना गंडिया व अलं सिया ॥ आसणं सयणं जाणं होज्जा वा किंचुवस्साए । भूभवघाइणि भासं मेवं भासज्ज पण्णत्रं ॥ ४ तहा फलाई पक्काई पायखज्जाई नो वए। बेलोइयाई टालाई बेहिमाई ति तो बए H - दस. अ. ७. मा. १२ - दस. अ. ३, गा. २४ - दस. अ. ७, नद. २६-२६ - इस. अ. ७. गा. ३२
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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