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________________ ५२४] चरणानुयोग छ: निषित बचन सूत्र ८१४-८१८ देवाणं मणआणं च तिरिजाणं च बुग्गहे । देवता, मनुष्यों और पशुओं के परस्पर युद्ध होने पर 'अमुक अमुगाणं जओ होउ मा वा होउत्ति नो वए । की जीत हो और अमुक की हार हो' ऐसा साधु को अपने मुंह से -दस. अ. ७, गा, ५२ नहीं कहना चाहिए। छ णिसिद्धययणाई छः निषिद्ध वचन८१४, नो कप्पइ निरगंधाण वा निग्गंथोण वा १४. निर्ग्रन्थों और निग्रेग्थियों को ये छह कुवचन बोलना नहीं इमाई छः अवयणाई वइत्तए, तं जहा -- वाल्पता है। १. अलियवयणे २. होलियवयणे यथा-(१) अलीक वचन, (२) हीलित वचन, ३. खिसियवयणे ४. फरसबयणे (३) खिसित वचन, (४) परुष बनन, ५. गारत्वियवपणे ६. विओसवियं वा पुणो उदीरितए । (५) गार्हस्थ्य वचन, (६) व्युपत्रमित वचन पुनः कहना। -कप्प. उ. ६. सु. १ अदणिसिद्धठाणाई - आठ निषिद्ध स्थान१५. कोहे मोजागार गोरे सवउत्तया । ८१५. (१) क्रोध, (२) मान, (३) माया, (४) लोभ, हासे भए मोहरिए विगहामु तहेव च ।। (५) हास्य, (६) भय, (७) वाचालता और (6) विकथा के प्रति सावधान रहे -इनका प्रयोग न करे । एयाई अगुठाणाई परिबज्जित्तु संजए। प्रज्ञावान मुनि इन आठ स्थानों का वर्जन फर फ्थाममय असावज मियं काले भासं भासेम्ज पन्नवंस निरक्द्य और परिमित वचन बोले। --उत्स. अ. २४, मा. ६-१० चउरिवह सावज्जभासा णिसेहो--- चार प्रकार की सावध भाषाओं का निषेध८१६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जा य १. भासा सच्चा, २. जा ८१६. जो (१) भाषा सत्या है जो (२) भाषा' मृषा है, जो य मासा मोसा, ३. जाय भासा सच्चामोसा, ४, जा य (३) भाषा मत्यामृपा है. अथवा (४) जो भाषा असत्यामृषा है, भासा असच्चामोसा तहप्पगार भासं सावज्जं सकिरियं उसमें भी यदि सत्य भाषा सावध (पाप सहित) अनर्थदण्डक्रिया कपकसं कडयं निठुरं फरूसं अण्यकरि छयणकरि भैयण- युक्त, कर्कश, कटुकः, निष्ठुर (निर्दय), कठोर (स्नेह रहित) को करि परितावणकरि उद्दवणकरि भूतोवघातिय अभिकख की आथवकारिणी तथा छेदनकारी (प्रीतिछेद करने वाली) को भासेज्जा। भेदनकारी (फूट डालने वाली, परितापकारिणी, उपद्रवकारिणी) - औ. शु. २, म. ४, उ. १, सु. ५२४ एवं प्राणियों का विघात करने वाली हो तो साधु या साध्वी ऐसी सत्यभाषा का भी प्रयोग न करे। मुसाई भासाणं णिसेहो-~ मृषा आदि भाषाओं का निषेध८१७. मुस परिहरे भिक्खू न य जोहारिणि वए। ८१७. भिक्षु मृषामाषा का परिहार करे, अवधारिणी (निश्चयभासावोस परिहरे मायं च बजए सवा ॥ कारिणी) भाषा न बोने, भाषा के दोष का परिहार करे और सदा माया का त्याग करे । न लवेज्ज पुट्ठो साषज्ज न निर?' म मम्मयं । पूछने पर भी भिक्षु अपने लिए, पर के लिए या उभय के अप्पणट्ठा परट्टा वा उन्नयस्संतरेण वा ॥ लिए सावध भाषा, निरयंक और मर्म प्रगट करने वाली भाषा -उत्त. अ. १, गा. २४-२५ न बोले । सच्चामोसा भासा णिसेहो सत्यामृषा (मिश्र) भाषा आदि भाषाओं का निषेध८१५. भासमाणो न भासेज्जा, णेय केज्ज मम्मयं । १८. साधु धर्म सम्बन्धी भाषण करता हुआ भी भाषण न करने मातिट्टाणं विवरजेजमा, अणुबीवि वियागरे । वाले (मौनी) के समान है। वह मर्मस्पशी भाषा न बोले व मातृ स्थान--माया (कपट) प्रधान वचन का त्याग करे । जो कुछ भी बोले, पहले उस सम्बन्ध में सोच विशर कर बोले । १ तहेद फरसा भासा गुरुभूधोवत्राइणी ! सच्चा वि सा न वत्तब्वा, जो पावस्स आगमो ॥ -दस. अ. ७, गा.११
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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