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सूत्र ७६६-७१७
प्रजापनी भाषा
चारित्राचार
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उल-हता गोयमा ! मण्णामोति ओहारिणी भासा,
उ.- हाँ, गौतम ! (तुम्हारा मनन-चिन्तन सत्य है।) तुम
मानते हो कि भाषा अवधारिगी है। चितेसीति ओहारिणी भासा,
तुम (युक्ति से) चिन्तन करते (सोचते) हो कि भाषा अब
धारिणी है। का प्रामोनियोहारिमी घासा,
इसके पश्चात् भी तुम मानो कि भाषा अवधारिणी है, अह चिलेमोति ओहारिणी भासा,
अब तुम (निःसन्देह होकर) चिन्तन करो कि भाषा अब
धारिणी है, तह मण्णामीति ओहारिणी भासा,
तुम्हारा जानना और सोचना यथार्थ और निर्दोष है। तह चितमीति ओहारिणी माना।
(अतएव) तुम उसी प्रकार (पूर्वमनवत्) मानो कि भाषा अवधारिणी है तथा उसी प्रकार (पूर्वचिन्तनवत्) सोचो कि भाषा
अवधारिणी है। पः-ओहारिणी णं भंते ! भासा कि सरचा, मोसा, प्र०-भगवन् ! अवधारिणी भाषा क्या सत्य है, मृषा सच्चामोसा, असच्चामोसा ?
(असत्य) है, सत्यामृषा (मिथ) है, अथवा असत्यामृषा (न सत्य,
न असत्य) है? उ.--गोयमा ! सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, उ०---गौतम ! वह (अवधारिणी भाषा) कदाचित् सत्य सिय असच्चामोसा।
होती है, कदाचित् मृषा होती है, कदाचित् सत्यामृषा होती है
और कयाचित् असत्यामृषा (भी) होती है। प०--से कणटुण भंते ! एवं युवति-"ओहारिणी प्र०-भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि अवधारिणी
मासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, भाषा कदाचित् सत्य, कदाचित् मृषा, कदाचित् सत्याभूषा और सिय असच्चामोसा?"
कदाचित् असत्यामृषा (भी) होती है ? उ.--गोयमा । (१) आराहणी सच्चा, (२) विराहणी उ.--गौतम ! जो १. आराधनी भाषा है, वह सत्य है, जो
मोसा, (३) आराहणविराहणी सच्चामोसा, (४) मा २. विराधनी भाषा है, वह मृषा है, जो ३, आराधनी-विराधनी णेष आराहणी गेव विराहणी व आराहणविराहणी (उभयारूप भाषा है. वह) सत्यामृषा है और जो ४. न तो असञ्चचामोसा णाम सा चउत्पी भासा ।
आराधनी भाषा है, न विराधनी है और न ही आराधनी
विराधनी है, वह चौथी असरयामृषा नाम की भाषा है। से तेण<गोयमा ! एवं बुच्चइ---''ओहारिणी गं हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि अबधारिणी भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सम्बामोसा, भाषा कदाचित् सत्य, कदाचित् मृषा, कदाचित् सत्यामृषा और सिय असचामोसा।"
कदाचित् असत्यामृषा होती है। --पान प० ११, सु. ३०-६३१ पाणवणी भासा
प्रज्ञापनी भाषा७६७.५०-अह मंते । गाओ मिया पसू पपत्री पण्णवणी णं ५६७.प्र.---भगवन् ! अब यह बताइए कि गायें मृग पशु और एसा मासा ? ण एसा भासा भोसा ?
पक्षी क्या यह भाषा प्रज्ञापनी भाषा है ? यह भाषा मृषा तो
नहीं है। 30-हता गोषमा ! गामो मिया पस पक्खी पण्णवणी गं ज -हाँ, गौतम ! गायें मृग' पशु और पक्षी यह इस एसा भासा प एसा भासा मोसा।
प्रकार की भाषा प्रज्ञापनी है। यह भाषा मृषा नहीं है। प०--अह भंते ! जा य इरिथवयू, जा व पुभवन, जाय ३०-भगवन् ! इसके पश्चात् यह प्रश्न है कि यह जो
पसगवयू पाणवणी गं एसा भासा? " एसा भासा स्त्रीवचन है और जो पुरुषवचन है अथवा जो नपुसकवचन है, मोसा?
क्या यह प्रजापनी भाषा है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ?