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________________ सूत्र ७६१-७६५ बहुवचन विवक्षा चारित्राचार [१३ बहवयणविवक्खा-- बहुवचन विवक्षा७६१. प०-अह भंते ! मणस्सा-जाव-चिल्तलगा जे यावण्णे ७६१. भगवन् ! मनुष्यों (बहुत से मनुष्य) से (लेकर)-यावत-- तहप्पगारा सवा सा बहुवयू ! बहुत चिल्ललक तथा ये और इसी प्रकार के जो अन्य प्राणी हैं वे सब क्या बहुवचन हैं ? उ०—हंता गोयमा ! मणुस्सा-जाब-चिल्ललगा सदा सा उ०-हाँ गौतम ! मनुष्यों (बहुत से मनुष्य) से लेकर बहुवयू। -पण. प. ११, सु. ८५० -- यावत् - बहुत चिल्ललक तक तथा अन्य इसी प्रकार के प्रागी ये सब बहुवचन हैं। इथिलिंगसदा स्त्रीलिंग शब्द७६२. द. अह भते ! मणुस्सी, महिसी, बलबा, हत्पिणिया, ७६२. प्र०-भगवन् ! मानुषी (स्त्री), महिषी (भैंस), बड़वा सोही, पापी, वी, वीषिया, अच्छो, तरच्छी, (घोड़ी), हस्तिनी (हथिनी), सिंही (सिंहनी), व्याघ्री, वृकी परस्सरी, रासभो. सियाली, विराली, सुणिया, कोल- (भेड़िनी), दीपिनी, रीछनी, तरक्षी, पराशरा (गैंडी), रासभी सुणिया, कोवतिया, ससिवा, चित्तिया, चिल्लि- (गधी), शृगाली (सियारनी), बिल्ली, कुती, शिकारी कुत्ती, लिया, जो पावण्णा तहप्पगारा सस्वा सा इस्थिवयू? कोकन्तिका (लोमड़ी), शशकी (बरगोशनी), चित्रकी (चित्ती), चिल्ललिका ये और अन्य इसी प्रकार के (स्त्रीजाति विशिष्ट) जो भी (जीव) हैं, क्वा वै सव स्त्रीवचन है ? स०–हता गोयमा ! मणुस्सी-जाव-चिल्ललिया जा उ.-हां, गौतम ! मानुषी से (लेकर) यावत् --चिल्लयावाण्णा तमगारा सम्वा सा इत्थिचयू । लिका तक तथा ये और अन्य इसी प्रकार के जो भी (जीव) हैं, ----अण्ण. ए. ११. सु. ८५१ बेसन स्त्रीवचन हैं । पुल्लिगमदा - पुल्लिग शब्द--- ७६३. ५०-अह भंते ! मणुस्से-जाव-चिल्ललए जे यावऽन्ने तहप्प- ७६३. प्र०--भगवन् ! मनुष्य से लेकर पावत्-चिल्ललक तक गारा सव्वा सा पुमवमू? नथा जो अन्य भी इसी प्रकार के प्राणी नर जीव हैं. क्या वे सब पुरुषवचन (पुल्लिग) है? -हता गोयमा ! मणुस्से-जान-चिल्सलए जे यावऽग्गे उ.- हाँ गौतम I मनुष्य से लेकर -यावत्-चिल्ललक तहप्पगारा सम्बा सा पुमययू । तक तथा जो अन्य भी इसी प्रकार के प्राणी नर-जीव हैं, वे सत्र ---पण्ण. प. ११. सु. ८५२ पुरुषवचन (पुल्लिग) हैं। पुसलिंगसहा नपुसकलिंग शब्द७६४. प०-अह भंते ! कंसं कसोयं परिमंडल सेलं भूमं जालं ७६४ प्र. भगवन् ! कास्य (कांमा), कंसोल (कमोल), परि थालं तारं रूवं अच्छि पच्वं कुई पउमं बुद्ध दहियं मण्डल, शैल, म्तूप, जाल, स्थाल, तार, रूप, नेत्र, पर्व (पोर), गवणीयं आसणं सयणं भवणं विमाण छत्तं चामरं कुण्ड, पद्म, दूध, दही, गबरतन, आसन, अयन, भवन, विमान, भिगारं अंगणं निरंगणं आभरणं रयणं जे यावऽपणे छत्र, चामर, मृगार, आंगन, निरंगन (निरंजन), आभूषण और तहप्पगारा स तं गपुसगवयू ? रत्न ये और इसी प्रकार के अन्य जितने भी शब्द हैं, वे सब क्या (प्राकृत भाषानुसार) नपुंसक वचन (नपुसक लिंग) हैं ? ज०-हंता गोयमा ! कंस-जाव-रमणं जे यावणे तहप्प- ज०-हाँ, गौतम ! कांस्य यावत् –रत्न तथा इसी प्रकार गारा सम्बं तं गपुसंगवयू । __ के अन्य जितने भी शब्द है, वे सब नपुंसक वचन है। ---पण्ण० प० ११. सु० ८५३ आगहणी भाषा आराधनी भाषा७६५. ५०-अह भते ! पुढबीति हत्थीबयू आउ ति पुमवयू धणे ७६५.५०-भगवन् ! पृथ्वी यह शब्द स्त्रीवचन हैं, पानी यह आशी
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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