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चरणानुयोग
एकवचन विवक्षा
सूत्र 37-380
उ-गोयमा ! विहा पण्णता । तं जहा--
उल-गौतम ! (वह) दो प्रकार की कही गई है। वह इस
प्रकार हैसच्चामोसा य. असच्चामोसा य ।
सत्यामृषा और असत्यामृषा ।। पत- सध्यामोसा पं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा प्र०-भगवन् ! सत्यामुषा-अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार पण्णता?
की कही गई है? उ०-गोयमा । वसविहा पण्णता । तं महा--
उ०—गौतम ! बह दस प्रकार की कही गई है। वह इस
प्रकार है - १. उप्पण्णमिस्सिया, २. विगरमिस्सिया, ३. उप्पण्ण- १. उत्पन्न मिश्रिता, २, विगतमिश्रिता, ३. उत्पन्न-विगतविगयमिस्सिया. ४. जीवमिस्सिया. ५. अजीवमिस्सिया मिश्रिता, ४. जीवमिश्रिता, ५. अजीवमिश्रिता, ६. जीवाजीव६. जीवाजीवमिस्सिया, ७. अणतमिस्सिया. ८. परित्त- मिश्रिता, ७. अनन्तमिश्रिता, ८. परित्त (प्रत्येक) मिश्रिता,
मिस्सिया, ६. अशामिस्सिया, १०. अबद्धामिस्सिया।' ६. अद्धा मिश्रिता और १०. अद्धद्धामिश्रिता । पर--असच्चामोसा णं भंते ! भासा अपज्जतिया कतिबिहा प्र०. भगवन् ! असल्यामुषा-अपर्याप्तिका भाषा कितने
प्रकार की कही गई है? उ०—गोयमा ! बुवालसविहा पण्णसा, तं जहा-.
उ.--गौतम ! (वह) बारह प्रकार की कही गई है। वह
इस प्रकार है१.आमंसणि, २. याऽऽणमणि, ३. जायण, ४. तह १. आमंत्रणी भाषा, २. आज्ञापनी भाषा, ३. याचनी भाषा, पुच्छणि, ५. य पण्णवणी। ६. पच्चक्लाणो भासा, ४. गृच्छनी भाषा, ५. प्रज्ञापनी भाषा, ६. प्रत्याख्यानी भाषा, ७. भासा इच्छागुलोमा य, ८. अभिगहिया भासा, ७. इच्छानुलोमा भाषा, ८. अनभिगृहीता भाषा, ६. अभिगृहीता ६. भासा य अभिम्गहम्मि बोवा। १०. संसप- भाषा, १०. संशयकरणी भाषा, ११ व्याकृता भाषा और करणी भासर, ११. धीयता, १२. अस्वोयडा चेव ॥ १२. अव्याकृता भाषा ।
--पण्ण. प. ११. सु. ८६०.६६६
पष्णता ?
विधिकल्प-२
एगवयणविवक्खा
एकवचन विवक्षा-- ४६.प.-अह भंते ! मणुस्से, महिसे. आसे. हत्थो, सोहे, वग्घे, ७६०. ०-भगवन् ! मनुष्य, महिष (भैसा). अग्न. हाथी.
बगे. वोविए. अच्छे. तरच्छे, परस्सरे, रासभे, सियाले, सिंह, ध्यान, क (डिया). दीपिक (दीपड़ा), ऋक्ष (रोछ= विराले, सुणए. कोलसुणए, कोक्कतिए. ससए.चित्तए, भान), तरक्ष, पाराशर (गैडा). रामभ (गधा). सियार, विडाल चिल्ललए. जे याबण्णे तहप्पाशारा सम्वा सा एगमयू ? (बिलाव), शुनक (कुत्ता त्रान), कोलशुनक (शिकारी कुत्ता)
कोकन्तिक (लोमडी), शशक (खरगोश), चीता और चिल्ललक (वन्य हित पशु) मे और इसी प्रकार के जो (जितने) भी अन्य
जीव हैं. क्या वे सब एकवचन हैं? उ. --हंता गोयमा ! मणुस्से-जाव-चिल्ललगा जे याकऽण्णे 10- हाँ. गोतम ! मनुष्य यावत्-चिल्ललक तथा ये तहप्पगारा सम्वा सा एपवयू ।
और अन्य जितने भी इमी प्रकार के प्राणी हैं, वे सब - पण. प.११. सू. ५४६ एकवचन हैं।
१ ठाणं अ.१० मु. ५४१ ।