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________________ ५०८] चरणानुयोग नौका विहार के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ७८६ मे भिक्खू नावं उत्तिगेण उदगं अासबमाणं उवार कज्जल- जो भिक्ष नाव के छिद्र में से पानी आने पर नाव को दूबती मार्ण पसोय हत्येण या पाएण वा आसत्थपत्तेण या कुसपत्तण हुई देखकर हाथ से, पैर से, असीपत्र के पत्ते से, कुम के पत्ते से, वा मट्टियाए बा घेलकपणेण वा पडिपेहेइ पडिपेहेंत वा मिट्टी से और वस्त्र खण्ड से (छेद को) बन्द करता है. करवाता साइज्जद। है, करवाने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू णावागमो गावागयस्स असणं बा-जाव-साइमं वा जो भिक्षु नाव में बैठा है और नाव में ही बैठने वाले से पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा साइजह । अशम-यावत् - स्वाञ्च लेता है. लिवाता है, लेने वाले का अनु. मोदन करता है। से मिल जाता नामान भरा बाजार-रामा वा जो भिक्षु नाव में बैठा है और जल में खड़े रहने वाले से पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं धा साइज्जइ । अशन - यावत् स्वाद्य लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु गोदन करता है। जे भिक्खू णावागओ पंकगयस्स असणं वा-जाव-साइम वा जो भिक्षु भाव में बैठा है और कीचड़ में खड़े रहने वाले से पजिग्गाहैइ, पशिगाहेंतं वा साइज्जइ । अशन-यावत्-स्त्राद्य लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्खू गावागओ अलगयस्स असणं वा-जाव-साइमं वा जो भिक्षु नाब में बैठा है और जमीन पर खड़े रहने वाले परिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइजद । से अशन-यावत्-.-स्वाध लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। [जे भिक्खू जलगओ गावागयस्स असणं वा-जाव-साइमं वा (जो भिक्षु जल में खड़ा है और नाव में ही बैठने वाले से पहिगाहेति, पडिगाहेंतं वा ताइज्जद । अान-यावत्-स्वाच लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु मोदन करता है। जे मिक्खू जलगओ अलगयरस असणं वा-जाव-साइमं वा जो भिक्षु जल में खड़ा है और जल में खड़े रहने वाले से पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइजह । अशन-यावत-स्वाध लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्खू जलगओ पंकगयरस असणं वा-जाव-साइमं वा जो भिक्षु जल में खड़ा है और कीचड़ में खड़े रहने वाले से पबिग्गाहेह. पडिग्गाहेंतं वासाहज्जा। अजन यावत्-स्वाध लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्खू जलगओ थलगयरस असणं या-जाव-साइम वा जो भिक्षु जल में खड़ा है और जमीन पर खड़े रहने वाले से पडिरगाहेइ, पडिग्गाहेंत वा साइजह । अगन-यावत्-स्वाध लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु मोदन करता है ।) [जे भिक्खु पंकगओ णायागयस्स असगं वा-गाव-साइमं वा (जो भिक्षु कीचड़ में खड़ा है और नाव में ही बैठने वाले से पश्चिमाहेइ, पजिग्गाहेंत या साइजह । अशन यावत्---स्वाध लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्खू पंकगो जलगपस्स असणं वा-जाब-साहम वा जो भि कीचड़ में खड़ा है और जल में खड़े रहने वाले से पडिग्गाहेह, पडिग्गाहेंतं वा साइन्जइ । अशन-यावत् - स्वाद्य लेता है, लिवाता है. लेने वाले का अनु मोदन करता है। जे भिक्यू पंकगओ, पंकगपस्स असणं या-जाव-साइम वा जो भिक्षु कीचड़ में खड़ा है और कीचड़ में खड़े रहने वाले पजिग्गाहेर, पडिग्गाहेत वा साइजद । से अशन-यावत्-स्वाद्य लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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