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________________ सूत्र ७८६ नौका विहार के प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार [५०० जे भिक्खू पंकगओ थलगयस्स असणं वा-जाव-साइमं वा जो भिक्षु कीचड़ में खड़ा है और जमीन पर खड़े रहने वाले पडिग्गाहेह. पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ।] में अशन-यावत्-स्वाद्य लेता है. लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है।) [जे भिक्खू थलगओ गावागयत्स असणं वा-जात्र-साइम वा (जो भिक्षु स्थल पर पड़ा है और नाव में बैठने वाले से पडिग्गाहेर, पडिग्गाहेंत वा साहज्जइ । अगन—यावत्-म्वाद्य लेता है, लेने के लिए कहता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्ख यलगओ जलगयस्स असणं या-जाव-साइमं वा जो भिक्षु स्थल पर खड़ा है और जल में खड़े रहने वाले से पडिगाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साहज्जह । अशन-यावत्-स्वाध लेता है, लेने के लिए कहता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू यसगओ पंकगयस्स असणं वा-जाव-साहनं वा जो भिक्ष स्थल पर खड़ा है और कीचड़ में खड़े रहने वाले पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइजइ । से अशन--.-यावत्-स्वाद्य लेता है, लेने के लिए कहता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू बलगओ अलगयस्स असणं बा-जाब-साइमं वा जो भिक्षु स्थल पर खड़ा है और स्थल पर खड़े रहने वाले पडिमाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जद । से अशन-यावत् स्वाद्य लेता है, लेने के लिए कहता है लेने वाले का अनुमोदन करता है ।) तं सेवमाणे आबज्जइ चाजम्मासियं परिहाराणं उग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि: उ०१८, सु० १-२३ आता है। - ॥ईर्यासमिति प्रकरण समाप्त ॥ -
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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