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५.०४]
वरणानुयोग
नौका विहार के विधि-निषेध
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अस्सिचाहि।" णो से तं परिणं परिजाणेज्जा । तुसिणीओ बाहर निकाल दो" परन्तु साधु नाविक के इस वन को उबेहेज्जा ।-आ० सु०२, अ० ३, उ० १. सु. ४९४-४८० स्वीकार न करे, वह मौन होकर बैठा रहे। से गं परी गावागतो गावागयं बएज्जा-आजसंतो यदि नाविक नौकारूड़ श्रमण से ग्रह कहे कि-आयुष्मन् समगा ! एतं ता तुम णायाए उसिंग हत्येण वा, पाएष वा, श्रमण ! नाव मे हुए इस दि को तुम अपने हाथ से. पर से, बाहुणा वा, उरुणाव वा, जवरेण वा, सीसेग वा, कारण वा, भुजा से, जंघा से. पेट से, सिर से, या शरीर से अथवा नौका णावास्सिचणएण वा, चेलेण वा, मट्टियाए वा कुसपत्तएण के जल निकालने वाले उपकरणों से, बम्ब से, मिट्टी से, कुशपत्र वा, कृषिवेण वा पिहहि ।" णो से तं परिणं परिजाणेज्जा। से, कुरुविन्द नामक तृण विशेष से बन्द कर दो, रोक दी।" तुसिणीयो उबेहज्जा।
साधनानिक के इस कथन को स्वीकार न करके मौन धारण
करके बैठा रहे। से भिक्खू वा भिक्खूणी बाणाबाए उत्तिगण उदय आसव- यह साधु या साध्वी नौका में छिद्र से पानी आता हुआ देखमागं पेह ए. उबरूवरि णावं कज्जलाबेभाणं हाए, गो पर कर नौका को उत्तरोत्तर जल से परिपूर्ण हाती देखकर, नाबिक उपसंकमित्त एवं बूया-"आउसंतो गाहावति ! एतं ते के पास जाकर योग कहे कि "आयुष्मन् गृहपते ! तुम्हारी इस मावाए उवयं उत्तिपेणं आसवप्ति, उचार वा गाधा नौका में छिद्र के द्वारा पानी आ रहा है. उत्तरोत्तर नौका जल से कम्जलावेति । एतप्पगार मणं वा वायं वा णो पुरतो फट्ट परिपूर्ण हो रही हैं। इस प्रकार से मन एवं वचन को आगे विहरेज्जा।"
पीछे न करके साधु-विचरण को । अप्पुम्सुए-जाव-समाधीए।
___ यह शरीर और उपकरणादि पर मू न करके -यावत्
समाधि में स्थित रहे। ततो संजयामेव णाबासंतारिमे उदए आहारियं गएज्जा । इस प्रकार नौका के द्वारा पार करने योग्य जल को पार
करने के बाद जिम : कार तीर्षकरों ने विधि बताई है उस प्रकार • -आसु. २, अ० ३. उ०२, सु० (८१.४.२ उसका पालन करता हुआ विनरण करे। से णं परो णावागतो गावागयं बवेजा-'आउसंतो नौका में बैठे हुए गृहस्थ आदि यदि नौकारून मुनि रो यह समणा ! एतं ता सुमं छत्सगं बा-जाव-चम्मछेदणगं वा कहे कि "आयुष्मन् श्रमण ! तुम जरा हमारे ब-यावत्--.. गेल्हाहि, एताणि ता तुर्म विरूवरूवाणि सत्यजायाणि घारेहि, नर्म-छेदक को पकड़े रखो, इन विविध शस्त्रों को तो धारण एयंता तुम दारगं वा वारिग वा पन्जेहि", णो से तं परो, अथवा इस यालक या बालिका को पानी पिला दो", तो परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणाओं उबेहेज्जा।
बह साधु उसयैः उक्त वचन को मुनकर स्वीकार न करे किन्तु
मौन धारण करके बैठा रहे। से ण परो गावागते णावागतं ववेज्जा-आउसंतो! एस यदि कोई नौकारूढ़ व्यक्ति नौका पर बैठे हुए किमी अय नं समणे णावाए मंडभारिए भवति, से णं बाहाए पहाय गृहस्थ से इस प्रकार कहे-"आयष्मन् गृहल्थ ! यह श्रमण जड गायाओ उपसि पविखवेज्जा।" एतप्पगार निग्घोस सोच्चा वस्तुओं की तरह नौका पर केवल भारभूत है, अतः इसकी बाहें निसम्मा से य चीवरधारी सिया खिप्पामेव चीवराणि उब्वे- पकड़ कर नौका से बाहर जल में फेंक दो।" इस प्रकार की बात बेग्ज वा, णिव्वेटेज्ज वा उप्केसं वा करेज्जा ।
सुनकर और हृदय में धारण करके यदि वह मुनि वस्त्रधारी है तो वस्त्रों को अलग कर दे वा शरीर पर लपेट ले तथा शिर पर
लपेट लें। अह पुणे जावेज्मा अभिकंतकरकम्मा सन्तु बाला बाहाहि यदि वह गाधु यह जाने कि ये अत्यन्त क्रूर कर्मा अज्ञानीजन गहाय णाबाओ उदगंसि पविखवेम्जा । से कुच्यामेव अवश्य ही मुझे बाहें पकड़कर नार से बाहर पानी में फेंकेंगे। यदेज्जा आउसंतो गाहावती ! मा मेत्तो बाहाए गहाय तब यह फ के जाने से पूर्व ही उन गृहस्यों को सम्बोधित करके गावातो उदगंसि पक्खियेह, सधं च अहं णावातो कहे--"आयुष्मन् गृहस्थो ! आप लोग मुझे बाँहें पकड़कर नौका उदर्गसि ओगाहिस्सामि।"
से बाहर जल में मत फेंको, मैं स्वयं ही इस नौका से बाहर होकर जल में प्रवेश कर जाऊँगा।"