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चरणानुयोग
अपुग एवं जागेला एराबई कुणालाए जत्थ चक्किया एवं पार्थ जले किन्या एवं पायं यले किच्चा एवं गं कप्पड़ अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरिए बा. संतरा
जन्म एवं नो चक्किया एवं नो कप्पइ अंतोमासस्स डुबतो या तो वा उत्तरितए वा संतरित श
पाँच महानदी पार करने का प्रायश्चित
पंच महाणई उत्तरण पायच्छित सुत्तं०१. भाओ महणवाओं महान ईओ रहिहाओ उद्दिट्ठाओगणियाओ जियाओ अंतोमामरस दत्तो वा नि या उत्तरद वा संतर वा उत्तरंत या संतरंतं वा साइज्जइ ।
आवज्जह
यदि उक्त प्रकार से पार न की जा सके तो उस नदी को एक मास में दो या तीन बार उतरना या नाव से पार करना -- कृष्ण० उ० ४. सु० ३५ नहीं करूपता है ।
पाँच महानदी पार करने का प्रायश्चित सूत्र
७८३ भिक्षु इन बारह मान बहने वाली इन पांचों महा जो नदियों को जो कही गई हैं, गिनाई गई हैं, प्रसिद्ध हैं उन्हें एक मास में दो बार या तीन बार उतरकर या तैरकर पार करता है, करवाता है, या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
यथा - १ गंगा, २. यमुना, ३. सरयु ४. एरावती और ५. मही ।
पातिक पार्मासिक परिहारस्थान (शाश्वत)
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तं महा-- १. गं. २ जणं, ३. सउणं ४. एरावई, ५. महि । तं सेवमाणे
नाम्यायं
परिहार ठा
- नि० उ० १२, सु० ४२
उग्घाइयं ।
नावाविहारस्स विहि- णिसेहो
७९४ से भिक्वा भिक्खुणी दा गामाणुवाय
अंतरा
से जावा संतारिमेजवए सिया सेज्जं पुण णावं जाणेज्जा
संजते भिक्पडियाए किणेज्ज वर पामिन्छेज्ज वा जावाए या गावपरिणामं कट्टु मलातो वा पावं जलंसि ओगाहेज्जा, जातो वा णावं यसि उक्कसेज्जा पुष्पं या गावं उस्सि वेज्जर, सण्णं वा णावं उप्पीला वेज्जा, तहप्पगार यावं उड्डगार्मिणि वा अगामिनि वा तिरियगामिण वा परं जोयण मेरा जोवन मेरा का अपना मुकारे का जो
ए
सूत्र ७८१-७६४
यदि यह ज्ञात हो जाए कि कुणाला नगरी के समीप एनती नदी एक पैर जल में और एक पैर बल में रखते हुए पार को जा सकती है तो एक मास में दो या तीन बार उतरना या नाव से पार करना करुपता है ।
आता है ।
नौका विहार के विधिनिषेध-
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७८४. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि मार्ग में नौका द्वारा पार कर सकने योग्य जल ( जल मार्ग ) है, तो वह नौका द्वारा उस जल मार्ग को पार कर सकता है | ) परन्तु यदि वह यह जाने कि अरांयतः गृहस्थ साधु के निमित्त मूल्य देकर (किराये से) नौका खरीद रहा है, या उधार ले रहा है या अपनी नौका की अन्य की नौका से अदला-बदली कर रहा है. या नाविक नौका को स्थल से जल में लाता है अथवा जल से स्थान में सीन कर गानों से भरी हुई नौका से पानी उनी खाली करता है अथवा कीचड़ में फँसी हुई को बाहर निकालकर साधु के लिए तैयार करके साधु को उम पर चढ़ने की प्रार्थना करता है, तो इस प्रकार की नौका चाहे वह ऊध्र्वगामिनी हो, अधोयामिनी हो या तिर्यग्गामिनी, जो उत्कृष्ट एक योजनप्रमाण क्षेत्र में चलती है या अर्द्ध योजनप्रमाण क्षेत्र में चलती है, एक बार या बहुत बार गमन करने के लिए उस नौका पर साधु सवार न हो तो ऐसी नौका में बैठकर साधु जल मार्ग पार न करें।
१ यहाँ उत्तरित" के बाद में "संतरितए" पाठ अनावश्यक है। क्योंकि उत्तरितए का अर्थ जंघा या बाहू द्वारा तिरकर पार करना है । अथवा एक पैर जल में और एक पर स्थल में अर्थात् एक पैर जल से ऊपर उठाकर उसे अधर आकाश में कुछ देर
रखे पैर का पानी नितारे बाद में नितरा हुआ पैर पानी में रखे इस क्रम से एक पैर जल में और एक पैर स्थल में रखता हुआ
!
नदी का पानी पार करे |
एक पैर जन में और एक पर स्थल में रखते हुए नदी पारकर इस वीर के आम से सामने की तीर के ग्राम में कारणवश भ्रमण गया हो पीछे लौटते समय नदी में अधिक पानी आ जाय तो उसे नाव द्वारा पार करके गुनः जिस ग्राम से गया उसी में आ जावे । "संतरितए" का अर्थ है नाव से पार करना ।