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________________ सूत्र 040-७८२ सेना के समीपवर्ती क्षेत्र में रात रहने का प्रायश्चित्त सूत्र चारित्रामार [५०१ अपुरसुनाव समाप : संजय गामाणुगाम किमी प्रकार का प्रतिशोध लेने का विचार न करे ।-यावत्-.हज्जेज्जा। समाधिभाव में स्थिर होकर, वतनापूर्वक एक ग्राम से दूसरे ग्राम -आ० सु. २, अ० ३. उ०२, मु. ५००-५०१ विवरण करे । सेण्ण सपिणविद खेसे रयणीवस माणस्स पायच्छित्त सत्तं- सेना के समीपवर्ती क्षेत्र में रात रहने का प्रायश्चित्त सूत्र८८०. से गामस्स वा-जाब-रायहाणीए या बहिया सेण्णं सन्निविध ८, ग्रान-यावत्-- राजधानी के बाहर शत्रु सेना का पेहाए कप्पा निग्गंयाण वा णिगंधीण वा सदिक्स भिक्खा- स्कन्धावार देवकर निग्रन्थों और निग्रंन्थियों को भिक्षाचर्या से परिवाए गंतूण पहिनियत्तए । नो से कपडतं रणि तत्थेव उसी दिन लौटकर आना कल्पता है। उन्हें बाहर रात रहना नहीं उवाइणावेत्तए। बाल्पता है। जो खन निग्गयो वा निग्गयो वा तं रयणि तत्येव उवाइया- जो नियन्ध या नियन्थी (ग्राम-यावत-राजधानी के वेइ, उवारणतं वा साइजई । बाहर) रात रहते हैं या रात रहने वाले का अनुमोदन करते हैं से दृष्टओ वि अवस्कममाणे आवजह चाउम्माशिवं परि- तो वे जिनाज्ञा और राजाज्ञा का अतिक्रमण करते हुए चातु हारट्ठाणं अणुग्धाइय। कप्प० उ० ३, सु० ३३ मासिक अनुशातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) को प्राप्त होते है। पाणाइ आइण्णेण मग्गेण गमणविहिणिसेहो प्राणी आदि युक्त मार्ग से जाने के विधि-निषेध-. ७८१. से भिक्स्यू वा भिक्षुणी वा मामाणुगाम दूइज्जमाणे, अंतरा ७८१. साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यह जानें से पाणाणि वा, बीयाणि वा, हरिपाणि वा, उदए वा, मट्टिया कि मार्ग में बहुत से इस प्राणी हैं, बीज बिखरे हैं, हरियाली है, वा अविद्वत्था सति परक्कमे संजयामेव परक्फमेज्जा णो मचित्त पानी हे या सचिन मिट्टी है, जिसकी योनि विश्वस्त नहीं उज्जुये गएछेज्जा ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइज्गेज्जा । हुई है, ऐसी स्थिति में दूमरा निर्दोष मार्ग हो तो साधु-साध्वी -आ० सु० २, भ० ३, उ० १. सु. ४०० उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाएँ किन्तु उस (जीव-जन्तु आदि से युक्त) सरल (सीधे) मार्ग से न जाए। जीव-जन्तु, रहित मार्ग से यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करे। महाणई पारगमणविहि-णिसेहो अक्वाये पंचठाणाई- महानदी पार गमन विधि-निषेध के पाँच कारण७८२, णो कप्पद निग्गंथाण वा निगशेण वा इमाओ उद्दिट्ठाओ ७८२ निम्रन्थ और निस्थियों को, इन उद्दिष्ट-आगे बताई गणियाओ विजियाओ पंच पहावाओ महाण दीओ अतो- जाने वाली) गिनती की गई, अति प्रसिद्ध तथा बहुत जन वाली मासस्स बुक्खत्तो वा तिक्ख सो वा उत्तरित्तए वा संतरिसए पाँच महानदियाँ एक माम के भीतर दो बार या तीन बार से वा, तं जहा १. गंगा, २. जउणा, ३. सरऊ, ४. एरावती, अधिक उतरना या नौका से पार करना नही कल्पता है । जैसे५. मही। १. गंगा, २. यमुना, ३ सरयू. ४. ऐरावती, ५. मही । पंचहि ठाणेहि कम्पति. किन्तु पाँच कारणों से इन महानदियों को तेर कर पार करना या नौका से पार करना कल्पता है। तं जहा–१. मयंसि वा, जैसे--१. शरीर, उपकरण आदि के अपहरण का भय होने पर। २. बुरिभक्खंसिया, २. दुर्भिक्ष होगे पर। ३. पतबहेज्ज वा णं कोई ३. किसी के द्वारा व्यषित किये जाने पर । ४. वओगं सि वा एज्जमाणंसि महता चा, ४. बड़े वेग रो जलप्रवाह अर्थात् बाढ़ आ जाने पर । ५. अणारिए। -आण अ० ५. उ० २, सू० ४१२ ५. जगायं पुरुषों द्वारा उपद्रव किये जाने पर। १ काप. उ. ४, भु.३८ ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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