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चरणानुयोग
अभिषेक राजधानियों में बार-बार जाने-आने के प्रायश्वित सूत्र
चामाथि परिहारट्ठाणं
तं सेवमाणे आवजह यथुवाइय - नि० उ० ११, ० ७१ अभिसेय - रायहाणीस पुणो पुणो णिश्लमण-बेसणरस
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७८. मिक्रो बत्तिया मुद्दयाणं मुद्धाभितिताणं महा माक्समद या पविसद या विधा पवितं वा सरइज्जइ ।
जे मिक्सू रण्णो खत्तियाणं मुद्रियाणं मुद्धाभिसित्ताणं दस अमियाओ राहाणीओ उठाओ गणियाओ बजियाओ तातो वा तिक्युतो हा क्सिम वा यदि सद्या मिं वा पवितं वा साइज्जइ ।
तं जहा - १. चंपा २. महूरा, ३. वाराणसी ४. सावस्थी, ५. सायं. ६. कंपिल्ल, ७. कोसंबी ८. महिला ६. हल्पि णापुरं १०. रायगिनुं ।
तं सेवमाने व पायास परिहाराणं अगुग्णा इयं - नि० उ० है सु० १५-१६ अभियााण मागेण गमण विहि-जिसेहो ७७६. से मित्र व भक्खुणी या गामाशुगामं बृहज्जमाणे अंतरा से जयमाथि या सगाणि वा रहाणि वा सचस्वाणि वा परचरकाणि वा, सेणं वा विरूवरूवं संणिक्ट्ठि पेहाए सति परक्कमे संजयामेव परककमेज्जा णो उज्जुयं गच्छेज्जा ।
से गं से परो सेमात्र देशा "आतो एस समणे मेणाए अभिप्राश्यि करे से बाहाए हाए आगसह् ।" से णं परो बाहाहिं गहाय आगसेज्जा, सं णो सुमने सिया णो युम्मणे सिया, जो उन्चावयं या गोलि बाला पाताए बहाए समु
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सूत्र ७७७-७७
उसको नानुमासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है ।
अभिषेक राजधानियों में बार-बार जाने जाने के प्रायश्चित्त सूत्र -
७७ जो भिक्षु राजा का क्षत्रियों का शुद्ध जातियों का सूर्याभों का जहाँ पर महाअभिषेक हो रहा हो वहाँ वह जाता जाता है. जाने-आने के लिए प्रेरणा करता है या जाने आने वाले का अनुमोदन करता है ।
जो भिक्षु राजा की क्षत्रियों को, शुद्ध जातियों की मूर्धाभि षिक्तों की ये अभिषेक राजनियाँ कही गई हैं, गिनाई गई है, प्रसिद्ध है उनमें एक मास में दो बार या तीन बार जाता आता है। जाने-आने के लिए प्रेरणा देता है। जाने-आने वाले का अनुमोदन करता है।
यथा - १. चंपा, २. मथुरा, ३. वाराणसी ५. साकेत ६. कांपिल्य नगर 19. कोसंबी, ६. हस्तिनापुर, १०. राजगृह ।
४. श्रावस्ती, ८. मिथिला.
उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है।
सेना के पड़ाव वाले मार्ग से गमन के विधि-निषेध - ७३६. माधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार कर रहे हों. मार्ग में यदि आदि ग्रन्थों के हों, गाड़ियों हॉ. एच पड़े हो, स्वदेश शासक या परदेशा की सेना के नाना प्रकार के गाय (छावनी के रूप में पड़े हों, तो उन्हें देखकर यदि कोई दुसरा (शिव) मार्ग हो तो उसी मार्ग से नाक गए किन्तु उस मां (दोषयुक्त) मार्ग से न जाए ।
१ नो कप्पर निग्गंथाण या निरगंथीण वा
रण्ज-विरुद्धरतिम सजायम सजे पानमणं करिनाए ।
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(যदি माधु सेना के पड़ाव वाले मार्ग से जाएगा, तो सम्भव उसे देखकर कोई सैनिक किसी दूसरे सैनिक से "आयुष्मान् ! यह श्रमण हमारी सेना का गुप्त भेद ले रहा है। अतः इसकी चाहें पकड़कर खींचो। जयत्रा उसे घसीटो।" इस पर वह सैनिक साधु की बाहें पकड़कर खींचने या घसीटने लगे, उस समय साधु अपने मन में न हर्षित हो न रुष्ट हो और वह मन में किसी प्रकार ऊँचा-नीचा संकल्प विकल्प न करे और न उन अज्ञानी जनों को मारने-पीटने के लिए उद्यत हो । वह उनसे
जो खलु निग्गंयो वा निग्गंधी वा
वेरज्ज - विरुद्ध रज्जसि – मज्जं गमणं सज्जे आगमणं सज्जं गमभागमणं परेद्र करेतं वा साज से अक्कममाणे,
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अवस्न पाउमावि परिहार
अ
प्प. १. १. सु. ३६