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________________ ४६६] चरणानुयोग आचार्यावि के साथ गमन के विधि निषेध सूत्र ७६६-७७१ से भिषणू वा भिक्खणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे जो ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी गीली मिट्ट मट्टियागतेहि पाहि हरियाणी छिदिय छिविय विकुन्जिय एवं कीचड़ से भरे हुए अपने पैरों से हरितकाय का छेदनकर विकुज्जिय विफालिय विफालिम उम्मगोण हरियवधाए बार-बार छेदन करके तथा हरे पत्तों को बहुत मोड़-तोड़ कर या गच्छेज्जा जहेय पाएहि मट्टियं विप्पामेव हरियाणि अवहरंतु । दबाकर एवं उन्हें चीर-चीरकर मसलता हुआ मिट्टी न' उतारे माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेजा। से पुष्यामेव अप्प- न हरित काय की हिंसा करने के लिए उन्मार्ग में इस अभिप्राय हरियं मग्यं पडिलेहेज्जा, पडिलेहिता ततो संजयामेव गामा- से जाए कि पैरों पर लगी हुई कीचड़ और यह गीली मिट्टी यह णुगाम पूइज्जेज्जा। हरियानी अपने आप हटा देगी। ऐसा करने वाला साधु मायास्थान का स्पर्श करता है । साधु को इस प्रकार नहीं करना चाहिये । वह पहले ही हरियाली से रहित मार्ग का प्रतिलेखन करे (देखें) और तव उसी मार्ग से यतनापूर्वक प्रामानुग्राम विचरण करे। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा प्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी के मार्ग में से वप्पाणि वा-जाब-दरीओ बा, सति परक्कमे संजयामेव यदि बड़े ऊँचे टेकरे या खेत को क्यारियां यावत् – गुफाएं हो परक्कमेम्जा पो उज्जु गमछेजा। तो अन्य मार्ग के होते हुए उप्त मार्ग से ही यलनापूर्वक गमन करे, किन्तु ऐसे सीधे विषम मार्ग से गमन न करे। केबलो ड्या-आयाणमेयं । केवली भगवान् ने कहा यह मार्ग (निरापद न होने से) कर्म-बन्ध का कारण है। से तत्व परक्कममाणे पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा, से तत्थ ऐसे विषम मार्ग से जाने से साधु-साध्वी का पर आदि पपलमाणे वा, एवडमाणे या, रुक्लाणि वा गुच्छाणि वा, फिराल सकता है, वह गिर सकता है । कदाचित् उसका पैर आदि गुम्माणि बा, लयाओ वा, बल्लीओ वा, तणाणि वा, गह- फिसलने लगे या वह गिरने लगे तो वहां जो भी वृक्ष, गुच्छ, पाणि वा, हरियाणि वा अवलंबिय अवलंबिय उत्तरेज्जा, पत्तों का ममुह या फलों का गुच्छा (झाड़ियाँ, लताए, बेलें, तृण, जे तत्थ पडिपहिया उवागच्छति ते पाणी जाएज्जा, जाइता अथवा गहन झाड़ियां, वृक्षों के कोटर या वृक्ष लताओं का झंड) ततो संजयामेव अवलंजिय अवलं बिय उत्तरेला । ततो हरितकाय आदि हो तो सहारा लेकर चले या उतरे अथवा वहां संजयामेव गामाणुगाम वूइज्जेज्जा। (सामने से) जो पथिक आ रहे हों, उनका हाथ (हाय का -आ. सु. २, भ. ३, उ. २. सु. ४९८-४६६ सहारा) मांगे, उनके हाथ का सहारा मिलने पर उसे पकड़कर यतनापर्वक चले या उतरे। इस प्रकार साध या साध्वी को यतापूर्वक ही ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए। आयारियाएहि सद्धि ममणविहि णिसेहो आचार्यादि के साथ गमन के विधि निषेध ... ७७. से भिक्खू बा भिक्खूणी या आयरिय उपमाएहिं सखि ७७०. आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने गामाणुगाम दूहन्जमाणे जो आयरिय उवरमायस्स हत्येण वाले साधु या साध्वी अपने हाथ से उनके हाय, अपने पैर से हत्थं पाएण पायं, कारण कार्य आसाएज्जा से अणासावए उनके पर का तथा अपने शरीर से उनके शरीर का (अविवेक अणासायमाणे ततो संजयामेव आयरिय उबझाएहि सखि पूर्ण रीति से) स्पर्श न करे । उनकी आगातना न करता हुआ गामाणुगाम बूइज्जेज्जा। उनके साथ ग्रामानुग्राम विहार करे। -आ. मु.२. अ.३, उ. ३, सु. ५०६ मागे आयरियाईणं विणो मार्ग में आचार्यादि का विनय७७१. से भिक्खू या भिक्षुणी चा आयरिय-उक्साएहिं सखि ७७१. आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने इज्नमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा ते गं पाहि- याले साधु या माध्वी को मार्ग में यदि सामने से आते हुए यात्री पहिया एवं बवेज्जा मिलें, और वे पूछे कि
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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