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सूत्र ७६८-७६९
प्रामानुग्राम गमन के विधि-निषेध
चारित्राचार
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पासपणेण वा, खेलेण वा, सिधाणएण था, वतेण बा, पित्तण उरा भिक्षु का शरीर, मल, मूत्र, कफ, लींद, वमन, पित्त, मबाद, वा, पूएणवा, सुक्केण वा, सोणिएण वा उवलिते सिया। शुक्र (वीर्य) और रक्त से लिपट सकता है। तहप्पगार कार्य पो अणंतरहियाए पुढबीए, जो ससणिवाए अगर कभी ऐसा हो जाए तो वह भिक्षु मूत्रादि से उलिप्त पुहषीए, णो ससरक्खाए पुढबीए, जो वित्तमंताए सिलाए, शरीर को सचित्त पृथ्वी मे, सचित्त चिकनी मिट्टी से, सचित्त रजणो चित्तमंताए ले लूए, कोलावाससि वा वामए जीव पति- वाली पृथ्वी से, मचित्त शिनाओं मे, मचित्त पत्थर या हेले से, या दिढते सरे-जात्र-संताणए णो आमज्जेज वा, णो पमज्जेज्ज धुन लगे हुए काष्ट से, जीवयुक्त काष्ठ से एवं अण्डे यावत् - वा, गो संलिहेज्ज वा, णो णिल्लिहेज वा, णो आयावेज जालों आदि से युक्त काष्ठ आदि से अपने शरीर को न एक बार वा, णो पयावेज वा।
साफ करे, न बार बार साफ करे। न एक बार घिसे, और न बारबार घिसे । न एक बार धूप में सुखाए न वार बार धूप में सुखाए ।
(पैर फिसल जाने या गिर पड़ने पर भिक्षु का शरीर यदि
मलमूत्र, कफादि रो खरड़ा जाए तो ) से पुष्खामेव अप्प ससरक्वं तणं वा, पत्तं वा, कळं वा, वह भिक्षु पहले सचित्त रज आदि से रहित तृण पत्र, सक्करं वा जाएज्जा, जासता से तमायाए एमंतमवरक- वाष्ट, कंकर आदि की याचना करे । याचना से प्राप्त करके मेज्जा, एतमयक्कमिसा अहे प्रामपंडिल्लसि वा, एकान्त स्थान में जाए वहाँ जाकर दग्ध (जली हुई) भूमि पर, अहिरासिसि सा, "ट्ट िनि म रिलिपी, मोग- हड्डिों के ढेर पर, लोह कीट के ढेर पर, सुष (भूसे) के ढेर पर, परासिसि वा, अण्णतरं सि वा तहप्पगारंसि पडिलेहिय. सूखे गोबर के ढेर पर, या उसी प्रकार की अन्य भूमि का प्रतिपढिलेयि. पमज्जिा पमज्जिअ सतो संजयामेव आमजेम्ज लेपन तथा प्रमार्जन करके यतनापूर्वक संयमी साधु स्वयमेव वा पमम्जेम्ज वा, संलिहेज्ज बा णिल्लिहेज्ज वा. आयावेज अपने सरीर को काष्ट भादि रो एक बार माफ करे या बार बार वा, पयावेज्जया।
साफ करे, एक बार रगड़े या बार-बार रगड़े, एक बार धुप में -आ. सु. २, अ. १. उ.५, सु. ३५३ सुखाए या बार-बार सुखाए। से भिक्खू वा भिक्खूणी बाजाब-अणुपविट्ठे समाणे अंतरा साधु-साध्वी यावत् -भिक्षा के लिए जा रहे हो, मार्ग में से ओवाए था, खाणु वा, कंटए या, घसी वा, भिलुगा बा, बीच में यदि गडहा हो, खूटा हो या टूर पड़ा हो, कांटे हों, विसमे या विज्जले वा, परियावज्जेज सति परक्कमे संजया- उत्तराई की भूमि हो, फटी हुई काली जमीन हो, ऊँची-नीची मेव परक्कमेज्जा को उज्जुयं गच्छेज्जा।
भूमि हो, या कीचड़ अथवा दलदल पड़ला हो, (ऐसी स्थिति में) -आ. सु. २, अ. १, उ. ५. सु. ३५५ दूसरा मार्ग हो तो संयमी साधु स्वयं उसो मार्ग से जाए, किन्तु
जो (गड्ढे आदि वाला विषम किन्तु) सीधा मार्ग है, उससे न
गामाणुगाम गमणस्सविहिणिसेहो
ग्रामानुग्रामगमन के विधि निषेध७६६. से मिक्लू वा भिक्खूणी बा गामाणुगाम दूइजमाणे पुरओ ७६६. साधु या साध्वी एक ग्राम या दूसरे ग्राम विहार करते
जुगमायं पैहमाणे वठूर्ण तसे पाणे उसटु पावं रीएज्मा, हुए अपने सामने की गुग मात्र (गाड़ी के जुए के बराबर चार साहट पारीएज्जा, वितिरिच्छ वा कट्ट पादं रीएज्जा, हाथ प्रमाण) भूमि को देखते हुए चले, और मार्ग में प्रस जीवों सति परक्कमे संजयामेव परक्क मैग्जा, गो उन्जुयं गच्छेज्जा, को देखें तो पैर के अग्रभाव को उठाकर चले । यदि दोनों ओर ततो संजयामेव गामाणमाम दूइजेजा।
जीव हो तो पैरों को सिकोड़ कर चले अथवा पैरों को तिरछे-आ. सु. २, अ. ३, उ. १, सु, ४६६ टेढ़े रखकर चले (यह विधि अन्य मार्ग के अभाव में बताई गई
है) यदि दूसरा कोई साफ मार्ग हो, तो उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाए किन्तु जीव जन्तुओं से युक्त सरल (सीधे) मार्ग से न जाए। उसी (जीव-जन्तु रहित) मार्ग से यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विनरण करना चाहिए।