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________________ revi चरणानुयोग सेक्स अनुपविसह मनुवा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज चाउम्मासियं परिहार द्वाणं अवाहनं । — वि. उ. १६, सु. १-३ भिक्स गणस्सविहि जिसेहो ७६६. नायणए अप्यहि अगाले। इंदियाणि जहाभागं दमद्दता मुणी चरे । ववववस्स न गच्छेज्जा' मासमाणो य गोयरे हसतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं समा ॥ fear के चलने के fafa निषेध विसमम यमस्सविहिनिहो७६०. ओवार्य विरामं लागं विज्जलं परिवन्मए । संकेण न गच्छेज्जा, विज्जमाणे परक्कमे ॥ 1 पवते व से तत्य, पक्वलंते व संजए । हिंसेज पापभूयाई, तसे अजून थावरे ॥ सम्हाले नपच्छे जसुममाहिए। सह अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥ -दस अ. ५, उ. १, गा. १३-१४ १ उत्स. अ. १७, रा. ८ । विधि - निषेध कल्प-३ - दस. अ. ५, उ. १, गा. ४-६ मिट्ठागमणमगारसविहि जिसेहो ७६८. सेभिक्खुणी वा हायतिकुल विश्वापडिया अणुपविट्ठे समाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अम्गलागि वा अग्गलपासमाथि वा माओवादरिओ वा सति परिक्कमेसंग मेज परमेा णो गच्छे 2 केवल आपापमेयं से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा पवडे ज्ज वा से तत्थ परमाणे या पवमाणे वा तत्थ से काए उच्चारेण या सूत्र ७६६-७६८ जो भिक्षु अग्नि वाली शय्या में प्रवेश करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । उसे चातुर्मास उद्यानिक परिहारस्थान ( प्रायश्वित्त) आता है। 菜 भिक्षु के चलने के विधिनिषेध ७६६. मुर्ति ऊँचा मुंह कर झुककर, हृष्ट होकर आकुल होकर (किन्तु दद्रियों को अपने अपने विषय के अनुसार) दमन कर चले । उच्च-नीच कुल में गोचरी गया हुआ मुनि दौड़ता हुआ न चले, बोलता और हंसता हुआ न चले । विषम मार्ग से जाने के विधि निषेध - ६७. दूसरे मार्ग के होते हुए गहरे को भून्या को कठे हुए पेड़ को अनाज के डंडल और पंकिल मार्ग को टाले तथा संक्रम (जल या गड्ढे को पार करने के लिए काष्ठ या पापाण-रचित पुल के ऊपर से न जाये । क्योंकि वहां गिरने या लड़खड़ा जाने से वह संयमी प्राणियों, भूतों, नस अथवा स्थावर जीवों की हिंसा करता है। इसलिए सुसमाहित संयमी दूसरे मार्ग के होते हुए उस मार्ग सेवाये। यदि दूसरा मार्ग न हो तो ना जाये। भिक्षार्थ गमन मार्ग के विधि निषेध -- ७६ वह भिक्षु यामिनी गृहस्थ के यहां माहाराचे जाते समय रास्ते के बीच में ऊंचे टेकरे या खेत की क्यारियां हों या खाइयां हों, या कोट हो, बाहर के द्वार (बंद) हो, आगल हो, जायज हो गये हो मा हो तो दूसरा मार्ग होते हुए संयमी साधु उस मार्ग से न जाए । केवली भगवान ने कहा है- यह कर्मबन्ध का मार्ग है। उस विषम-मार्ग से जाते हुए भिक्षु फिसल जाएगा या डिग जाएगा, अथवा गिर जाएगा। फिसलने, डिगने या गिरने पर
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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