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________________ सूत्र ७६१-७६६ अन्यतीथिक आदि के साथ निष्क्रमण व प्रवेश निषेध चारित्राचार [४६३ अण्णउस्थिए हि सद्धि णिक्खमण-पवेस-णिसेहो अन्यतीथिक आदि के साथ निष्क्रमण व प्रवेश निषेध७६१. से मिक्स्यू या भिक्खुणी वा बहिया विधारभूमि बा, ७६१. भिक्षु या भिक्षणी बाहर विनार भूमि (शौचादि हेतु विहारभूमि वा, णिक्खममाणे था, पविसमाणे वा, गो स्थंडिल भूमि) या विहार (स्वाध्याय) भूमि से लौटते या नहाँ अण्णउथिएण बा, गारथिएण चा, परिहारिओ अपरिहा- प्रवेश करते हुए अग्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी गृह (याचक) रिएण वा सदि बहिया विधारभूमि वा, विहारभूमि बा के साथ तथा पारिहारिक अपारिहारिक (आचरण शिथिल) णिक्लमेज्ज बा, पविसेज्ज वा। साधु के साथ न तो विवार-भूमि या बिहार-भूमि से लौटे, न -आ. सु. २, अ.१, उ. १, सु. ३२८ प्रवेश करे । अण्णास्थियाइहि सद्धि गामाणुगामगमण णिसेहो- अन्यतीथिकादि के साथ ग्रामानुग्राम गमन का निषेध४६२. से भिक्खू वा भिक्खुणी बा गामाणुगाम दूइन्जमाणे णो ७६२. एक गांव से दूगरे गांव जाते हुए भिक्षु या भिक्षुणी अण्णउथिएण वा गारस्थिएण वा परिहारिओ अपरिहा- अन्यतीथिक या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक अपारिहारिक रिएण वा सद्धि गामाणुगाम दुइज्जेज्जा। के साथ प्रामानुग्राम विहार न करे । -आ. सु. २, अ. १. उ. १, सु. ३२८ अण्णउत्थियाइहि सद्धि णिक्खममाणस्स पविसमाणस्स अन्यतीथिकादि के साथ प्रवेश और निष्क्रमण के पायच्छित्त सुत्ताई प्रायश्चित्त सूत्र७६३. जे भिक्खू अण्णउथिएण वा गारथिएण का परिहारिए ७६३. जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के साय तथा पारिवारिक वा अपरिहारिएण सदि गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अपारिहारिक के साथ गाथापतिकुल में आहार की प्राप्ति के निक्खमई वा अणुपविसह वा निफ्वमत वा अणुपविसंत वा लिए निष्क्रमण करता है या प्रवेश करता है, निष्कमण कराता साहज्जह। है ना प्रवेश कराता है, निरक्रमण करने वाले का या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू अण्णउस्थिएण वा गारस्थिएण वा परिहारिलो जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक अपरिहारिएण सद्धि बहिया विहार-भूमि वा, वियार-भूमि या अपारिहारिक के साथ (ग्राम से) बाहर की स्वाध्याय भूमि या निक्समद वा पवितह वा निक्खमंतं वा पविसंत वा में मा स्थण्डिल भूमि में निष्क्रमण करता है या प्रवेश करता है, साहज्जा निष्क्रमण कराता है या प्रवेश कराता है तथा निष्क्रमण करने वाले का या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवण मासिय परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. २. . सु४७.४१ आता है। अण्णउत्थियाइहि सद्धि गामाणुगाम दुइज्जमाणस्स अन्यतीथिक आदि के साथ प्रामानुग्राम विहार करने का पायच्छिस सुत्तं प्रायश्चित्त सूत्रा-- ७६४. जे भिक्खू अण्णउस्थिएण वा पारथिएण वा परिहारियो ७६४. जो भिक्षु अन्यतीथिक एवं गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक अपरिहारिएण सडि गामाणुगाम दूइज्जइ, बृहज्जतं बा अपारिहारिक के साथ प्रामानुग्राम जाता है, जाने के लिए अन्य को साइजह । कहता है, जाने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवम्जइ मासियं परिहारट्ठाण उग्धाइय। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। -नि.उ २, सु. ४२ निप्तिद्धसय्या पविसण पायच्छित्तसुत्तं निषिद्ध शय्याओं में प्रवेश करने का प्रायश्चित्त सूत्र७६५. जे भिक्खू सागारियं सेज्नं अणुपविसइ अणुपविसतं वा ५६५. जो भिक्षु सागारी की शय्या में प्रवेश करता है, करवाता साइम्जा। है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू सोदगं सेज्ज अगुपविसइ अगुपविसंत दा जो भि पानी वाली शय्या में प्रवेश करता है, करवाता है, साइज्जद। करने वाले का अनुमोदन करता है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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