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________________ ४६२ चरणानुयोग मार्ग में वन आदि अवलोकन-निषेध सूत्र ७५९.७६० मग्गे वप्पाइ अवलोयण णिसेहो . ६ अक्लायण णिसेहो . मार्ग में वप्र आदि अवलोकन-निषेध७५६. से भिक्खू वा भिक्खु गो वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा ७५६. प्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुषी मार्ग में से यम्पाणि वा--जाव-वरोओ दा कडागाराणि वा, पासा- आने वाले उन्नत टेकरे, खाइयां-यावत्- गुफाएँ या भूगर्भ गृह वाणि बा, मगिहाणि वा, रूपनगिहाणि बा, पवितमिहाणि नथा कूटागार (गर्वन पर बने घर) प्रासाद. भूमिगृह, वृक्षों को वा, रूपख वा, चेतियकर्ड भूभं वा, चेतियकर आएसणाणि काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वत पर बना हुआ घर, चैत्यवा, आयतगाणि वा, देवकुलाणिवा, सहाणि वा, पवाणि वृक्ष, चैत्य-स्तूप, लोहकार आदि की शाला, आयतन, देवालय, वा, पणियगिहाणि वा, पणियसालाओ या, जाणगिहाणि वा, सभा, प्याऊ, दुकान, गोदाम, यानगृह, यानणाला चूने का, जाणसालाओ वा, सुहाकम्मताणि वा, घरभकम्मंताणि का, दर्भ-कर्म वा, वल्वाल कर्म का, चर्म-कर्म का, वन-कर्म का कोयले बक्ककम्मंताणि वा, चम्मकम्भताणि बा, वणकम्मंताणि बनाने का, काष्ठ-कर्म का कारखाना, तथा श्मशान, पर्वत, गुफा वा, इंगालफम्मंताणि या, कट्ठकम्मंताणि वा, सुसाण- आदि में बने हुए गृह, शान्तिकर्म पृह, पाषाण मण्डप एवं कम्मंताणि वा, गिरिकम्मताणि वा, कंदर-कम्मंताणि वा, भवनगृह आदि को बांहें वार-बार ऊपर उठाकर, अंगलियों से संति कम्मंताणि वा, सेलोवाण कम्मंताणि बा, भवण- निर्देश करके, शरीर को ऊँचा-नीचा करके ताक-ताक कर न गिहाणि वा णो बाहाओ पगिनिमय पगिज्य अंगुलियाए, देखे, किन्तु यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करने में प्रवृत्त रहे । उदिसिय उहिसिय ओणमिय ओणमिय, उण्णमिय उणमिय णिमाएजा । ततो संजयामेव गामाणुगानं इज्जेज्जा । . . २, ३, उ. ३, मु. ५०४ मग्गे कच्छाइ अवलोयण णिसेहो मार्ग में कच्छादि अवलोकन निषेध७६०. से भिक्खू चा भिक्षुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा ७६७. प्रामानुपाम विहार करते हुए साधु-साध्वियों के मार्ग में से कच्छागि था, रवियाणि या, पूमाणि चा, पलयाणि या, यदि कन्द्र (नदी के निकटवर्ती नीचे प्रदेश), पास के संग्रहार्थ गहणाणि वा, गहणविजुम्गाणि य, पगाणि वा, वर्णावदुग्गाणि राजकीय त्यक्त भूमि, भूमिगृह, नदी आदि से वेष्टित भूभाग, था, पक्वताणि' बा, पचतविदुग्गाणि वा, अगडाणि वा, गम्भीर निर्जन प्रदेश, पर्वत के एक प्रदेश में स्थित वृक्षवल्ली तलागाणि या, दहणि वा, पदोमओ वा, वायोओ वा, पोपत्र- समुदाय, गहन दुर्गम वन, गहन दुर्गम पर्वत, अरण्य पर्वत पर भी रणीओ बा, दीहियाओ बा, गुंजालियाओ वा, सराणि वा, दुर्गम स्थान, प. तालाब, द्रह. (झीने), नदियाँ, बावडियाँ, सरपंतियाणि वा. सरसरपंतियाणि वा णो बाहामओ पुष्करणियां, दीपिकाएं (लम्बी बावड़ियाँ), गहरे और टेढ़े-मेढ़े पगिक्षिय-जावाणिज्माएज्जा । जलाशय, बिना बोदे तालाव, सरोवर, सरोवर की पंक्तियां और बहुत से मिले तालाब हों तो उन्हें अपनी भुजाएं ऊँची उठावर, (अंगुलियों से संकेत करके तथा शरीर को ऊँचा-नीचा करके) --यावत् -- ताक-ताक कर न देखे । केवली पूधा-आयाणमेयं । केवली भगवान् कहते हैं यह कर्मबन्ध का कारण है। जे तस्य मिगा वा, पसुया था, पक्खी बा, सरोसिवा था, क्योंकि ऐसा करने से जो इन स्थानों में मृग, पशु, पक्षी, सोहावा, जलघरा बा, थलचर वा, खहवरा बा, सत्ता ते, सांप, सिंह, जलचर, स्थलचर, खेचर, जीव रहते हैं, वे साधु की उत्तसेज्ज वा, वित्तसेग्न वा, थावा, सरणं वा कखेज्जा, इन असुबममूलक चेष्टाओं को देखकर त्रास पायेंगे, वित्रस्त होंगे, धारे ति में अयं समणे । किसी बाड़ की शरण चाहेंगे तथा वहाँ रहने वाले यह विचार करेंगे कि वह साधु हमें हरा रहा है। अह भिक्खूणं पुख्बोवविट्ठा-जाव-एस उपएसे ज को बाहाओ अतः तीर्थंकरों में पहले से ऐसी प्रतिज्ञा-यावत्-उपदेश पगिज्मिय-जाव-णिमाएज्जा । ततो संजयामेव आयरिय- किया है कि साधु अपनी भुजाएँ ऊँची उठाकर पावत्-ताक ताक उवयाहि सदि गामागुगाम दाम्जेजा। कर न देखे अपितु वतनापूर्वक आचार्य और उपाध्याय के साथ - आ. सु. २, अ. ३. उ. ३, सु ५०५ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ संयम का पालन करे। १ तहेब गंतुमुज्जागं, पव्वयाणि वगाणि य । स्वखा महल पहाए. मेवं भामेज्ज पण्णवं ।। -दरा, अ.७, गा.२६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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