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________________ ४८६] चरणानुयोग ईर्या समिति के भेद-प्रभेद ईर्यासमिति विधिकल्प-१ इरियासमिहए भेयप्पभेया ईसिमिति के भेद-प्रभेद७४३. आलंबणेण कालेणं, मग्गेण जयणाई य। ७.४३. संयमी मुनि आलम्बन, काल, मार्ग और बनना -इन चार घउकारणपरिसुद्ध, संजए इरियं रिए। कारणों से पारे शुद्ध ईर्या (गति) से चले । तत्य आलंचणं नाणं, दसणं चरण तहा। उनमें ईयाँ का आलम्बन, ज्ञान, दर्शन और चारित्र है। काले य दिबसे बुत्ते, मग्गे उप्पहज्जिए ।। उराका साल बिनम है और उत्पम का वर्जन करना उसका मार्ग है। दखओ खेतो चेव, कालओ शवओ तहा। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में यतना चार प्रकार की कही जयणा चउम्विहा चुत्ता तं मे कित्तयो सुण ॥ गई है । वह मैं कह रहा हूँ. सुनो। बवओ चक्खुसा पेहे. द्रव्य मे-आपों से देखे । सुगर' में खेसो क्षेष रो-युग मात्र (गाड़ी के जुए जितनी) भूमि को देखे । कालमो जायरीएज्जा, काल से-जब तक ले तब तक देखे । उबउत्ते य भाषओ ॥ भाव से-उपयुक्त (गमन में दत्तचिन) रहे। इंवियत्थे विज्जित्ता, सज्झायं चैव पंचहा । इन्द्रियों के विषयों और पांच प्रकार के स्वाध्याय का वजन सम्मुत्ती तापुर क्कारे, उवउत्ते रियं रिए॥ कर, ईर्या में तन्मय हो, उसे प्रमुख बनाकर उपयोगपूर्वक चले । .-उत्त. अ.२४, गा.४-८ एवं कुससस्स बसणं । (ईया-विवेक) यह वीतराग परमात्मा का कुशल दर्शन है । साहिहीए. अतः परिपक्व साधव उस (वीतराग-दर्गनरूप गुरु-मान्निध्य) में ही एक मात्र दृष्टि रखे. तम्मुत्तीए, उमी के द्वारा प्ररूपित विषय-कपाय-आमक्ति से मुक्ति में मुक्कि माने, 'उमी को आगे (दृष्टिपय भ) रम्बकर मुक्ति माने, तप्पुरषकारे, उसी को आगे दृष्टिगथ में रन्दकर विचरण करे, तस्सग्णी, उसी का संज्ञान-स्मृति सतत सब कार्यों में रखे, उसी के सान्निध्य में तल्लीन होकर रहे । तग्णिवेसणे, जयं विहारी, चित्तणिवाती पंथणिस्ताई मुनि (प्रत्येक चर्या में) यतनापूर्वक बिहार करे, चित्त को पालिबाहिरे पासिय पागे गस्छज्जा। (गति में) एकान कर मार्ग का सनत अवलोकन करते हुए (दृष्टि टिकाकर) चले । जीव-जन्तु को देखकर पैरों को आगे बढ़ने से रोक ले और मार्ग में आने वाले प्राणियों को बचाकर गमन करे। से अभिमकमममाणे पडिक्कमममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे बह भिक्षु जाता हुआ, वापस लौटता हुआ, अंगो को सिकोविनियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे । इता हला, फैलाता (पसारता हुआ) इन समस्त अशुभप्रवृत्तियो से निवृत्त होकर, मभ्यक् प्रकार से परिमार्जन करता हुआ समस्त क्रियाएँ करे। १ टा. ७.५. उ. ३, गु. ४६५ ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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