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सूत्र ७४१-७४२
अष्टप्रवचन माता
चारित्राचार
[४८५
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अष्टप्रवचन माता का स्वरूप
अढापवयणमायाओ
अष्टप्रवचन माता.. ७४१. अठ्ठ पत्यणमायाओ' पण्णत्ताओ, त जहा.
७४१. प्रथचन गाता आभकार है. जैसे१. इरियासमिई, २. भासासमिई,
(१) ईयासमिति, (२) भाषासमिति, ३. एसणासमिई, ४. आयाण-भंड-गाविणासाना
जाणाममिति आदान-भांड-अमत्र-निक्षेपणा समिति, ५. उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल परिवावणियासमिई १५) उच्चार-प्रसवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-परिस्थानिकी
समिति, ६ मणगुत्ती, ७. वइगुत्ती, ८. कायगुत्ती।।
(E) गनोगुप्ति, (७) वचनगुप्ति और (4) कायगुप्ति ।
--मभ. सम ८, सु. ६ एयाओ पंच समिईओ चरणस्स य पवत्सगे ।
ये पान समितियां चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं और तीन गुत्ती नियत्तणे घुत्ता असुभत्येसु सवसो' । गुजियाँ राम अशुभ विषयों से निवृत्ति करने के लिए हैं। एया पत्रपणमाया जे सम्म आयरे मुणी।
जो पण्डित मुनिन प्रवचन-माताओं का सम्यक् आचरण से खिरपं सम्वसंसारा विष्पमुच्चद पण्डिए॥
करना है. वह शीघ्र ही सर्व संमार से मुक्त हो जाता है। -उत्त, . २४, गा. २६-२७ अटुसमिईओ
आठ समितियां७४२. अट समितीओ पण्णताओ. तं जहा-.
७४३. समितियाँ आठ कही गई हैं, जैसे१. इरियासमिति,
१. गमन में सावधानी-युग प्रमाण भूमि को शोधते हुए
गमन करना। २ भासासमिति,
२. बोलने में सावधानी रमना तथा हित, मित, प्रिय वचन
बोलना। ३. एसणासमिति,
३. गोचरी में सावधानी रखना-निर्दोष भिक्षा लेना। ४. आयाणभंड-मत्त-गिक्षेत्रणासमिति,
४. अगत्र-निक्षेपणा समिति-भोजनादि वे भाण्ड पात्र आदि
को सावधानीपूर्वजा देखकर तथा गोधन कर लेना और रखना। ५. चार-पासवण-खेल-सिंघाण जल्ल-परिट्ठावणियासमिति. ' उच्चार (मन्न) प्रस्रवण (मूत्र) फ्लेग्म (का) मिघाण
(नामिका वा मैल) जल (शरीर का मैल) निर्जीन स्थान में डालना। ६. मण-समिति,
६. मन को संगम में रत रखना। ७. वासमिति,
७. विवेक पूर्वव बोलना। ८. कायसमिति,
-ठाणं अ ८, सु. ६०३ ८. काया से संबर एवं कम निर्जरा करना । एयाओ अठ समिईओ समासेण विवाहिया ।
ये आय समितियाँ मक्षेप में वही गई हैं । सुवालसंग जिणऽक्वायं भायं जस्थ उपवयणं ॥
इनमें जिन-भाषित द्वादशांग-रूप प्रवचन ममाया हुआ है। –उत्त. अ.२४, या.३
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१ (क) आगमों में अष्ट प्रवचन माता की दो प्रकार की विवक्षाए हैं, यथा—पाँच समिति और तीन गुप्ति इनमें द्वादशांग समाविष्ट
है। इन अष्टप्रवचन माताओं से ही वादशांग प्रवचन का प्रमव हुआ है। (ख) अट्ट पवयणमा याओ समिई नुत्ती तहेब य । पंचेव य समिईओ तो गुत्तीओ आहिया ।।
इरिया भासेमणादाणे उच्चार समिई इया । मणगुन्ति वयगुत्ती कायगुती य अट्ठमा ॥ --उत्त. अ. २४, गा. १-२ २ (क) आव. अ. ४. सु. २४, () ठाणं. अ. ५. सु. ४५७, (ग) गम, स. ५. सु. १।। ३ एगओ विरई कुज्जा, एगो य पवत्तणं । असंजमे निर्यात न, संजमे य पयत्तणं ।।
. - उत्त. अ. ३१, गा.२ ४ ईर्यादि पांच की समिति और मनोगुप्ति आदि तीन की गुप्ति मंशा सर्वत्र प्रसिद्ध है पर हम गाथा में नया ठाणं. अ. ८,६०३ में
आठों की समिति संज्ञा का ही उल्लेख है।