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________________ ४८२] चरणानुयोग दिन में या रात्रि में गृहीत खेप प्रयोग के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ७३८-७३६ जे भिक्खू रति गोमयं पडिगाहेता विवा कार्यसि वर्ण जो भिक्षु रात में मोबर लेकर दिन में शरीर पर हुए अण आलिज्ज वा विलिपेज्ज श, पर लेप करता है, बार बार लेप करता है, आलिंपावेज्ज था विलिपावेज्ज वा, लेप करवाता है, बार बार लेप करवाता है. आलिपंतं वा विलितं वा साइजह । लेप करने वाले का, बार बार लेप करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू रति गोमयं पजिग्गाहेत्ता रति कार्यसि वर्ण जो भिक्षु रात में गोबर लेकर रात में शरीर पर हुए बण आसिपेज्ज वा विक्षिपेज्ज बा, पर नप करता है, बार बार लेप करता है. आसिपावेज वा बिलिपावेज्ज वा, लेप करवाता है, बार बार लेप करवाता है. आलिपंतं वा विलितं वा साइज्जह । लेप करने वाले का, बार बार लेप करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज चाउम्मासियं परिहारहाणं अशुग्याइयं । उसे अनुयातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि. 3. १२, सु. ३२-३५ आता है । दिवसे वा, रयगीए वा गहियलेवपओगस्स पायच्छित्त दिन में या रात्रि में गहीत लेप प्रयोग के प्रायश्चित्त सुत्ताई सूत्र७३६. जे भिक्खू दिवा आलेवणजाय पडिग्गाहेत्ता विवा कायसि वर्ण ५३६. जो भिक्षु दिन में पेप मात्र ग्रहण कर दिन में शरीर पर आलिपज्ज वा विलिपेज्ज वा, हुए वण पर लेप करे., बार बार लेग करे, आलिंपावेज्ज वा गिलिपावेज्ज वा, लेग करावे, बार बार लेप करावे, आलिपंत का विलिपंतं वा साइज्जड़। लेप करने वाले का, बार बार लेप करने वाले का अनुमोदन बरे। जे भिक्खू दिया आलेवणजायं पडिम्माहेत्ता रत्ति कार्यसि वणं जो भिक्षु दिन में लेप मात्र ग्रहण करके रात में शरीर पर आलिज्ज वा विसिपेज वा, हुए प्रण पर लेप करे, बार बार लेप करे, सिंपावेज वा विनिपावेज्ज वा, लेप करावे, बार बार लेप करावे. आलिपंतं वा बिलिपतं या साइज्जइ। लेप करने वाले का, वार बार लेप करने वाले का अनुमोदन करे । जे भिक्खू रति आलेवणजायं पटिगाहेत्ता विश कार्य सि वणं जो भिक्षु रात में लेप मात्र ग्रहण करके दिन मे शरीर पर आलिपेज वा विलिपेज्ज वा, हए व्रग पर लेप करे, बार बार लेप करे. आतिपावेज वा बिलिपावेज्ज वा, लेप करावे, बार बार लेप करावे. आलिपंतं वा विलिपंतं वा साइजइ । नेप करने वाले का, बार बार लेप करने वाने का अनुमोदन करे। जे भिक्खू रति आलेवणजाय परिग्गाहेत्ता रति कार्यसि वर्ण आलिपेज वा बिलिपेज वा, आलिंपावेज्म वा विलिपावेज वा, आलिपतं वा विलिपतं वा साइम्म । जो भिक्षु रात में लेप मात्र ग्रहण करके रात में शरीर पर हुए व्रण पर लेप करे. बार बार लेप करे, लेप करावे, बार बार लेप करावे, __ लेप करने वाले का, बार बार लेप करने वाले को अनुमोदन करें। ..सं सेवमाणे आवजह चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्याइयं। -नि. उ. १२, सु. ३६-३६ उरो अनुद्घातिक वातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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