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________________ सूत्र ७३६-७३८ रात्रि में अशनादि के संग्रह करने के तथा खाने के प्रायश्चित्त सूत्र राईए असणाई संगह करण-भुजग पायच्छित सुसाई रात्रि में अनादि के संग्रह करने के तथा खाने के प्राय सदू - www जे मिलू परिवासियरस असणस्स बाजाब-साइमस्स वा तयणमाणं वा भूप्यमाणं वा विदुप्पमाणं वा आहारं आहारेद्द आहारतं वा साइज्जइ । ७३६. जे भिक्खू असणं वा जाव साइमं वा अणागाठे परिवासेइ ७३६. जो भन्नु अत्यावश्यक कारण के अतिरिक्त अमन-पावत्परिवात या साइज्जद । स्वाय रात्रि में रखता है, रखवाता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है । तं सेवमाने आवश्य वाढण्यास इयं । परिहारार्थ अनुपा - नि. उ ११, सु. ७८.७६ पारिपासि १ मिलिया ३. सिंगबेरं वा ४. सिंगबेरचुष्णं वा ५. बिलं या ६ लोगं वा, ७. उग्भियं लोगं वा आहारेड आहारतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जद चाउ मासियं परिहारट्ठाणं अणुइयं । वि. उ. १२. गु. ११ दिवाभोयणस्स अवग्णं राई भोयणस्स घण्णं वदमाणस्स पायच्छित सुसाइ ७३७. जे भिक्खू दियाभोयणस्स अवण्णं वयद्द वयंत घर साइज्जइ । जे भिक्खू राइभोयणस्स वण्णं वच वयंतं वा साइज्जइ । तं सेवमा आवद्द भाम्बासिय परिहारा अणुस्वाइयं । - उ. ११. मु. ७२-७३ सेवा पीए गगोमयलेक्स पाति सुत्ता ७२. गोमयं पडिरहेका वर्ण अलिपेज वा विलिपेज्ज वा आलिपावेज वा विलिपवेज्ज या, आसितंवर विलितं वा साइज्जइ । चारित्राचार जे मिक्सू दिया गोमयं पडिग्गार्हता ति कार्यसि वर्ण आलिपेज्ज वा बिसिपेज्ज वा [vet आपिवेज्ज वा विलिपावेज वा आलितं या विलितं या साइज्ड । जो भिक्षु वासी रूखे हुए अशन यावत् स्वाद्य त्वक् प्रमाण भूतिप्रभाण चुटकी जितना तथा बिन्दु प्रमाण जितना आहार करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । उसे अातिकासिक परिहारस्वान (प्रायश्वित) आता है । 1 जो भिक्षु रात बासी रखे हुए १. पीपल, २. पीपल का चूर्ण, ३. सूत्र. ४. सूंठ का चूर्ण ५ बिल्ब ६. समुद्र को लवण, ७. खनिज लवण का आहार करता है, करवाता है या करने वाने का अनुमोदन करता है । उसे अनुपानिक मार्गानिक परिहारस्थान (आय) आता है। दिवा भोजन निन्दा और रात्रि भोजन प्रशंसा के प्रायरिचत सूत्र ७३७. जोभिनु दिन में भोजन करने की निन्दा करता है। करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु रात्रि भोजन करने की प्रशंसा करता है. करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । अनुयानिक नामांगिक परिहारस्थान (प्राचित) अता है । दिन में या रात्रि में ग्रहण किए गए गोवर के जेप के प्रायश्चित्त सूत्र - ७३८. जो भिक्षु दिन में गोबर लेकर दिन में शरीर पर हुए व्रण पर लेप करता है, बार-बार लेप करता है, लेन करवाता है, बार बार लेप करवाता है, लेप करने वाले का बार बार लेप करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु दिन में गोबर लेकर रात में शरीर पर हुए व्रण पर लेप करता है. बार बार लेप करता है। लेप करवाता है, बार बार लेप करवाता है. लेप करने वाले का बार बार सेव करने वाले का अनुमोदन करता है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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