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________________ ४८०] चरणानुयोग दिन में या रात्रि में अशमादि ग्रहण करने के तथा खाने के प्रायश्चित्त सूत्र দুস ওই ৪-৩২২ अह पुण एवं जाणेज्जा-'अणुग्गए सरिए अत्यलिए वा" से यदि वह ऐसा जाने "सूदिय हुआ नहीं है या सूर्यास्त हो जं च मुहे. जंच पडिग्गहंसि तं विगिचेमाणे विसोहेमाणे तं गया है" तो जो मुंह में है, हाथ में है, और जो पात्र में है उसे परिट्ठमाणे गाइफमइ । जो तं मुंजइ भुजतं वा साइज्जई। निकाल कर, साफ कर परठने वाला (वीतराग की आज्ञा का) उल्लंघन नहीं करता है। यदि वह ऐसा आहार करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है।। जे भिवस्य उग्गवित्तीए अणमियसकम्ये असंघधिर विति- जिस भिक्षु या सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले आहार गिच्छा समावणेणं अपाणणं असणं श-जाव- साइमं वा करने का संकल्प है. अस्वस्थ है, सन्देह सहित है और स्वयं अशन पडिमाहेत्ता मुंजद मुंजतं वा साइज्जद्द । यावत् स्वाद्य ग्रहण करके उपभोग करता है, करवाता है, करने वाले वा अनुमोदन करता है। अह पुण एवं जाणेज्जा—'अणुग्गए सुरिए अत्यमिए वा" से यदि यह ऐसा जान 'सूर्योदय हुआ नहीं है या सूर्यास्त हो जंच मुहे, जं च पाणिसि, जंच पडिम्मर्हसि तं विगिमाणे गया है" तो जो मुंह में है, हाथ में है और जो पात्र में है उसे विसोहेमाणे तं परिमाणे गाइक्कमह। जो तं भुंजइ भुंजत निकाल कर साफ कर परठने वाला (वोतराम की आज्ञा का) वा साइम्जाइ। उल्लंघन नहीं करता है । यदि वह ऐसा आहार करता है, करवाता है. करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवाजइ चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं। उसे अनुपातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १०, मु. ३१-३४ आता है। दिवसे वा रयणीए वा असणाई गहण-भुजण पायपिछत्त दिन में या रात्रि में अशनादि ग्रहण करने के तथा खाने के सुत्ताई - प्रायश्चित्त सूत्र७३५. जे भिक्खू दिया असणं वा-जाव-साइमं वा पडिग्गाहेत्ता चिया ७३५. जो भिक्षु दिन में अशत-पावत् -स्वादिम आहार को मुंजह भुजंत वा साइज्जई।' ग्रहण करके दिन मे खाता है, खिलाता है या खाने वाले का अनु मोदन करता है। जे मिक्खू विया असणं बा-जाब-साइमं वा पडिग्गाहेता रत्ति जो भिक्षु दिन में अणन -यावत्-स्वादिम आहार को ग्रहण मुंजा मुंजत वा साइज्जई। करसे रात्रि में खाता है, खिलाता है या लाने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खु रत्ति असणं या-जाब-साइमं वा परिम्गाहेता दिया जो भिक्षु रात्रि में अशन - यावत्-स्वादिम आहार को ग्रहण भुंजइ भुंजतं वा साइज्जइ। करके दिन में खाता है, खिलाता है या खाने वाले का अनुमोदन बरता है। जे मिक्खू रत्ति असणं वा-जान-साइमं या पष्टिग्गाहेत्ता राई जो भिक्षु रात्रि में अशन - यावत् -स्दादिम आहार को ग्रहण मुंजइ भुंजतं वा साइज्जद । करके रात्रि में खाता है, खिनाता है, खाने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आरज्जव चाउम्मासियं परिहारदाणं अणुग्याइये। उसे अनुदातिक बातुर्मामिक गरिहारस्थान प्रायश्चित्त -नि. उ. ११. सु. ७४-७७ आता है। म सूत्र में दिन में अशनादि ग्रहण करके दिन में उसका उपयोग करने पर प्रायश्चित्त विधान है। इस सम्बन्ध में चूणिकार का स्पष्टीकरण इस प्रकार है - पढम भंग संभवो इमो-दिया धेनुंगिसि संबासे तुं तं वितिपदिणे भुंजमाणस्त पढम भंगो भवति ।। प्रथम भंग की रचना इस प्रकार है - दिन में ग्रहण किए हुए अशनादि को रात में रखकर दुमरे दिन उसका उपयोग करने पर उपभोक्ता प्रायश्चित्त का पात्र होता है। -देखें गाथा ३३.६७ को चूर्णी
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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