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________________ सूत्र ७४० उगात गिलने का प्रायश्चित्त सत्र चरणानुयोग ४३ उग्गालगिलणस्स पायच्छित्त सुत्तं--- उद्गाल गिलने का प्रायश्चित्त सूत्र७४० जे भिक्खू राओ वा, वियाले वा संपाणं सभोयणं उग्गालं ७४०, जो भिनु रात में या विकाल (सूर्योदय से पूर्व या पश्चात् उग्गलित्ता पच्चोगिलइ पच्चोगिलत वा साइजद्द । सन्ध्या भगव) पानी या भोजन के नगाल को उगलकर निगलता है, निगल पाता है या निगलने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज चाउम्मासिय परिहारदाणं अणुग्घाइय। उसे अनुदानिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ, १०, सु. ३५ आता है। १ (क) इस सूत्र के समान एक सूत्र कप्पसुत्तं में भी है । जो यहाँ नीचे अंकित है । दोनों सूत्र समान विषय वाले हैं। दोनों सूत्रों में प्रायश्चित्त विधान भी समान है। किन्तु निशीथ का सूत्र संक्षिप्त है और कप्पसुत्त का सूत्र विस्तृत है-इससे प्रतीत होता है दोनों मूत्रों के स्रष्टा भिन्न हैं। (ख) इह खलु निगंथ स्स वा निग्गंथीए वा, राओ वा वियात बा, सपा सभोयणे उगाले आगच्छेग्जा, तं विग्चिमाणे या विसोहेमाणे वा नौ अइक्कमइ । उगालित्ता पच्चोगिलमाणे गइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ पाउम्मासियं परिहारदाणं अगुग्याइयं । -कप्प. उ. ५. सू. १० (ग) तओ अणुग्घाइया पत्ता , तं जहा -१. हत्यकम करेमाणे, २. महर्ण पडिसेवमाणे, ३. राइभोयगं भुजमाणे । - --कप्प. उ. ४, मु.१ इम सूत्र में नीनों कार्य अनुद्घातिक प्रायश्चित्त योग्य हैं किन्तु प्रथम "हस्तकम" मासिक अनुपातिक प्रायश्चित्त योग्य है शेष “मैथुन के संकल्प" और "रात्रिभोजन" ये दो चातुर्मामिक अनुदातिक प्रायश्चित्त योग्य हैं।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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