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________________ सूत्र ७२३-०२७ षष्ठ व्रत आराधन प्रतिज्ञा पारिवाचार ४७५ रात्रि भोजन-निषेध-१ छट्टवय आराहण पइण्णा--- षष्ठ व्रत आराधन प्रतिज्ञा७२६. अहावरे छ8 मंते ! वए राईभोयणाओ वेरमणं । ७२६. भन्ते ! इसके पश्चात् छठे व्रत में रात्रि-भोजन की विरति होती है। सध्वं भंते ! राईभोगणं पच्चपखामि भाते ! मैं सब प्रकार के रात्रि-भोजन का प्रत्याख्यान करता हूँ। से असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वर, जैस-अगन, पान, खादिग, स्वादिम । (से य राइभोयणे चउबिहे पण्णते. (वह रात्रि-भोजन चार प्रकार के हैं-- तं जहा—१. दव्वओ, २. खेतओ. ३. कालओ. ४. भावओ। जैस--(१) द्रव्य से, (२) क्षेत्र रो, (३) काल से, (४) भाव से। १. दश्वो असणे वा-जाव-साइमे वा। (१) द्रव्य से—अशन, पान, खादिम एनं स्वादिम । २. खेत्तओ समयखेते। (२) क्षेत्र से--समय क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) में अर्थात् जिस समय जहाँ रात्रि हो। ३. कालओ राई। (२) काल सेवात्रि में। ४. भाषओ सिते या, कटुए वा, कसाए वा, अंबिले या महरे (४) भाव से-तिक्त, कडवा, कसैला, खट्टा, मीठा या वा, लवणे था।) नमकोन ।) नेव सर्व राई मुंजेज्जा, नेवन्नेहि राई भुंजावेज्जा, राई झुंजते किसी भी वस्तु को रात्रि में मैं स्वयं नही खाऊँगा, दूसरों वि अन्ने न समणुजाणेज्जा, जावज्जोवाए तिविहं तिबिहेणं को नहीं खिलाऊँगा और खाने वालों का अनुमोदन भी नहीं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करेंत पि अन्नं करूंगा, यावज्जीवन के लिए तीन करण तीन योग से—मन से, न समजाणामि । वचन से, काया से न करूंगा, न कराऊँगा और करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूंगा। सस्स भंते 1 परिपकमामि निदामि गरिहामि अपाणं बोसि- भन्ते ! मैं (अतीत के रात्रि भोजन से) निवृत्त हाता हूँ, रामि। उसकी निन्दा करता हूँ, गहीं करता हूँ और आत्मा का व्युत्मर्ग करता हूँ। छ भते ! बए उचट्टिनोमि सम्याओ राईभोयणाओ बेरमण भन्ते ! मैं छठे व्रत में उपस्थित हुआ हूँ, इसमें सर्व-रात्रि भोजन की विरति होती है। इच्चेयाई पंच महजयाई राइभोयणवेरमणलाई अत्तहियट- मैं इन पांच महाव्रतों और रात्रि-भोजन-विरति रूप छठे प्रत याए उवसंपग्जिसाणं विहराभि । दस. अ. ४, सु. १६-१७ को आत्महित के लिए अंगीकार कर विहार करता हूँ। राइए असणाइ गण-णिसेहो रात्रि में अशनादि ग्रहण का निषेध७२७. नो कप्पा निगं थाणं वा निम्नधोणं श, ७२७. निग्रंथों और निन्धियों को राओ वा बियाले वा रात्रि में या विकाल में असणं वा, जान-साइमं या पडिग्गाहेत्तए, अणन-यावत्- स्वादिम लेना नहीं कल्पता है। नन्नस्थ एगेणं पुटवपडिलेहिएणं सेज्जासंचारएणं । केवल एका पुर्व प्रतिलेखित शव्या संस्तारक को छोड़कर। -कण्य. ३. १, गु. ४४ १. चउविहे वि आहारे, राईभोयणवज्जणा। सन्निही संचओ चेन', वज्जेयव्यो सुधकरं ।। ----उत्त, अ. १६, गा.३१ २. रात्रि भोजन विरमण अत प्रथम अहिंगा अत में ही अन्तर्भूत है, अतः चतर्याम धर्म और पंचयाम धर्म में इस व्रत का स्वतन्त्र रूप से उल्लेख नहीं हुआ है, श्रुतरश्चविरों ने सरलता के लिए जग पा का भिम विधान पीछे से किया है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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