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________________ ४७६ चरणानुयोग राइभोषण हि कारणं ७२८. संतिने सुमा पाणा, तसा अबुव बावरा । जाई राओ अपासंतो, कमेसणियं चरे ? " बोस, पागा निव्यडिया महि विभा ताई विषज्जेज्जा, राओ तत्थ कहं वरे ? ॥ एवं नाग भासि सम्वाहारंग भुजेति निग्ारा रामीण साहिो-७२९. अरथंगयम्मि आइन्चे, पुरत्या य अजुग्गए । आहारमाइयं सत्यं मनसा हि न पत्थए । रात्रि-भोजन निषेध का कारण पारिवासिय आहारस्स भुजे पिसेहो ७३०. नो कप्पड़ निग्गं याण वा निग्गंधीण वा, परियासिस आहारस्य तपमाण मे मवि भूप्यमाणमेत्तमवि, नाहि रोग - इस. अ. ५, गा. २० तोर्या कुप्पमाणमेतमवि आहारमाहारेलए, ॥ जातपुत्र महावीर ने इस हिसात्मक दोष को देखकर कहा"जो नित्य होते हैं ये रात्रि भोजन नहीं करते, चारों प्रकार के - दस. अ. ६. गा. २३ ९५ आहार में से किसी भी प्रकार का आहार नहीं करते।" रात्रि भोजन का सर्वथा निषेध -- रात्रि भोजन निषेध का कारण- ७२८ ओस और स्वावर सूक्ष्म प्राणी हैं, उन्हें रात्रि में नहीं देखता हुआ निन् एषण कैसे कर मकता है ? पारिवासिय सेवनपभोग नसे ७३१. नो कप्पड निम्गंथाण वा निमगंथीण वा, मारियासिसेवन जाए गामा आए वाता त्या रोग. ५.४ उसे और बीजयुक्त भोजन तथा जीवा मार्ग उन्हें दिन में टाला जा सकता है पर रात में उन्हें टालना शक्य नहीं इसलिए निर्ग्रन्थ-रात को भिक्षाचर्या कैसे कर सकता है ? - सूत्र ७२८-७३१ ७२६. सूर्यास्त से लेकर पुनः सूर्य पूर्व में न निकल आए तब तक सब प्रकार के आहार की मन से भी इच्छा न करे । रात्रि में आहारादि के उपयोग का निषेध - ७३०. निर्ग्रन्थों और निग्रन्थियों को परिवारात्रि में रखा हुआ या कलाविकान्त) आहार त्वक् प्रमाण ( तिल- तुष जितना ) भूति प्रमाण (एक चुटकी जितना) प्प. ५. सु. ४७ लेना) कल्पता है । - खाना तथा विन्दु प्रमाण जितना भी पानी पीना नहीं कल्पता है- केवल उस रोग सूर्य आतंक में (परियामिन आहार पानी रात्रि में लेप लगाने का निषेध७३१. निर्यथों और निर्म न्थियों को अपने शरीर पर सभी प्रकार के परिवासित लेपन एक बार लगाना या बार-बार लगाना नहीं कल्पता है केवल उम्र रोग एवं आतकों में लगाना कल्पता है । -- १ रात्रि भोजन करने वाले को शयल ( प्रबल) दोष लगता है— देखिए- अनाचार में शबलदोष | २ यह सूत्र स्थविरकल्पी के उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का सूचक है और प्रश्नव्याकरण का निम्नांकित सुव जिनकल्पी के उत्सर्ग मार्ग का सूचक सूत्र है । इस सूत्र में अत्यन्त उग्र मरणात वेदना होने पर भी औषधि आदि के उपयोग का सर्वथा निषेध है । रिलियम्स रोगाके बहुप्पारंभ समुन्ने बाता-दि-हउदय-कम-यगाह महामहम जीतिक वणकरे न कप्पर नारिसे वि तह अप्पणो परन्स वा ओसह मज्जं भत्ता व तंपि संनिहि । परि पहू. सु. २, अ. ५, सु. ७
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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