________________
सूत्र ७२३
२.वर
२. धादिरागोवरई,
४. रई
पंचम अपरिमाह-महव्वयस्स पंचभावणाओ-
७२३. १. सोइंद्रियगोवरई,
पढमं
पांचवें अपरिग्रह महावत की पांच भावनाएं!
पाँचवें
५. कासिदिरावरई,
-सम. २५, सु. १ तरस इमा पंच भावणाओ चरिमस्त वयस्त होंनि परिवह
वेरमण
टुमाए ।
सोइदिएण सोचा सहाई मणुन्नमद्दगाई
प०कि ते ?
महाव्रत का परिशिष्ट-८
३०-र-र-र-थ-बीषाविपचीसो नंब-सर-परिवादिणीस तुक-पक-संतीत ताल सुनियो दोष हाइ याई ।
नड-नट्रक- जल्ल-महल- मुट्ठिक- वे लंबक-कहक-पवलास-आइखग-य-मंत्र- तुणइल- तुंब-बोणिय सालार -पकरणाणि य बहूनि महर- सुर-गीत-पुसराई ।
बी-मेहना-य-पत्रक हेर पायालय इंडिय खिणि रयगोरुमा लय छुद्दिय-नेउर मालिप-कण निवाण
सीजा-मायावीरियाई तपणी जग हसियामणिय-कल रिमित मंजुलाई, गुणवयणाणि व मधुर भाव एवमाह व सदेवु मणून मह सेतु समण न समय में जिन
पाँचवें अपरिग्रह महाव्रत की पाँच भावनाएँद्रिय के राग से विक्
२२. (१)
(२)
इन्द्रिय के राग से विरक्ति, (२) मन्द्रिय के राय से विरकि (४) जिह्वन्द्रिय के राग से विरक्ति, (५) स्पर्शेन्द्रिय के राग से विरक्ति,
परिग्रहविरमन की रक्षा के लिए अतिम अप पाँचनाएँ हैं।
को
प्रथम भावना धोत्रेन्द्रिय संयम—
१४६७
श्रोत्रेन्द्रिय से मनोज्ञ एवं भद्र-सुहावने प्रतीत होने वाले शब्दों
को सुनकर साधुको राग नहीं करना चाहिए ।)
प्र० - वे प्रशब्द कौन से हैं ?
उ०- महामर्दल, मृदंग, छोटा पटहू, मेंढक और कच्छप की आकृति के बाद विशेष बीमा, दीपंची और वल्लभी (विशेष प्रकार की बचाएँ) बद्दीक वाद्य-विशेष सुषोषा नामक घण्टा, बारह प्रकार के बाजों का निघोष, सूसर परिवादिनी - एक प्रकार की वीणा, बांसुरी तुणक एवं पर्वत नामक वाद्य, तन्त्र – एक विशेष प्रकार की वीणा करताल कांसे का साल त्रुटि इन सब बाजों के बाद को (सुनकर )
तथा नट, नर्तक, जल्ल-बांस या रस्सी के ऊपर खेल दिखलाने वाले, मल्ल, मुष्टिमल्ल, विदूषक, कथाकार, तैराक रास गाने वाले, शुभाशुभ फल कहने वाले, लम्बे बांस पर खेल करने नाते चित्रपट दिवाकर आजीविका करने वाले, तू बजाने बाला (तून तूही) तुम्बवीणा बजाने वाला, ताल-मंजीरे बजाने वाला इन सबकी अनेक प्रकार की मधुर ध्वनि से युक्त सुस्वर गीतों को (सुनकर )
तथा करधनी, कंदोरा से कटि आभूषण, कलापक गले का आभूषण, प्रवरक और हेरक नामक आभूषण, झांझर, धुंधक, छोटी घण्टियों वाला आभरण, रत्नजालक रत्नों का जंघा का आभूषण, लुद्रिका नामक आभूषण, नूपुर चरणमालिका तथा सोने के संगर और जालक नामक आभूषण, इन सब की ध्वनि आवाज को सुनकर )
तथा लीलापूर्वक चलती हुई स्त्रियों की चाल से उत्पन्न (ध्वनि को ) एवं तरुणी रमणियों के हास्य की, बोलों की तथा स्वर-बोलना मधुर तथा सुन्दर नावाज को स्नेहीजनों द्वारा भाषितवानों को एवं
सुनकर ) और इसी प्रकार के