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________________ ७१६-७१६ राजा को वश में करने आदि के प्रायश्चित्त सूत्र वशीकरण प्रायश्चित - ७ रायसीकरणाण पायच्छित त' ७१६. जे भिक्खु रायं अत्तोकरेह अतीक वा साइज्ज जे भिक्खू राय अच्चीकरेद्र अच्चीकरें या साइज्जइ । भिक्खु रामं अस्थीकरेइ अस्थीकरें वा साइज्जइ । तं सेवमाने आज मासि परिहारद्वारा उद - नि. उ. ४, सु. १, ७, १३ आता है। अंगरखगवसीकरणाई पायटिस सुताई७१७. जे भिक्खु राधारविवयं अतीकरे अतीकरें या साइज्जइ । भिमरायारखि अरे अनोकर साह जे भिक्खू रायारविषयं अस्वीकरेड अत्यीक रेतं वा साइज्जइ । भिक्खू नगरारथिं अच्चीकरेह अच्चीकरें] वा साइज्जइ । नगरारविवयं अश्वोकरे मश्योकरें या साइज्जद्द तं सेवमाणे आवज मासियं परिहारट्ठाणं उपधाद्दयं । - नि. उ. ४, सु. ३, ६, १५ निगम रक्ख गवसीकरणाईणं पायच्छित्त सुत्ताई७१६. भिक्खू निगम रखियं अत्तीकरे मलीकरें या साइज्जइ अंगरक्षक को बस में करने आदि के प्रायश्चित सूत्र७१७ जो भिक्षु राजा के अंगरक्षक को वश में करता है, कराता है करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु (राजा के) अंगरक्षक के गुणों की प्रशंसा करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । जो (राजा) अंगरक्षक से प्रार्थना करता है कर वाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । सेवमाणे यावर मारियं परिहारद्वाणं उपायं - नि. उ. ४, सु. २, ८, १४ गररबलगवसीकरणाईणं पायच्छित सुत्ताइं उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है । नगर-रक्षक को वक्ष में करने आदि के प्रायश्चित सूत्र- 19 १८. जे भिक्खु बगरारखियं अतीकरे अतीक रेल वा साइबइ। ७१५. जो भिक्षु नगर रक्षक को वश में करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। पारिवार राजा को वश में करने आदि के प्रायश्चित्त सूत्र७१६. जो भिक्षु राजा को वषा में करता है। करवाता है, करते वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु राजा के गुणों की प्रशसा करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु राजा से प्रार्थना करता है. करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) जे भिक्खू निगमारखियं अस्वीकरेड अफची करत या साइज्जइ । जे मिक्यू गिगमारखियं अत्योकरेक अस्योक देतं था साइज तं सेवमाणे आवज मारियं परिहारा नि. [४६५ जी भिक्षु नगर-रक्षक के गुणों की प्रशंसा करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु नगर रक्षक से प्रार्थना करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। उसे मासिक उद्भाविक परिहारस्थान (प्रायश्चित आता है । निगम-रक्षक को वश में करने आदि के प्रायश्चित्त सूत्र - । ७१६. जो भिक्षु निगम-रक्षक को वश में करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु निगम रक्षक के गुणों की प्रशंसा करता है, कर वाता है. करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु निगम-रक्षक से प्रार्थन्ध करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । उसे मासिन्छ जपातिक परिहारस्थान (प्रायश्वित) छा ४. ४, १०, १६ करता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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