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________________ ४६४] चरणानुयोग कौतूहल के संकल्प से सभी कार्य करने के प्रायश्चित १.पा. लोहाणि वा करे या (६) सा जे भिक्खू को उस पडियाए अय- लोहाणि वा जाव- सुवरण लोहाणि वा घरे धरतं वा साइज्जइ । मोविए अब लोहा लोहाणि वा पिषद विणत या साइज्ज वाज | जे भिक्खू कोडहल्ल-पडियाए १. हाराणिवा, २. अवहाराणि वा. ३. एगाल वा ४. मुसा वा ५. कणगाव वा ६७. माथि वा विणिवा ९. राणि वा १०. या ११. पाणि बा. १२. उाणि वा. १३. पाणिचा १४. पण सुतानि धा करे, करें या साइज । मेडियाहारादिना जाना वा घरे, घरतं वा साइब्जइ । कोपाहाराभि वाजवण या पिट, पिगतं या साइज्जह। जे भिक्खू कोजहरूल पडिपाए १. आईनाणि वा, २. आई. यावराणि वा ३. कलाणि वा ४. कंबलपावराणि वा ५. कोयराणि वा. ६. कोयरपावराणि वा ७. कालमियाणी ८.सामा १० महासामाणि वा, ११. उट्टाणि वा १२. उट्टलेस्साणि वा १३. विद्याणि १४. विद्याणि वा १५. परसंगाणि वा. १६. सहिणाणि वा, १७. सकिल्लाणि वा १८. खोमाणि वा १६. दुगू लानि वा २०. पणलाणि वा २१. बावरंताणि वा २२. श्रीषाणि वा २२. पाणि वा गाणि वा अंसुयाणि कणकंवाणि २४. कमवा. १६. लाथि मा २७ कंग विचिताणिवा, २८ आमरण विवित्तागि वा करेह करें या साइज्जइ । २४ जे विष को-पहियाए आईणाचि वर जाव-जावरग विचित्ताणि वा धरेइ धरतं वा साइड 1 जे सिम कोजहरूल पडियार आईणाणि वा जाव-नामरणविवानिया (रिणदपि वा परिन, परिभूतं वा साइज | तं सेवमाणे आवह बाजम्मा सियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं । नि. उ. १७, सु. १-१४ मूत्र ७१५ मोहा करता है, करवाता है करने वाले का अनु मोदन करता है । 1 जो मि कौतुहल के संकल्प से अपलोहा-याषत् - सुवर्ण लोहा को धरकर रखता है, रखवाता है. रखने वाले का अनुमोदन करता है । जो कि के संकल्प से बाद गुव लोहा पहनता है, पनवाता है, पहनने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से (१) हार, (२) अर्धहार, (३) एकावली, (४) मुक्तावली (५) कनकावली, (६) रत्नावली, (७) टिन (८)बन्ध (१) र (१०) कुंडल, (११) पट्ट, (१२) मुकुट, (१३) सम्म (१४) सूत्र करे, करावे. करने वाले का अनुमोदन करे । ! जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से हार — पावद - सुवर्ण सूत्र घरकर रखे रखवावे, रखने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु कौतुहल से हार यावत् सुवर्ण सूत्र पहने, पहनावे, पहनने वाले का अनुमोदन करे । जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से (१) चर्म, (२) चर्म के वस्त्र, (३) कम्बल, (४) कम्बल के वस्त्र, (५) रुई, (६) रुई के वस्त्र, (७) कृष्ण मृग नर्म, (८) नील मृग चर्म. (६) श्याम मृग वर्म (१०) सांभर मृग पर्म (११) अँटी के वस्त्र, (१२) ऊँट की ऊन के कम्बल. (१२) व्याच चर्म. (१४) श्री का चर्म, (१५) परवंग के वस्त्र (१६) सहिण वस्त्र, (१७) चिकना सुखदायी वस्त्र, (१८) सोम वस्त्र, (१६) दुकूल वस्त्र, (२०) पणाल वस्त्र, (२१) आवरत वस्त्र, (२२) चीन वस्त्र, (२३) रेशमी वस्त्र, (२४) स्वर्ण जैसी कांति वाले वस्त्र (२३) स्वर्ण सूचों से बने वरच (२६) स्वयं वर्ण वाले महम (२७) विविध वर्ण वाले स्वर्ण वस्त्र और (२८) विविध प्रकार के आभरण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु कौतूहल के सकल्प से धर्ममावत्-आभरण घर के रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से चर्म - बावत् आमरण का परिभोग करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है । उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) जाता है । *
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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