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________________ सूत्र ६६३ काम-मोगों में भाससि का निषेध चारित्राचार {४४९ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा महावेगतियाई सहाई मुणेति, साधु-साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-शंख के तं जहा-संखसहाणि वा घेणुसहाणि वा बससहाणि वा शब्द, वेणु के शब्द, यांस के शब्द, स्वरमही के शब्द, यांस आदि खरमुहिसद्दाणि था पिरिपिरियसहाणि वा अण्ण राई तहप्प- की नली के शब्द या इसी प्रकार के अन्य नाना शुषिर (छिद्रगत) गाराई विरुवरुवाई सहाई मुसिराई कण्णसोयपडियाए गो शब्दों को कानों से सुनने के लिए कहीं भी जाने का मन में अभिसंधारेजा प्रणाए। संकल्प न करे। से भिक्खू का भिक्षणो वा महागहयाई सहाई सुति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कितं जहा--वरपाणि वा फलिहाणी वा-जाब-सराणि पा सर- खेत की क्यारियों में तथा खाइयों में होने वाले शब्द--यावर-- पंतियाणि वा सरसरपंसियाणि वा अण्णता बा तहप्पगाराई सरोवरों में, सरोवर की पंक्तियों में तथा लालाबों की अनेक विरुवरूवाइं सहाईकण्णसोपपडियाए णो अभिसंधारेज्जा पंक्तियों में होने वाले तथा इसी प्रकार के अन्य विविध शब्दों को गमणाए। कानों से सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प न करे । से मिक्खू वा भिक्खुणो वा अहावेगतियाई सहाई सुति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे किसं जहा-कच्छाणि वा माणि वा गहणाणि बा वणाणि वा नदी तटीय जलबहुल कच्छों) में, भूमिगृहों या प्रच्छन्न स्थानों वणदुग्गाणि वा पश्ययाणि वा पत्ययदुम्माणि बा अण्णतराइं में, वृक्षों से राघन एवं गहन प्रदेशों में, वनों में, वन के दुर्गम वा तहापगाराई विख्वरूवाई सहाई एणसोयपडियाए को प्रदेशों में, पर्वतों में या पर्वतीय दुर्गों में तथा इसी प्रकार के अन्य अभिसंधारेज्जा गमणाए । प्रदेशों में होने वाले शब्दों को कानों से सुनने के लिए कहीं भी जाने का मन से संकल्प न करे। से भिक्खू पा भिक्खुणी या अहावेगतियाई सद्दाई सुति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे गांवों में, तं जहा--गामाणि वा नगराणि वा निगमाणी वा रायहा- नगरों में, निगमों में, राजधानी में, आश्रम, पतन और सनिवेशों पाणि था भासम-पट्टण-सण्णि-वेसाणि वा अण्णाराई वा में होने वाले शब्द या इसी प्रकार के अन्य नाना प्रकार के शब्दों तहप्पगारा विरूवरुवाई सद्दा णो अभिसंधारेजा गमणाए। को सुनने के लिए कहीं भी जाने का मन में संकल्प न करे। से मिक्ल या भिक्षुणी वा अहावेगतियाई सदा सुति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कितं जहा-आरामागि वर उजाणाणि घा वाणि वा वण- आरामगारों में, उद्यानों में, वनों में, बनखण्डों में, देवकुलों में, संडाणि या देवकुसाणि वा समाणि या यवाणि वा अग्णतराई सभाओं में, घ्याउओं में होने वाले शब्द या अन्य इसी प्रकार के पर तहप्पणारा सहाई जो अभिसंधारेज्जा गमणाए। विविध पाब्दों को सुनने के लिए कहीं भी जाने का मन में संकल्प न करे। से मिक्खू या भिक्खणी वा अहावेगतियाएं सहाई सुति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कितं जहा -अट्टाणि वा अट्टालयाणि वा परियाणि या दाराणि अटारियों में, आकार से सम्बद्ध अट्टालयों में, नगर के मध्य में वा गोपुराणि या अण्णतराणि वा सहप्पपाराई सद्दाई णो स्धिा राजमार्गों में, द्वारों में, नगर-द्वारों में होने वाले शब्द तथा अमिसंधारेज्जा गमणाए। इसी प्रकार के अन्य स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए कहीं भी जाने का मन में संकल्प न करे । से भिक्खू वा भिषखणी या अहावेगतियाई सहाई सुणेति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं. जैसे कि - जहा –तियाणि बा चउपकाणि वा चराणि वा चाड तिराहों में, चौकों में, चौराहों में. चतुर्मुख मागों में होने वाले मुहाणि वा अग्णत राई या तहप्पमाराइं सद्दाई णो अभिसंधा- शब्द तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में होने वाले शब्दों को रेना गमणाए। सुनने के लिए कहीं भी जाने का मन में संकल्प न करे । से भिक्खू या भिक्खणी वा अहावेगतिया सहाई सुणेति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं जैसे कि-. तं जहा- महिसकरणदाणाणि वा बसमकरणट्ठाणाणि घा भंसों के स्थान, वृषभशाला, घुड़गाला, हस्तिशाला-यावत्अस्सफरगट्टाणाणि वा हस्थिकरणापाणि वा-जाब कविजल- कपिजल पक्षी आदि के रहने के स्थानों में होने वाले शब्द तथा करणढाणाणि वा अण्णतराई था तहप्पयाराई विरूवड़वाई इसी प्रकार के अन्य शब्दों को सुनने के लिए कहीं भी जाने का सहाई मो अभिसंधारेज्जा गमणाए। मन में संकल्प न करे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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