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________________ ४५०] चरणानुयोग काम-मोगों में आसक्ति का निषेध सूत्र ६६३ सुनने के लिए से मिक्सू वा भिक्खूणी या अहावेगलियाई सदार सुगेड, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कितं जहा-महिसजुवाणि वा वसभजुद्धागि या अस्स जुदाणि भैसों के युद्ध, सांडों के युद्ध, अश्द-युद्ध, हस्ति-युद्ध-पावत् - वा हस्थिजुवाणि वा-जाद-कविजलजुदाणि वा अण्ण तराई वा कपिंजल युद्ध में होने वाले शब्द तथा अन्य इसी प्रकार के पशुतहप्पगाराई विरुधरवाई सद्दाई नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। पक्षियों के लड़ने से या लड़ने के स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प' न करे। से भिक्खू या भिक्खुणी या अहागतियाई सदाहं सुणेति, साधु या सानो कानों में कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे सं जहा--हियट्ठाणाणि वा हयमूहियट्ठाणाणि वा गयजूहिय- कि-यूबिक स्थानों में, अश्वयुथिक स्थानों में, गजयूथिक स्थानों ट्ठरणाणि वा अण्णतराई वा तहापगाराई विरूवरुवाई सद्दाई में तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में शब्दों को सुनने के लिए जो अभिसंधारेज्जा गमणाए। कहीं भी जाने का मन में संकल्प न करे। से भिवा या पिी : निनाई गेंसि, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कितं जहा अक्खाइयडाणाणि वा माणुम्माणियद्वाणाणि वा कथा करने के स्थानों में, तोल-माप करने के स्थानों में, या महयाहतनट्ट-गीत-शाइत-संति-तलवाल-तुडिय-पड़प्प-दाउयट्ठा- घुड़दौड़ आदि के स्थानों में, जहाँ बड़े-बड़े नृत्य, नाट्य, गीत, णाणि वा अण्णत राई या तहप्पयाराई सहाई णो अभिः वाद्य, तन्त्री, तल (कांसी का वाथ), तालबुटित वादित्र, दोल संधारेज्जा गमगाए। बजाने आदि के आयोजन होते हैं ऐसे स्थानों में होने वाले शब्द तथा इसीप्रकार के अन्य मनोरंजन स्थलों में होने वाले शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प न करे। से भिक्न वा मिक्खुणी का अहावेगतियाई सदाणि सुर्णेति, साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि - तं जहा–फलहाणि वा स्त्रिाणि वा अमराणि पा छोरज्जाणि जहाँ कलह होते हों, शत्रु सैन्म का भय हो राष्ट्र का भीतरी या वा बेरज्जाणि वा विरुवराजाणि वा अण्णतराई या तहप्प. बाहरी विप्लय हो, दो राज्यों के परस्पर विरोधी स्थान हों, वैर गाराई सद्दाईजो अमिसंधारेज्जा गमणाए। के स्थान हों, विरोधी राजाओं के राज्य हों वहाँ के शब्द तथा इसी प्रकार के अन्य विरोधी वातावरण के शब्दों को सुनने के लिए गमन करने का मन में संकल्प न करे। से भिक्खू वा पिक्खुणी वा अहावेगलिया सहाई सुणेति, साधू या साध्वी कई प्रकार के शब्दों को सुनते हैं, जैसे तं महा-डियं गरियं परिवुतं मंडितासंकित नियुजन- कि- बस्त्राभूषणों से मण्डित और अलंकृत तथा बहुत से लोगों मानि येहाए, एगपुरिसं या वहाए पोणिममाणं पेहए, से घिरी हुई किसी छोटी बालिका को घोड़े आदि पर बिठाकर अण्णतराइ वा तहप्पगाराई यो अभिसंधारेज्जा गमणाए। ले जाया जा रहा हो, अथवा किसी अपराधी व्यक्ति को वध के लिए वधस्थान में ले जाया जा रहा हो, अथवा अन्य किसी ऐसे व्यक्ति की शोभायात्रा निकाली जा रही हो. उस समय होने वाले (जय जयकार या धिक्कार, तथा मानापमानसूचक नारों आदि के) शब्दों को सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प न करे। से भिक्खू वा निवखुगी वा अण्णतराई विस्वरूवाई महस्स- साधु या साध्नी अन्य नाना प्रकार के महोत्सवस्थानों को वाई एवं जागेज्जा, त जहा–बहसगडाणि या बहुरहाणि इस प्रकार जाने, जैसे कि-जहाँ बहुल से शकट, बहुत से रथ, वा बहुमिलक्खुणि वा बहुपच्चंताणि वा अण्णतराई' या बहुत से म्लेच्छ, बहुत से सीमाप्रान्तीय लोग एकत्रित हुए हों, तह पगाराई विस्वरुवाई मल्सबाई कष्णसोपडियाए णो अथवा इस प्रकार के नाना महा-उत्सवस्थान हों, वहाँ कानों से अभिसंधारेमा गमणाए । शब्द सुनने के लिए जाने का मन में संकल्प न करे। से भिक्ल या भिक्खणी वा अण्णतराई विरुवस्वा महुस्स- साघु या साध्वी किन्हीं नाना प्रकार के महोत्सवों को यों वाई एवं जाणेज्जा, तं जहा-हत्थीणि वा पुरिसाणि वा जाने कि जहां स्त्रिया पुरुष, मालक और युवक आभूषणों से घेराणि वा बहराणि वा महिमाणी या माचरणविभूसियाणि विभूषित होकर गीत गाते हों, बाजे बजाते हों. नाचते हो, हसते जा गयतापि वा वायंतागि वा पछताणि वा हसंताणिवा हों, आपस में खेलते हों, रतिक्रीड़ा करते हों तथा विपुल अशन
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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