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चरणामुयोग
छह प्रकार के पाव
सूत्र २२-२३
१०-इहभविए भंते ! चरिस ? परमविए चरित? तदुभयभविए परितं?
उ०-गोयमा । इहविए परिने, नो परमविए चरित, नो तवुभयविए चरित्ते। एवं तवे संजमे
–वि. स. १, अ.१, सु. १० छव्विहा भावा-. २३. छविहे भावे पण्णते, तं जहा
१. ओदइए,
प्र. हे भगवन् ! क्या चारित्र इहभबिक है ? परमविक है ? या तदुभयभविक है?
उ. गौतम ! 'पारित्र इहभाविक है, वह परभविक नहीं है और न तदुभयभविक है। इसी प्रकार तप और संयम के विषय में भी जान लेना चाहिए। छह प्रकार के भाव
भाव छह प्रकार के कहे गये हैं । जैसे
१. औदयिक भाव-कर्म के उदय से होने वाले क्रोध, मानादि इक्कीस भाव ।
२. औपशमिक भाव-मोह कर्म के उपशम से होने वाले सम्यक्त्वादि दो भाव है।
३. क्षायिक भाब-वाति कर्मों के क्षय से उत्पन्न होने वाले अनन्त ज्ञान-दर्शनादि नौ भाव ।
४. क्षायोपशमिक भाव-धातिकर्मों के क्षयोपशम से होने वाले मति-श्रुतज्ञामादि अठारह भाव ।
५. पारिणामिक भाव-किसी कर्म के उदयादि के बिना अनादि से चले आ रहे जीवत्व आदि तीन भाव ।
६. सान्निपातिक भाव-उपयुक्त भावों के संयोग से होने वाले भाव ।
२. उपसमिए,
३. खइए,
४. खओवसमिए,
५. पारिणामिए,
६, सन्निवाइए।
-ठाणं. अ. ६, सु. ५३७
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(क) अणु. उवक्कम. सु. २०७. (ख) "छविहे भावे" इत्यादि, भवनं भावः पर्याय इत्यर्थः गाहा-ओद इय उवस मिए य, वइए य तहा खओवसमेए य । परिणाम सचिवाए य, छविही भावलोगो उ ।।-11 (१। ततोदयको द्विविध: - १. उदय-२. उदयनिष्पन्नश्च, तत्रोदयोऽष्टानां कर्मप्रकृतिनामुदयः-शान्तावस्थापरित्यागेनोदीरणावलिकामतिक्रम्योदयावलि कायात्मीयात्मीयरूपेण विपाक इत्यर्थः अत्र चैवं व्युत्पत्तिः -उदय एवौदयिक: उदयनिष्पग्रस्तु कोदयजनितो जीवस्य मानुषत्वादिः पर्यायः तत्र च उदयेन निवं तस्तत्र वा भव इत्यौदयिक इत्येव व्युत्पत्तिरिति. (२) तथा औपशमिकोऽपि द्विविध:---१. उपशम, २. उपशमनिष्पपश्च. तयोपशमो वर्णनकर्मणोऽनन्तानुबन्ध्यादि भिन्नस्योपशमणिप्रतिपन्नस्य वा मोहनीय भेदान् अनन्तानुबन्ध्यादीनुपशमयतः, उदयाभाव इत्यर्थः उपशम एवौपशमिकः उपशमनिष्पन्नस्तु उपशान्त क्रोध इत्यादि उदयाभावफलस्वरूप आत्मपरिणाम इति भावना, तत्र च व्युत्पत्तिः–उपशमन निवृत्त औपथमिक इति. (३) तथा क्षायिको द्विविध:-१. क्षय, २. क्षयनिष्पन्नश्च. तर अयोऽष्टानां कर्मप्रकृतीनां ज्ञानावरणादि भेदानां, क्षय कर्माभाव एवेत्यर्थ : क्षयनिष्पमस्तु तत्फलम्पो विचित्र आत्मपरिणामः केवलज्ञानः दर्शनचारिवादि. तत्र क्षयेण निर्वतः "क्षायिक" इति व्युत्पत्तिः ।