________________
सूत्र १६-२२
धर्म स्वरूप जिज्ञासा
धर्म प्रज्ञापना
[१५
चउतीसबुद्धवयणातिसेस पत्ते
वे चौतीस बुरुवचनातिशयों से सम्पन्न थे पणतीससच्चवयणातिसेन पत्ते
-उव, मु १६ वे पैतीस सत्यवचनातिशयों से सम्पन्न थे तए णं समणे भगवं महावीरे सोसे य महामहालियाए उस समय श्रम्ण भगवान महावीर ने अनेक सौ, अनेक परिसाए, मुणि परिसाए, जड़ परिसाए, देव परिसाए, अणेग- सौवृन्द, अनेक सौवृन्दों के परिवार वाली उस महान परिषदा सयाए, अगसयार. अगसरा रिपाराए, स में. गुनि रिषदा में, यति परिषदा में, देव परिषदा में, शरद गवत्यणिय-महुर-गम्भीरकोंचणिग्योस-इंदुभिस्सरे
ऋतु के नवोन मेघ के गर्जन जैसे, कौंच पक्षी तथा दन्दुभी के
घोष जैसे स्वर से, उरे वित्थडाए, कंठे वट्टियाए
हृदय में विस्तृत, कण्ठ में स्थित, सिरे समाइण्णाए
मस्तिष्क में व्याप्त, अगरलाए
अस्पष्ट उच्चारण रहित अमम्मणाए
हझलाहट रहित, सुवत्तक्खरसण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सबभासाणुगामि- व्यक्त अक्षरों के पूर्ण संयोजन सहित सर्वभाषानुगामिनी पीए सरस्सईए
वाणी को जोयण णिहारिणासरेणं
योजन पर्यन्त नुनाई दे ऐसे रबर से अदमागहाए भासाए धम्म परिकहेइ
अर्धमागधी भाषा में धर्म कहासा वियणं अहमागहा मासा तेसिससि आरियमणारि- वह अर्धमागधी भाषा उन सब आर्य-अनार्य श्रोताओं की याणं अप्पणो सभासाए परिणमेण परिणमई - उव. सु. ५६ अपनी-अपनी भाषा में परिणत हुई। धम्मसरूवं जिण्णासा
धर्म-स्वरूप की जिज्ञासा-- २०. ५०- कतरे धम्मे अक्खाते माहणेण भतीमता?
१३. प्र० मेवलज्ञानसम्पन्न, महामाहन (अहिंसा के उपदेष्ट!)
भगवान महावीर स्वामी ने कौन-सा धर्म बताया है ? उ०-अंजु धम्मं अहातच्चं जिणाणं सं सुमेह मे।
उ. जिनबरों के द्वारा उपदिष्ट) उस सरत धर्म को -सूग.सु. १, अ. ६. गा.१ यथार्थ रूप से मुझसे सुनो। भावलोअप्पयारा
भावलोक के प्रकार..२१.तिविहे सोगे पग्णते, तं जहा--
१४. लोक तीन प्रकार के कहे गये हैं१. गाणलोगे,
१. जानलोक, २. सणलोगे,
२, दानिलोक, ३. चरित्तलोगे।
३. चारित्रलोक । -ठाणं अ. ३, उ, २, सु.१६१ भवावेक्षया जाणाइणं पवणा--
भव की अपेक्षा से ज्ञानादि की प्ररूपणा२२. ५०-इहमविए भंते ! नाणे ? परभविए नागे ? तनुभय- १५. प्र० हे भगवन् ! क्या ज्ञान इहभविक है ? परभधिक है? भविए ना?
या तदुभयभविक है? उ.. .. गोयमा ! इहविए वि नाणे, परमविए वि नाणे, उ० गौतम ! ज्ञान इहभविक भी है, परभविक भी है, सदुश्य भविए बि नाणे ।
और तदुभयभविक भी है। बसणं पि एवमेव
इसी प्रकार दर्शन भी जान लेना चाहिए।
१ उबा. मु. २ भगवान महावीर के शरीर का यह वर्णक पाठ औपपातिक सूत्र के सूत्रों से लिया है किन्तु उपलब्ध प्रतियों में विभिन्न
वाचना भेद के पाठ है अतः प्रस्तुत वर्णक पाट के संकलन में सभी प्रतियों का उपयोग किया गया है। इस वर्णक में सूत्रों के जितने अंश अपेक्षित थे उतने ही लिर हैं और सूत्रांक आगम प्रकाशन समिति ब्यावर के दिए हैं।