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________________ ४२६] परणानुयोग चतुषं मावना : पूर्वमुक्त भोगों के स्मरण का निषेध सूत्र ६४१-६४२ विम्मोतियन्नट्ट-गीत-वाइस-सरीर-संठाग-वन-कर-परम-नयण कामोत्पादक संभाषण, नाट्य, नृत्य, गीत, वीणादि वादन, लावण-स्व-मोक्षण-पयोहराधर-वस्थासकार-भूसण,णि य शरीर की आकृति. गौर श्याम आदि वर्ण, हाथों, परों एवं नेत्रों गुज्सोवकासिया। का लावण्य, रूप, यौवन, स्तन, अधर-ओष्ठ, वस्त्र, अलंकार और भूषण-लक्षाट की बिन्दी आदि को तथा उसके गोपनीय अंगों को, अन्नागि य एवमाइयाडं सव-संजम-चमचेर-घातोवघातियाई तथा अन्य इसी प्रकार की चेष्टाओं को जिनसे ब्रह्मचर्य, तप, अणुचरमाणेगं यमरं न बक्खुसा, न मणसा, न बयसा, तथा संयम का घात उपघात होता है। सन्हें बाह्मचर्य का अनुपत्येयवायं पावकम्माई। पालन करने वाला मुनि न नेत्रों से देखें, न मन से सोचे और न वचन से उनके सम्बन्ध में कुछ बोले और न पापमय कार्यों की अभिलाषा करे। एवं था -fiv-समिसिओगेण भाविको भवद अंतरप्पा इसी प्रकार स्त्रीरूपविरति समिति के योग से भावित भारतमण-बिरय-गामघम्मे मिहंगिए बमवेरगुप्त। अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्त वाला, इन्द्रिय विकार से दिरत, जितेन्द्रय और ब्रह्मचर्य से गुप्त-(सुरक्षित) होता है। पउत्था मावणा: पुस्वरय-पुस्वकोडा अणुस्सरणया- चतुर्थ भावना: पूर्व भुक्त भोगों के स्मरण का निषेध--- ६४२. चउत्म-पुवरय-पुश्वकीलिय-पुश्वसंग-गप-संधुया ६४२. पहले (गृहस्थावस्था में) किया गया रमण-विषयोपभोग, पूर्वकाल में की गई काम क्रीड़ाएँ, पूर्वकाल के सग्रन्थ-श्वसुरकुम (ससुराल) सम्बन्धी जन, ग्रन्थ-साले आदि से सम्बन्धित जन, तथा संस्तुत-पूर्व काल के परिचित जन, इन सबका स्मरण नहीं करना चाहिए। ते आवाह-विवाह बोलकेसु य तिथि जन्नेसू उस्सवेसु य इसके अतिरिक्त गौने या विवाह, चूडाकर्म, शिशु का मुण्डन सिंगारागार चारवेसाहि हाव-भाव-पललिय विक्ष-विलास तथा पर्वतिथियों में, यशों में, पूजाओं में, उत्सवों में, शृंगार सालिणोहि अणुकूलपैम्मिकाहि सदि अपभूया सयण-संपोगा, रस को गृहस्वरूप सुन्दर वेशभूषा शाली, हाव-मुख की चेष्टा, भाव-चित्त के अभिप्राय, लालित्य-युक्त कटाक्ष, डीली चोटी, पक. लेखा, अखिों में अंजन आदि शृंगार, हाथों, भौंहों एवं नेवों की विशेष प्रकार की चेष्टा इन सब से सुशोभित, अनुकूल प्रेम वाली स्त्रियों के साथ बनुभव किए हुए शयन आदि के विविध प्रकार के कामशास्त्रोक्त प्रयोग, खुसुहवर-कुसुम-सुरभि बंदण-सुगंधि-वरवासधूव-सुहरिस- ऋतु के अनुकूल सुख प्रदान करने वाले उत्तम पूष्पों का वत्य-मूसण गुणोमवेया सौरम एवं चन्दन की सुगन्ध, चूर्ण किए हुए अन्य उत्तम वास द्रव्य, धूप, सुखद स्पर्श वाले वस्त्र, आभूषण युक्त, रमणिज्जारज्य-गैय-पसर • नानक-जल्ल-मल्ल-मुद्विक- रमणीय वाद्यावनि, गायन, प्रवर नट नाचने वाले, रस्सी देलंयग-कहग-पग-सासग-आइक्याम-संख-सुख-तूणइल्ल-संब- पर खेल दिखलाने वाले, कुश्तीबाज, मुक्केबाज, विदूषक, कहानी मौणिय-सालापर-पकरणाणि परहणि महर-सर-गीय- सुनाने वाले, उछलने वाले, रास गाने वाले या रासलीला करने सुस्मराई वाले, शुभाशुभ बताने वाले, ऊँचे बांस पर खंस करने वाले या चित्रमय पट्ट लेकर भिक्षा मांगने वाले, तूण नामक वाद्य बजाने वाले, बीणा बजाने वाले, एक प्रकार के ताल बजाने वाले, इन सबकी क्रीड़ाएँ गायकों के नाना प्रकार के मधुर ध्वनि बाले गीत एवं मनोहर स्वर, अन्नाणिय एवमादियाणि सव-संजम-यंभचेरचासोवातियाई इस प्रकार के अन्य विषय, जो तप, संयम और ब्रह्मचर्य का अणुचरमाणेणं बरं न ताई समग सम्मा यमको पात उपघात करने वाले है, उन्हें ब्रह्मपयंपासक श्रमण को देखना - सुभरि । नहीं चाहिए, इन से सम्बद्ध वार्तालाप नहीं करना चाहिए और पूर्व काल में जो, देखे-सुने हों उनका स्मरण भी नहीं करना चाहिए।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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