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________________ सूत्र ६३४-६३७ मैथुन सेवन के संकल्प से प्रणीत आहार करने का प्रायश्चिस सूत्र लेह लिहा, लेहं लिहाबइ, पत्र लिखता है, पत्र लिखवाता है, लेहग्याए बहियाए, पत्र लिखने के संकल्प से बाहर, मच्छ, गर्छतं वा साइज्जह । जाता है, जाने के लिए कहता है, जाने वाले का अनुमोदन करता है। सेवमाणे आमज्जा चाउम्मासियं परिहारहाण अणुग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुदानिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) –नि, उ. ६, सु. १३ आता है। मेहणवडियाए पणीय आहारं आहारमाणस्स पायच्छित मैथुन सेवन के संकल्प से प्रणीत आहार करने का प्रायसुस-- श्चित्त सूत्र६३५. जे प्रिम माउरगामस्स मेहुगवडियाए ६३५. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके१. खीर बा, २. हि वा, ३. गवणीयं था, ४. सप्पिं वा, (१) दूध, (२) दही, (३) मक्खन, (४) भी, ५. गुलं बा, ६. खवा , ७. समकर वा, ८. मछउियं या, (५) गुड़, (६) खांड. (७) शक्कर, (८) मिश्री अण्णयर वा पणीय आहारं आहारोह माहारेंसंवा साइजह। और भी ऐसे पौष्टिक आहार करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। सेवमाणं आवनाचा उम्मासिय परिहारदाणं अगुग्धाइयं । उमे चातुर्गाशिक अनुयातित्र परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) --नि. उ. ६, सु. ८७ आता है। बसोकरण सुत्तकरणस्स पायच्छित सत्तं-- वशीकरण करने का प्रायश्चित्त सूत्र६३६. जे भिक्खू सण-कप्याप्सओ बा, उष्ण कप्पासो वा, पोड ६३६, जो भिन्नु सण कपास से, ऊन कपास से, पोण्ड कपास से कप्यासओ वा. अमिल-कापासओ वा, और अमील कपास सेबसीकरण मुताई करेइ, करेंस वा साइजइ। दशीकरण सूत्र करता है, करवाता है, करने वाले का अन मोदन करता है। से सेवमाणे आवजजाई मासिय परिहारद्वाणं उग्याइयं । उस मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. ३, सु. ७० आता है। अकिच्चठाणसेवण विवादे विणिवणओ अकृत्य सेवन के सम्बन्ध में हर विवाद का निर्णय-- ६३७. दो साहम्मिया एगयो विहरति, ६३७. दो सामिक एक साथ विचरते होंएगे तस्य अपरं अकिस्मठाणं परिसेविता आलोएग्जा, उनमें से यदि एक सा किसी एक अकृत्य स्थान की प्रति से बना करके आलोचना करे कि'ह मसे ! अमुगेणं साहुण सवि इमम्मि कारणम्मि "हे भवन् ! मैं अमुक साधु के साथ अमुक कारण के होने मेहुणपडिसेबी।" पर मैथुन-प्रतिसेवी हूँ" (प्रतीनि कराने के लिए वह अपनी प्रतिपच्चयहेज व सयं पडिसेवियं भणति । सपना स्वीकार करता है, अतः गणावच्छेदक को) दूसरे साधु से पूछना चाहिए कि-से सत्य पुच्छियब्वे – "कि डिसेवी, अपडिसेवी ?" प्र०-क्या तुम प्रतिसवी हो, या अप्रतिसेवी ? ज०-से य वएज्जा -'पडिसेवी", परिहारपते । उ०—(क) यदि वह कहे कि-"मैं प्रतिसेबी हूँ तब तो परिहार तप का पात्र होता है।" से व बएग्जा-"नो पडिसेको" नो परिहारपत्तेज से (ख) यदि वह कहे कि -"मैं प्रतिसेवी नहीं हूँ।" तो वह पमाणं क्यद से परागी घेयवे। परिहार तप का पात्र नहीं है । क्योंकि वह प्रमाणभूत सत्य कहता है-इसलिए उसका सत्य कथन स्वीकार करना चाहिए।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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