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________________ ४२२१ वरणानुयोग मथुन सेवन के संकल्प से धातु निर्माण करने के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ६३२-६३४ मेहुणबलियाए धाउकम्मकरणस्स पाच्छित्त-सुत्ताई- मैथुन सेवन के संकल्प से धातु निर्माण करने के प्रायश्चित्त सूत्र६३२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुगवरियाए-- ६३२. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (एसी स्त्री से) मैथुन सेवन का सकल्प करके-- १. अय-लोहाणि बा, ४. सीसग-लोहाणि था, (१) अय-लोहा, (४) सीसक-लोहा २.तंब-सोहागि घा, ५. रूप-लोहाणि था, (२) ताम्र-लोहा, (५) रूप्य-लोहा, ३. तजय-लोहाणिवा, ६. सुवण्ण-लोहाणि या, (३) अपु-लोहा, (६) सुवर्ण लोहा, करेइ, करेंतं वा साइजाइ । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। अभिक्खू माउणामस्स मेनु णवडियाए जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन से जन का संकल करके - अय-लोहाणि वा-प्राव-सुवग्ण-लोहागि वा, अय-लोहा-यावत्-सुवर्ण-लोहा को, घरे, घरत पा साइज्जद। घरकर रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। अभिडू नामक मालिकाए-- जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करकेअयलोहाणि वा-जाव-सुवष्ण-सोहाणि बा, भम-लोहा—धावत्- सुवर्ण-लोहा का, परिमुंजइ, परिभुजतं वा साइज्ज। परिभोग करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमागे आमज्जाइ चाउम्मासिय परिहारहाणं अमुग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि.उ.७, सु. ४-६ आता है। मथुनेच्छा सम्बन्धी प्रकीणं के प्रायश्चित्त-५ मेहुणडियाए कलहकरणस्स पायच्छिस सुत्तं मथुन सेवन के लिए कलह करने का प्रायश्चित्त सूत्र--- ६३३. जे मिक्बू माजग्गामस्स मेहुणवडियाए ६३३. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन के संकल्प सेकमहं कुज्जा, कलह बया, कलह करे, कलह करने का सकल्प करके बोले, या कलह कलहवडियाए हियाए, करने का संकल्प करके बाहर, गछद, गच्छत्तं वा साहज्जा। जाता है, जाने के लिए कहे, और जाने वाले का अनुमोदन करे। तं सेवमाणे आमज्नइ चाउम्मासियं परिहारठाम अणुरघाइये। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि, उ. ६, सु. १२ आता है। मेहुणवडियाए पत्तपदाणरस पायच्छित सुतं मैथुन सेवन के संकल्प से पत्र लिखने का प्रायश्चित्त सूत्र६३४. मिल माजग्गामस्स मेहरियार ६३४. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियां जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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