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सूत्र ६२५-६२७
मधुन सेवन के संकल्प से हस्तकर्म करने का प्रायश्चित सूत्र
चारित्राचार
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मेहणवडियाए हत्थकम्मकरणस्स पायरिछसत्तं- मंथन सेवन के संकल्प से हस्तकर्म करने का प्रायश्चित
सूत्र६२५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए
६२५. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री
से) मथुन सेवन का संकल्प करके - हत्थकम्मं करेड, करेंतं का साइज्जइ ।
हस्तकर्म करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। सं सेवामाणे बाबा घाउम्मासिय परिहारदाणं अणुग्याइयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ.६, सु.२ आता है। सुबकपोग्गल णिग्घाडण पायच्छिस सत्तं-
शुक्र के पुदगल निकालने का प्रायश्चित्त सूत्र-- ६२६, जस्य एए बहवे इत्थीमो पपुरिसा य पहायंति, सत्य से ६२६. जहाँ पर अनेक स्त्री-पुरुष मैथुन सेवन (प्रारम्भ) करते हैं समय निग्गये
उन्हें देखकर वह (एकाकी अगीता) श्रमण-निम्रन्थअन्नमरसि मपितसि सोयसि सुरकपोगले निग्याएमाणे हस्तकर्म से किसी अचित्त स्रोत में शुक्र पुदगल निकाले तो, हरपकम्म परिवणपसे आवजा मासियं परिहारद्वाणं उसे अनुद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) अगुवाइ।
आता है। जत्य एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा पहाभूति, सत्य से जहाँ पर अनेक स्त्री-पुरुष मैथुन सेवन (शरम्भ) करते हैं समणिगंथे
उन्हें देखकर (एकाकी अगीतार्थ) श्रमण-निग्रंन्य अन्नयरंसि प्रचितंसि सोसि सुक्कपोग्गले निग्याएमाणे मैथुन सेवन करके किसी अचित्त स्रोत में शुक्र-पुद्गल मेहण-पडिसेवणपसे
निकाले तो, भावना पालम्मासिय परिहारदाणं अणुग्याइयं ।
उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चिस) -बब.उ. सु.१६-१७ भाता है।
छा से उपकरण धारणादि के प्रायश्चित्त-४
मेहगवडियाए बत्थधरणस्स पायचिछत्त-सुत्ताई
६२७. जे मिळू माडग्गामस्स मेहुणवडियाए
कसिणाई पत्याहं धरेइ, धरत वा साइज्मा ।
मैथन-सेवन के संकल्प से वस्त्र धारण करने के प्रायश्चित्त
सूत्र६२७. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री के लिए
अभिन्न वस्त्र घरकर रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है।
जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री के लिए
अक्षत वस्त्र धरकर रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है।
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहणवडियाए
अहयाई बस्थाइ धरेइ, घरत या साम्जद ।