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________________ ४२०] घेरेगानुपोग विभूषा हेतु उपकरण धारण प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ६२७-६३० जे भिक्खू माजग्गामस्स मेहुणवडियाए जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐमी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री के लिए - धोबरलाई मत्थाई धरेह, धरतं वा साइज्जह । धोकर रंगे हुए वस्त्र घरकर रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। ( भिववू माउग्गामस्स मेहगडियाए (जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियां जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री के लिए - मलिणाई वत्थाई घरेइ, धरेत वा साइजइ । ] मलिन वस्त्र धरकर रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अगोदन करता है.) जे मिक्खू माजगपामस्स मेहुणवडियाए ____ जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियो जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री के लिएचित्ताई बयाई घरेइ, धरत मा सारज्जद । किसी एक रंग के वस्त्र को घरकर रखता है, रखवाता है। रखने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्कू मारग्गामस्स मेहुणडियाए जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐनी स्त्री से) भैथुन सेवन का संकल्प करके उस स्त्री के लिएविचिसाई वस्थाई घरेह, धरेंत या साहजह। दुरंगे बस्त्र को धरकर रखता है, रखवाता है. रखने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवस्जद चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्याइयं । उसे पातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. ६, सु. १६-१३ आता है। विभुसावडियाए वस्थाइ उयगरणधरणस्स पायच्छित्त विभूषा हेतु उपकरण धारण प्रायश्चित्त सत्र-- सुत्तं६२८. भिक्खू विभुसावडियाए वत्थं वा-जाव-पायपुंछणं वा- ६२८. जो शिक्षु विभूषा के संकल्प से वस्त्र-यावत-रजोहरण याअग्णयर वर उवगरणजायं धरेह, धरत वा साइजह । ऐसे कोई उपकरण को धारण करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आबज्जद चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्याइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. १५३ आता है। विभूसाबग्यिाए वत्थाइ उवगरण धोषणस्स पायच्छित्त विभूषा हेतु उपकरण प्रक्षालन प्रायश्चित्त सूत्र सुत्तं६२९. जे मिक्खू विभूसावजियाए वत्थं या-जावपायपुंछणं वा- ६२६. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से वस्त्र-पावत् -- रजोहरण याअण्णपरं वा उषगरणमायं धोवेइ, धोवंतं बा साहज्जा। अन्य ऐसे कोई उपकरण को धोता है, धुलवाता है. धोने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे मावजा पाउमासियं परिहारशरणं उरधाइय। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. १५४ आता है। मेहुणवडियाए आभूसणं करमाणस्स पायच्छित्त-सुत्ताई- मैथुन सेवन के संकल्प से आभूषण निर्माण करने के प्राय श्चित्त सूत्र६३०. ने भिक्खू माडग्गामस भेगडियाए ६१०. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐमी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके१. हाराणि वा, २. अठहाराणिवा (२) अद्ध हार
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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